वास्तु सलाह ।
वास्तु शब्द का शब्दिक अर्थ बसने योग्य क्षेत्र है ।वास्तु शास्त्र की सामान्यतः परिभाषा में स्थान तत्व में समाहित पंच तत्वों कि व्यवस्था से है। चुकी व्यवस्था अपने आप में एक सार्थक शब्द है किन्तु वास्तु शास्त्र अपने मौलिक अर्थ में पंच तत्वों कि जागृति है। अर्थात स्थान के सिमांकन के बाद उक्त स्थान के तत्वों की क्रियाशीलता के अनुसार तत्वों की जागृति की जाती है।
वास्तु शास्त्र का आधार पंच तत्वों पर आधारित है, इस पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत पंचतत्वों के संतुलन से हुई है जो अनुपात इस पृथ्वी पर इन पांच तत्वों का है वही अनुपात इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के अंदर भी है।
जब तक यह पंचतत्वों का अनुपात जीव के अंदर बना रहता है तब तक वह जीव पृथ्वी पर विचरण करता है अर्थात जीवित है।
जब मनुष्य इस पृथ्वी पर अपना घर बनाता है तो चारदिवारी का निर्माण करता और इस क्रिया से वह अपने लिए एक अलग आकाश का निर्माण करता है,और इस आकाश में पंचतत्वों को उसी अनुपात में व्यवस्थित करता है जो अनुपात इस पृथ्वी पर जीवन यापन के लिए संतुलन में है । इन तत्वों के अनुपात को व्यवस्थित करके घर बनाने से घर बसने के लिए तैयार होता है इसी प्रक्रिया को वास्तु कहा गया है।
इस संसार में जीवन का आधार पंच तत्वों के संतुलन पर ही आधारित है। अगर घर बनाते समय इन पंच महाभूतो के संतुलन को ध्यान में रखकर भवन का निर्माण किया जाएं तो वह घर समृद्धि दायक होता है , और जिन भवनों का निर्माण अज्ञानतावश किया जाता है उन घरों में सुख-समृद्धि का अभाव हमेशा बना रहता है। इसी कारण मनुष्य अपने जीवन में अपनी योग्यता का विस्तार नहीं कर पाता।
जीवन कि शुरुआत में आदि मानव गुफाओं में रहते थे जैसे-जैसे मस्तिष्क का विकास होता गया ज्ञान का प्रचार प्रसार हुआ उन्होंने अपने रहन-सहन के परिवेशों में भी बदलाव आता गया, शुरुआत में जीवनशैली ज्यादा विकसित नहीं थी इसी कारण मृत्यु दर भी बहुत ज्यादा थी।
धीरे-धीरे जीवन के रहस्यों को जानते हुए मनुष्य ने अपनी जीवन शैली को बदला, मांसाहार से शाकाहार में प्रवर्तित हुए। रहने के लिए चारदीवारी का निर्माण किया और घर का निर्माण किया जाने लगा।
वास्तु का आधार जीवन के साथ ही शुरू होता है जब पहला जीव इस पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ वह भी इन पांच तत्वों के संतुलन से ही संभव हुआ था।
वास्तु शास्त्र एक वैज्ञानिक कारण को दर्शाता है। जीवन का आधार है पंच तत्वों का संतुलन है।
आइए इस विषय को और गहराई से समझते हैं
पांच तत्वों से तीन प्रकृतियों का निर्माण हुआ।
सत्तो गुणी, रजोगुणी , तमोगुणी इन प्रकृतियों के अनुसार ही मनुष्य अपने जीवन को व्यतीत करता है। इन तीनों प्रकृतियों का परस्पर संतुलन व्यवस्थित होने पर तीनों प्रकृतियों के गुना में वृद्धि होती है और परस्पर अगर इनका विरोध हो तो तीन देशों का निर्माण होता है, वात दोष, पित्त दोष, और कफ दोष।
इन प्रकृतियों का आपसी विरोध भी तत्वों के आपसी विरोध पर आधारित है जैसे जल तत्व अग्नि तत्व और पृथ्वी तत्व का विरोधी तत्व है। वायु तत्व पृथ्वी तत्व और आकाश तत्व का विरोधी तत्व है। अग्नि तत्व आकाश और जल का विरोधी तत्व है। पृथ्वी तत्व जल तत्व और वायु तत्व का विरोधी तत्व है। आकाश तत्व वायु तत्व और अग्नि तत्व का विरोधी तत्व है इनका विरोध ही वास्तु दोष का निर्माण करता है।
घर तथा मनुष्य के शरीर में इन तीनों देशों का निर्माण तत्वों के विरोध पर ही आधारित है।
वात दोष (वायु दोष) – वायु दूषित कब होती है जब वायु के अंदर रेट के कानों की मिलावट हो तो वायु दूषित हो जाती है।
वायु तत्व आपके जीवन में आपके ज्ञान सामाजिक आवरण सभी के साथ आपसी तालमेल रिश्तेदारों तथा ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता को दर्शाता है निजी जीवन में रिश्तों का कारक भी वायु तत्व है अगर यह दूषित होता है
तो सामाजिक आवरण सीमित तथा उलझा हुआ रहता है शारीरिक संरचना के अनुसार विचार करते हैं तो वायु विकार शरीर में बिगड़ता है तो शरीर में अनावश्यक दर्द तथा शरीर में वायु को दूषित करता है पेट खराब करता है शरीर में हड्डियों के जोर को प्रभावित करता है सर दर्द का कारण भी वात दोष बनता है।
वायु तत्व हमारे जीवन में ज्ञान की प्राप्ति का कारक है अगर यह दुष्ट हो तो ज्ञान ग्रहण करने से संबंधित विकार तथा भ्रम को पैदा करता है।
