सांख्य दर्शन में 25 तत्वों का उल्लेख है लेकिन मुख्य रूप से पृथ्वी पर जीवन को प्रभासित करने वाले पांच तत्वों का प्रभाव मुख्य रूप दिखाई देता है।

जल तत्व, वायु तत्व, अग्नि तत्व, पृथ्वी तत्व, आकाश तत्व।

इस पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को समझने के लिए तत्वों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
तत्वों की स्थिति को समझने के लिए सबसे पहले तत्वों के उत्पत्ति चक्कर में तत्वों कि स्थिति के बारे जानना होगा ।

जैसे ब्रह्मांड में सबसे पहले प्रत्यक्ष रूप में अग्नि तत्व का आगमन हुआ। समय के अंतराल में
वह पृथ्वी तत्त्व के रूप में रूपांतरित हुई।

पृथ्वी तत्व से आकाश तत्व का उद्गम हुआ। आकाश का अर्थ यहां बर्फ़ के पिघलने से जल कि प्राप्ति हुई है। पृथ्वी ग्रह पर जल प्राप्ति का एक यही कारण है और वह हिमयुग के बाद सूर्य के प्रकाश कि गर्मी से बर्फ के पिघलने से हुआ है।

जल से वायु तत्व कि प्राप्ति हुई। (पानी से पेड़ पौधों का निर्माण हुआ पेड़ वायु का प्रतीक है।)
ओर वायु से अग्नि तत्व कि प्राप्ति हुई है।(लकड़ी सुखने के बाद घर्षण से अग्नि प्रज्वलित होती है।) इस पृथ्वी पर अग्नि के दो रूप हैं एक तो जो भूगर्भ में है जिसके कारण पृथ्वी घूमती है।
और दुसरी अग्नि है जो भौतिक रूप में घर्षण से पैदा हुईं हैं।

इस संपूर्ण प्रक्रिया को भौतिक रूप में समझने के लिए हम ऐसे देखते हैं।

वाष्पीकरण होकर जल आकाश से बर्षा के रूप में हमें प्राप्त होता है। जल से वायु (आक्सीजन के रूप मे) पेड़ पौधों का निर्माण होता है।

वायु से अग्नि।

लकड़ी सुखने के बाद आपसी घर्षण से अग्नि कि प्राप्ति हुई है।

अग्नि से पृथ्वी।

अग्नि के शांत होने पर राख बनती है और रेत का रूप धारण कर लेती है।

पृथ्वी से आकाश ।

जब भूमि के अंदर खुदाई कि जाय तो एक नये आकाश का निर्माण होता है । जैसे ऊपरी आकाश से जल वर्षा के रूप में ओर आंतरिक आकाश से भी खुदाई के बाद जल कि प्राप्ति हुई है। इसके अलावा भुमि में एक वस्तु और भी प्राप्त होती है। जिसे हम धातु भी कहते हैं।

आकाश यहां धातु को भी कहा गया है।

आकाश से फिर जल कि प्राप्ति होती है । और जल से क्रमश वायु का निर्माण।

जीवन चक्र में तत्वों का रूपांतरण नियमानुसार लगातार हर समय होता रहता है।

जल से वायु ।

वर्षा के जल से पृथ्वी पर पेड़-पौधे उत्पन्न हुए, और इन को विकसित करने के लिए भी जल की आवश्यकता होती है जल वायु में परिवर्तित हो जाता है।

वायु से अग्नि ।

जब पेड़ से लकड़ियां टुट कर सूखती है तो लकड़ियों में आपसी घर्षण के कारण अग्नि प्राप्त होती है। इस पृथ्वी पर अग्नि का नियम है वह घर्षण से ही प्राप्त होती है जब दो सूखी हुई लकड़ियों को आपस में हम घर्षण करते हैं तो अग्नि प्राप्त होती है।

अग्नि से पृथ्वी ।

जब अग्नि बुझती है तो हमें पृथ्वी तत्व की प्राप्ति होती है बुझी हुई राख रेत में बदल जाती है और पृथ्वी तत्व का रूप ले लेती है।

पृथ्वी से आकाश।

जब पृथ्वी की खुदाई की जाए तो उसके अंदर भी आकाश होता है जैसे हम ऊपरी आकाश में घर का बाहरी चित्र बनाते हैं और जमीन के अंदर भी है घर बनाते हैं वह आकाश पृथ्वी के अंदर का ही आकाश होता है इस आकाश के अंदर गहरे में धातुएं भी प्राप्त होती है उसे भी आकाश कहा गया है।

आकाश से जल।

आकाश से जल की प्राप्त होती है यहां आकाश बर्फ को कहा गया है क्योंकि शुरुआत में बर्फ के पिघलने से ही पृथ्वी पर जल कि प्राप्ति हुई है हमारी पृथ्वी पर बर्फ के पिघलने से ही जल की प्राप्ति हुई है।

जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश ।

इस ब्रह्माण्ड में इन पांचों तत्वों का संतुलन ही साक्षात परमात्मा का स्वरूप है। इस पृथ्वी पर कहीं भी पांचों तत्वों का संतुलन एक अनुपात के अनुसार बनता है तो यह जीवन की शुरुआत को परिभाषित करता है।

