समावर्तन संस्कार मुहूर्त।

समावर्तन संस्कार का प्रयोजन मुख्य रूप से ब्रह्मचर्य के गुणों से अवगत करवाया जाना है। इस संस्कार को  14 वर्ष के बाद किया जाता है
इस आयु में ज्ञान का प्रभाव बढ़ता है । इस आयु में बच्चों के ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि रहती है वह हर तरह का ज्ञान ग्रहण करता है। इस संस्कार का उद्देश्य विस्तृत ज्ञान को सुनियोजित तरीके से ग्रहण करना और बच्चे को नैतिकता तथा चरित्र के मूल्यों के नियमों से अवगत कराया जाता है तथा ब्रह्मचर्य के पालन का संकल्प दिलवाया जाता है ।

इस संस्कार से बच्चे में सद्बुद्धि का विस्तार होता है बुद्धि प्रयोग कि क्षमता में वृद्धि होती है।

इस संस्कार में सभी देवताओं का आहवान किया जाता है तथा मुख्य रूप से बुद्धि के देवता गणपति जी और ज्ञान की देवी माता सरस्वती कि पुजा का विधान है।

इस संस्कार का समय शिष्य के केश मूंछ दाड़ी उगने आरंभ हो जाते है। केश उगने प्रारंभ होना शरीर कि ब्रह्मचर्य कि विशेष अवस्था का सुचक है। यह संस्कार गुरुकुल में ही किया जाता है।

संस्कार मुंडन संस्कार की तरह ही होता है। या फिर यूं कहें कि एक ही संस्कार दो अलग अलग अवस्थाओं में किया जाए। ले किन अलग-अलग अवस्थाएं होने के कारण इनके नाम भी अलग-अलग हैं।

चंद्रमा विचार:- चन्द्रमा ६,८,१२ नही होना चाहिए।

शुभ नक्षत्र:- अश्विनी,मृगशिरा,पुनर्वसु,पुष्य,हस्त,चित्रा,स्वाती,ज्येष्ठा,श्रवण,घनिष्ठा,शतभिषा,रेवती।

शुभ वर्ष:- १०,११,१२,१३,१५ वां वर्ष शुभ होते हैं ।

शुभ मास:- माघ मास ,बैशाख मास, ज्येष्ठ मास,आषाढ मास,चैत्र मास।

सुर्य उत्तरायण में हो गुरू तथा शुक्र अस्त ना हो इसका विशेष ध्यान रखें ।

तिथि विचार:- २,३,५,७,१०,११,१३ तिथियां शुभ होती हैं।

  • इस संस्कार में एका गर्ल दोष वर्जित माना गया है।
  • जन्म कुडली के अनुसार गोचर तथा लग्न से कोई भी ग्रह अष्टम स्थान में नही होना चाहिए।

शुभ वार :- शुक्र, बुध, बृहस्पति, सोमवार ये शुभ वार हैं ।

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