पित्त दोष– (अग्नि दोष) इस दोस्त का निर्माण घर में अग्नि तत्वों के दूषित होने पर होता है अग्नि तत्व हमारे जीवन में कर्मशील बनने तथा अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक क्षमता को विकसित करने में सहायक होता है यह तत्व घर में जीवन रक्षा के लिए सहायक भी होता है यह तत्व ही हमारे जीवन में साहस की नियमित वृद्धि को दर्शाता है।
अग्नि तत्व ही जीवन में भौतिक अवस्थाओं आवश्यकताओं की पूर्ति करता है किसी भी तरह के निर्माण की इच्छा की पूर्ति अग्नि तत्वों से पूरी होती है अपने शारीरिक बल से धन अर्जित करना हो या अपनी वंश वर्दी के लिए संतान पैदा करना हो यह सभी क्रियाएं अग्नि तत्वों से संबंधित है अगर अग्नि तत्व चिन्ह होता है तो साहस दूर्साहस में परिवर्तित हो जाता है बिना कारण गुस्सा बढ़ जाता है।
कफ दोष -(जल दोष) कफ दोष का निर्माण घर में जल तत्व के दूषित होने पर होता है जल तत्वों से मानव जीवन में भावनाएं तथा उत्पत्ति के विचार उत्पन्न होते हैं जल को उत्पत्ति का कारक माना गया है
मनुष्य की भावनाएं भी जल तत्व से निर्मित होती हैं किसी के प्रति लगाव का कारक जब मस्तिष्क में किसी भी विषय के प्रति निर्माण का भाव आता है तो उसका कारक जल तत्व है अगर यह दूषित होता है तो शरीर में पानी के प्रभाव को स्थिर करता है शरीर में कैफ की वृद्धि हो जाती है और फेफड़ों से संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं जीवन में इसका प्रभाव नहीं प्राप्तियां से जुड़ा है अगर घर में यह तत्व दूषित होता है तो व्यक्ति में विचार हिनता का प्रभाव बढ़ जाता है।
वास्तु विद्या का प्रयोग करके हम इन प्रकृतियों के सद्गुणों को बढ़ा सकते हैं और दोषों को कम कर सकते हैं ।
जीवन में सुख दुख कि अनुभूति को ही प्रारब्ध से जोड़ा गया है लेकिन पुरूषार्थ से जिया हुआ जीवन भी भाग्य को बलवान बनाता है।
इस संसार में जहां पांच तत्वों का संतुलन बनता है वहा जीवन अपने आप विकसित होता है। मनुष्य के जीवन में समस्या का समाधान बनने लगता है।और जहां ये पंच तत्व संतुलित नहीं हो पाते वहां समस्या का समाधान नहीं निकल पाता।
वास्तु शास्त्र के अधीन उपचारों के लिए घर में कभी भी तोड़फोड़ नहीं की जाती क्योंकि उपचार के लिए की गई तोड़फोड़ वस्तु भांग दोष का निर्माण करती है यह ज्यादा नुकसानदायक होती है वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा वास्तु के अनुसार घर में की गई तोड़फोड़ वस्तु बंद दोष का निर्माण करती है और यह वास्तु शास्त्र के अनुसार किया गया सबसे गलत कार्य होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार हम आपके घर को व्यवस्थित करने पर कार्य करते हैं। हमारी विशेष प्रणाली आपके घर में पंच तत्वों को संतुलित करने का कार्य करती है। उपचार के अधीन किसी भी तरह से तोड़-फोड़ नहीं कि जाती। उपचार करते समय सहायक वस्तुओं में रंग पेंट, धातु एवं तत्वों के अनुसार व्यवस्था कि जाती है।
हमारे कार्य करने का तरीका पुरी तरह से वैज्ञानिक है। घर को मापन प्रणाली के अनुसार मापकर उपचार किया जाता है। वास्तु दोषों के कारण तथा उपचार दोनों से आपको अवगत कराया जाता है। हमारी सेवाएं पुरे भारत वर्ष में दी जाती है। हमारा कार्य आपको भ्रम से बाहर लाना है। आपकी व्यवस्था में जाने अंजाने में हुई त्रुटि को दूर करना है तथा आपकी व्यवस्था को सुव्यवस्थित रूप देना। हमारा तरीका पुरी तरह से वैदिक तथा वैज्ञानिक है।
अगर घर में पांचो तत्वों का संतुलित संतुलित होता है तो तत्वों की शुद्धि के साथ-साथ तीनों प्रकृतियां भी अपनी गुणों से विकसित होते हैं और घर में रहने वाले व्यक्तियों का जीवन पूरी क्षमता के साथ विकसित होता है जीवन का अभिप्राय जल्दी समझ में आता है।
व्यक्ति की सकारात्मक पहचान उसके गुणों से होती है और नकारात्मक पहचान उसके अवगुणों से होती है तत्वों के संतुलन में गुणों की वृद्धि होती है और इनका असंतुलन जीवन में अवगुणों की वृद्धि करता है अवगुण दुख का कारण बनता है और गुण सुख तथा समृद्धि का कारक होता है।
वास्तु शास्त्र को निम्न ज्ञान समझने की भूल नहीं करनी चाहिए क्योंकि जीवन का विस्तार इन पांचों तत्वों पर आधारित है, मुख्य रूप से तत्वों के संतुलन को ही वास्तु शास्त्र कहा गया है।
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