जो अनुपात हमारे ग्रह पर इन तत्वों का है वही अनुपात इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव का है जो जीवित है। जैसे इस पृथ्वी पर जल 71% है तो उतने ही अनुपात में यह हमारे शरीर में ही स्थित है।
जितनी वायु हमारी वायुमंडल में है उसी अनुपात में मनुष्य के शरीर में प्राण वायु होती है।
जितने अनुपात में पृथ्वी के भूगर्भ में अग्नि स्थित है उतने ही अनुपात में मनुष्य के शरीर में भी अग्नि स्थित है। जैसे अग्नि के कार्य पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है वैसे ही मनुष्य अपने पेट की अग्नि के कारण संसार में भ्रमण करता है।

जितना अनुपात इस ग्रह पर पृथ्वी तत्व का है उतना ही अनुपात पृथ्वी तत्व हमारे शरीर में है जितना आकाश हमें दिखाई देता है पृथ्वी पर खड़े रहने के बाद उतना ही आकाश का हिस्सा हमारे शरीर में हम से जुड़ा हुआ है। गर्दन से ऊपरी हिस्सा आकाश तत्व के अंतर्गत आता है यह तत्वों का अनुपात पृथ्वी के तत्वों के अनुपात में जब तक बना रहता है तब तक हम व्यवस्थित रहते हैं और जब इन तत्वों का संतुलन आपसी योग से अव्यवस्थित होता है तो वहां संतुलन बिगड़ जाता है।
इस पृथ्वी पर पृथ्वी ग्रह पर जो अनुपात तत्वों का है इस अनुपात के अनुसार तत्वों का अनुपात कहीं भी बनता है तो जीवन की शुरुआत हो जाती है।

पांच तत्वों का आपसी संबंध भी इनके अनुपात के आधार पर ही विकसित होता हैं। और यह अनुपात एक दूसरे के विरोध के कारण बिगड़ता भी है।

इनका आपसी विरोध इस प्रकार है।

जल और अग्नि का आपसी विरोध है। जल अग्नि को समाप्त कर देता है और अग्नि जल को( वाष्प बनाकर) समाप्त कर देती है।

वायु पृथ्वी को समाप्त कर देती है और पृथ्वी वायु को दूषित कर देती है उसके गुण समाप्त कर देती है।(हवा रेत को उड़ा कर उसके अस्तित्व को समाप्त कर देती हैं तो रेत जब शुद्ध वायु में मिलती है तो

अग्नि आकाश को समाप्त कर देती है और आकाश के कारण अग्नि भी अपनी क्षमता को अनियंत्रित कर लेती है जिसके कारण वह फायदे की जगह नुकसान करती है।

पृथ्वी जल को सोख लेती है अगर पानी में रेत मिलती है तो पानी पीने लायक नहीं रहता और मिट्टी में अगर पानी की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है तो वह बैठने लायक नहीं रहता वह दलदल बन जाता है।

आकाश वायु को समाप्त कर देता है इन दोनों का आपसी विरोध है और धातु से बना कुल्हाड़ी पेड़ को काट देती है और धातु से बनी हुई वस्तु वायु के संपर्क में आते ही धातु को जंग लगने लगता है

जैसे जल वायु का निर्माण तो करता है लेकिन अग्नि को समाप्त कर सकता है। जहां पानी अग्नि के क्षेत्र में तो अग्नि को शांत कर देता है।और अग्नि पानी के क्षेत्र में हो तो पानी वाष्प बनकर समाप्त हो जायेगा।

वायु अग्नि का निर्माण करती है और दूसरी तरफ पृथ्वी (रेत) को समाप्त करती है। जब वायु और रेत मिलती है आंधी का निर्माण होता है।

अग्नि पृथ्वी (रेत)का निर्माण करती है और दूसरी तरफ आकाश को समाप्त करती है। अग्नि और आकाश का मिलन होता है तो भ्रम कि स्थिति बनती है और अग्नि के तापमान में अनावश्यक बढ़ोतरी होती है।

पृथ्वी आकाश का निर्माण करती है तो दूसरी तरफ जल को समाप्त करती है। पृथ्वी और जल के मिलने पर दल दल का निर्माण होता है। पांच तत्वों के आपसी योग से संतुलन तथा असंतुलन दोनों का निर्माण होता है।

आकाश जल का निर्माण करता है और दूसरी तरफ वायु को समाप्त करता है। आकाश और वायु के मिलने से वायु कमजोर होती है।

इन तत्वों का संतुलन और असंतुलन दोनों पक्ष हर प्राणी के जीवन में घटित होते हैं। ये भी हमें प्रारब्ध के अनुसार ही प्राप्त होते हैं। हमें जीवन में दो तत्वों का योग प्राप्त होता है।एक स्वयं को परिभाषित करता और दूसरा सहायक के रूप में परिभाषित होता है।

वास्तु सलाह तथा वास्तु यात्रा के लिए संपर्क करें। यह सुविधा सशुल्क हैं।