व्यसन वर्जित मुहूर्त का प्रयोजन है एक विशेष समय का चुनाव जिसमें मांसाहार को त्यागने के लिए संकल्प लिया जाता है।
वैसे तो सनातन संस्कृति में मांसाहार भोजन सर्वदा वर्जित किया गया है। मांस भक्षण पाप माना गया है लेकिन कुछ मूर्ख भोजन श्रंखला में मांस का भक्षण करते हैं।
प्राचीन काल में विकल्पों के अभाव मनुष्य मांसाहारी था। उस समय चेतना जागृत नहीं हुई थीं क्योंकि जैसा खाए अन्न वैसा बने मन। इस कारण पशुओं के आवरण में मनुष्य विचरण करते थे।
लेकिन धीरे-धीरे भोजन के अभाव में कंद मुल खाने कि शुरुआत हुई और इससे चेतना में जागृत हुई।और कंद-मूल के लगातार खाने से रोगों में भी कमियां आई और मनुष्य ज्ञान को प्राप्त करने लगा ।
जब चेतना जागृत हुई तो यह एहसास भी हुआ की भोजन कि पुर्ति के लिए मांस करना पापकृत्य है।और मनुष्य ने मांसाहार त्याग दिया। लेकिन आज के परिवेश में कुछ मुर्ख लोग अपनी जिव्हा के स्वादों के लिए मांस भक्षण करते हैं।जिनको इस पापकृत्य का एहसास हो गया है और मांसाहार छोड़कर शाकाहारी बनना चाहते हैं तो अपने मुहूर्तों के अनुसार संकल्प लें सकता है।
इसके अलावा जिनके घरों में मांसाहार किया जाता है उनको निचे लिखे नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।
शास्त्रानुसार कुछ दिन निषेध करने के लिए कहा गया है। जिससे रोगों से बचा जा सके।
अष्टमी,एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी, पुर्णिमा , अमावस्या, संक्रांति दिवस,,श्राद्ध, श्रावणमास,तथा विशेष पर्व पर मांस भक्षण तथा मदिरा पान निषेध होता हैं।
यह एक वैज्ञानिक कारणों से भी जुड़ा है जो व्यक्ति इन दिनों मांस,मदिरा ,स्त्री रमण करता है वह चांडाल योनि को प्राप्त करता है। अर्थात रोगों में वृद्धि होती है।
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