योगों की धुरी पूरी तरह चंद्रमा की धुरी पर आधारित है प्रत्येक दिन रात्रि बनने वाले समय में ही योग का समय सुनिश्चित किया जाता है।
योग कि अवस्था से योग के फल कहे गये है, योग के स्वामी,नक्षत्र तथा देवता  कहे गये है ।
आकाश मंडल में सूर्य, चंद्रमा तथा नक्षत्रों  के गतिमान होने पर जो अलग-अलग स्थिति का निर्माण होता है उस समय विशेष को योग कि संज्ञा दी गई है।

१ विषकुम्भ योग।
२ प्रीति योग।
३ आयुष्मान योग।
४ सौभाग्य योग।
५ शोभन योग ।
६ अति गण्ड योग।
७. सुकर्मा योग।
८ धृति योग।
९ शूल योग ।
१० गण्ड योग
११ वृद्धि योग।
१२ ध्रुव योग।
१३ व्याघात योग।
१४ हर्षण योग।
१५ वज्र योग।
१६ सिद्धि योग।
१७ व्यतिपात योग।
१८ वरियान योग ।
१९ परिघ योग।
२० शिव योग।
२१ सिद्ध योग।
२२ साध्य योग।
२३ शुभ योग ।
२४ शुक्ल योग।
२५ ब्रह्म योग ।
२६ ऐन्द्र योग।
२७ वैधृति योग।

विषकुम्भ योग, अति गण्ड योग, धृति योग,शूल योग,परिघ योग ,गण्ड योग,ध्रुव योग, व्याघात योग, हर्षण योग,वज्र योग, व्यतिपात योग, वरियान योग आदि योग अशुभ फल दाई होते हैं।

वैधृति और व्यतिपात योग समस्त परित्याज्य हैं।
वैधृति व्यतिपात ये दोनों महापात हैं, सम्पूर्ण त्याज्य हैं।
परिघ योग का आधा भाग त्याज्य है, उत्तरार्ध शुभ है, परिध योग का पूर्वार्द्ध त्याज्य है,सब कामों में निंदित है।
विषकुम्भ योग कि पांच घड़ी ।
वज्र,की तीन घड़ी वर्जित हैं ।
शूल योग की प्रथम पांच घड़ी,
गण्ड और व्याघात योग की प्रथम छह घड़ी।
व्याघात और वज्र योग के नौ दण्ड शुभ कार्य करने में त्याज्य हैं।
अति गण्ड के छ घड़ी ।
इन योगों कि कुछ अवधि शुभ फलदाई होती है बाकी अशुभता प्रदान करने वाली होती है। इन योगों का प्रयोग शास्त्रों में निषेध कहा गया है।

भवन निर्माण में तथा छत ढलाई में इनको निषेध बताया गया है वास्तु कर्म के साथ-साथ कृषि मुहूर्त एवं जीवन के सभी उपयोगी मुहूर्तों में इनका प्रयोग निषेध बताया गया है।

मेरे नाम के अनुसार मेरी राशि क्या है।