उपनयन संस्कार मुहूर्त ।

उपनयन संस्कार का प्रयोजन हमारे जीवन में शिक्षा ग्रहण करने कि शुरुआत से पहले नियम एवं संकल्पों से जुड़ा है यह संस्कार हमारी प्राचीन (गूरूकूल) शिक्षा पद्धति से जुड़ा है। 

जब बच्चा गुरू कुल में जाता था तब गुरू ओर शिष्य के बीच में अध्यात्मिक संबंधो को स्थापित करना हैं इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।

यह संस्कार बच्चे के गूरूकूल में रहकर ज्ञान ग्रहण करने तथा अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर गुरू का विशेष महत्व तथा उन्ही के समीप रह कर विद्वता में परिपूर्ण होने का व्रत हैं ।  इस संस्कार के समक्ष विद्यार्थी शिखा (चोटी)तथा जनेऊ (यज्ञोपवीत)धारण करता हैं । ये दोनो प्रतीक है उपनयन संस्कार के ।

यज्ञोपवीत संस्कार में मुहूर्त पर विचारणीय बातें:-

शुभ समय :- आठवां वर्ष

शुभ नक्षत्र:- अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, पुर्वाफाल्गुनी, पुर्वाषाढा, पुर्वाभाद्रपदा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा,हस्त,चित्रा,स्वाती,श्रवण,धनिष्ठा,शतभिषा,अनुराधा,मूल,रेवती ये सभी नक्षत्र शुभ होते हैं ।

वर्जित नक्षत्र :- कृतिका,भरणी,मघा, ज्येष्ठा, विशाखा।

शुभ तिथि:- २,३,५,६,१०,११,१२, वर्जित तिथि :- ४,७,८,९,१३,१४,१५,३० इसके अलावा दोनों पक्षों कि तिथियां शुभ मानी गई हैं।

शुभ वार :- रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।

शुभ लग्न:- मेष,मिथुन,सिंह, कन्या, धनु।

चंद्रमा ६,८,१२ में नही होना चाहिए।

सुर्य उत्तरायण में हों।

इसके अलावा गुरु शुक्र युवावस्था में होने चाहिए।

अन्य वर्जित विषय:-भद्रा,रात्रि, प्रदोष काल।

इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य बच्चे कि विद्यार्थी जीवन कि शुरुआत।

वर्तमान समय में यह संस्कार दो-तीन वर्ष कि आयु में हि कर दिया जाता है। यह संस्कारो के विरूद्ध हैं । बच्चे के मानसिक विकास पर इसका गहरा प्रभाव पङता हैं । कम से कम पांच वर्ष कि आयु में यह संस्कार होना चाहिए। जिससे दिमाग अच्छी तरह विकसित हो सके। पांच वर्ष तक बच्चे को मां का सानिध्य मिलना चाहिए। उसकी दिनचर्या मां के साथ व्यतीत होनी चाहिए।

जनेऊ धारण करने का प्रयोजन:-

जब बालक गूरूकूल में जाता है तो गुरू शिष्य बनाने से पहले जनेऊ ,चोटी धारण करवाता है तथा इन्हे साक्षी मानकर शिष्य से ब्रह्मचर्य तथा विद्याध्ययन का संकल्प लेता हैं।

इसके अलावा जनेऊ धारण करना शरीर विज्ञान से भी जुड़ा है। इसको धारण करके नियमो का पालन करने से अध्यात्मिक ऊर्जा बढती। ब्रह्मचर्य के पालन में वृद्धि होती हैं। इसके धारण करने से मानसिक बल तथा स्मरण शक्ति बढती हैं।

चोटी रखने का प्रयोजन :-

शिखा रखना शास्त्र विहित है। इसका मुख्य प्रयोजन लघु मस्तिष्क, सूचना और ज्ञान केंद्र की रक्षा करना होता है।

मस्तिष्क के बाहरी आवरण की रक्षा हड्डी तथा बालों से होती है और जहां छोटी रखी जाती है वहां सुषुम्ना नाङी तथा लघु मस्तिष्क का क्षेत्र होता है। इसलिए सर के ऊपर गोखुर जितनी बड़ी चोटी रखी जाती है।

चोटी रखने से ज्ञान की वृद्धि होती है। इसे रखने के अपने कुछ नियम होते हैं। इसको खुला नही रखना चाहिए इसे हमेशा बांधकर रखना चाहिए। ब्रह्मांड से जुड़ने का यंत्र है।

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