नामकरण संस्कार मुहूर्त।

नामकरण संस्कार का प्रयोजन नवजात शिशु का नामकरण करना तथा जन्म समय के अनुसार पाया विचार करना। इसी दिन शिशु कि माता का प्रस्तुति गृह से बाहर निकलने कि शुरुआत और सावड़ समाप्ति होती है।

इस संसार में कोई भी प्राणी जन्म लेता है तो उसको किसी नाम से संबोधित किया जाता है वह नाम ही  उसकी इस संसार से पहचान करवाता है। नाम का प्रभाव उसके अर्थ से होता है नाम चुनते समय ध्यान रखें कि नाम का अर्थ अच्छा होना चाहिए।

सूतक के अंत में नामकरण संस्कार का प्रावधान है। प्राचीन काल में आचार्यों के मतानुसार ११दिन, १३ दिन, १६दिन तथा एक महिने के समय के अंदर नाम करण करना चाहिय ।

नामांकरण मेॆ बालक के नक्षत्र चरणानूसार प्रथम अक्षर का चुनाव होता हैं । इसके अलावा ग्रंहबल के अनुसार भी नाम का चयन किया जा सकता हैं आचार्य बच्चे के नाम का प्रथम अक्षर का चुनाव करते उसके बाद बच्चे के नाम का चयन माता पिता भुआ, दादा, दादी, चाचा, चाची आदि को करना चाहिए।

शुभ नक्षत्र:- अश्वनी ,रोहिणी, पुनर्वसु ,पुष्य,मघा, उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा ,स्वाती, अनुराधा ,मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती ये सभी नक्षत्र नामकरण संस्कार मुहूर्त में शुभ होते हैं ।

शुभ तिथी :- नाम करण मेॆ रिक्ता तथा पुर्णीमां,अमावस्या को छोङकर सभी तिथीयाॆ शुभ होती हैं ।

शुभ वार :- नामकरण के लिए शुभ वार का चुनाव करना चाहिय। मंगल तथा शनिवार को त्याग करना चाहिय।

नामकरण संस्कार के समय वार नक्षत्र तिथि तथा सूर्योदय कि स्थिति पर विचार किया जाता है।

नारदसंहिता:- सूतक के अंत में नाम करण करना चाहिय। किसी कारण नाम करण ना हो सके तो बाद में नामकरण के समय गुरू शुक्र अस्त ना हो तथा सुर्य उत्तरायण हो । नाम के आदि में शुभमांगलिक अक्षर होवे वह नाम श्रेष्ठ कहा गया हैं ।

नामांकरण संस्कार के अंतर्गत पाया विचार।

नाम व्यवहारिक,सुन्दर एंव सुगमता से व्यवहार में आने योग्य हो। नाम बालक ओर उसके व्यवहार करने वालो के मन पर मनोवैग्यानिक प्रभाव छोङता हैं । जन्मं समय नक्षत्र चरणानूसार अक्षर पर नाम रखने का विधान हैं । जो नाम प्रकृति के अनुसार निकलता है सबसे पहले उसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए। उप नाम चुनते समय भी ध्यान रखना चाहिए कि वह नाम कि उर्जा आपके पक्ष में हैं या विपरीत प्रभाव वाली है।

नाम का चयन नक्षत्रानूसार करके उसकी व्यवस्था अंक शास्त्र के अनुसार व्यवस्थित कि जाती है।

पाया विचार :-

पाया विचार कि प्रणाली में राशियों तथा नक्षत्रों के अनुसार पाया देखने कि विधियां हैं। लेकिन आज के परिवेश में केवल राशि अनुसार पाया निर्धारित करने कि विधी ही प्रचलित है।

नक्षत्रों के अनुसार पाया विचार कि प्रणाली प्राचीन काल में प्रचलित हुआ करती थी लेकिन आज के समय में लग्न की स्थिति को देखकर राशि के अनुसार निर्धारित किया जाता है।

जन्म समय के लग्न से गिनने पर चंन्द्रमा १,६,११ हो तो सोने का पाया

२,५,९, हो तो चांदी का पाया

३,७,१० हो तो ताम्बा का पाया

८,४,१२ हो तो लोहे का पाया

यह स्थित तया जातक के जन्मं फल को सुख दुख के रूप में दर्शाति हैं।

इन पायो में सोने का ,लोहे का पाया कष्टकारी माना गया है।

चांदी का,तांम्बे का पाया शुभ फल कारी माना गया है।

पाया विचार के अनुसार सोने चांदी के पाया जिन शिशुओं का होता है वे मस्तिष्क से अधिक क्षमतावान होते हैं। लोहे के पाया वाले बच्चे शरीर से अधिक क्षमतावान होते हैं। तांबे के पाया वाले बच्चे कलात्मक रूप से क्षमता वाले होते हैं।

मेष:- चू,चे,चो,ला,ली,लू,ले,लो,आ
वृष:- ई,ऊ,ए,ओ,वा,वी, वू ,वे,वो
मिथुन:- का,की,कू,घ,ङ,छ,के,को,हा
कर्क:- ही,हू,हे,हो,डा,डी,डू,डे, डो
सिह:- मा,मी,मू,मे,मो,टा,टी,टू, टे
कन्या:- टो,पा,पी,पू,षा,णा ,ठा,पे,पो
तुला:- रा,री,रू,रे,रो,ता,ती,तू,ते
वृश्चिक:- तो,ना,नी,नू,ने,नो,या,यी,यू
धनु:- ये,यो,भा,भी,भू,धा,फा,ढा,भे
मक्कर:- भो,जा,जी,खी,खु,खे,खो,ग,गी
कुंभ:- गू,गे,गो,सा,सी,सू,से,सो,दा
मीन:- दी,दू,थ,झ,ञ,दे,दो,चा,ची
एक राशी में नो चरण आते हैं ।

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