वास्तु का अर्थ है एक प्रकार कि व्यवस्था तथा बसने योग्य क्षेत्र। इस संसार में जीवन कि सुरूवात पाचों तत्वों के सन्तुलित होने पर हुई है। तत्वों का जो अनुपात इस पृथ्वी पर है वही अनुपात मनुष्य या किसी भी प्राणी के शरीर में भी हैं। जैसे जितना जल इस पृथ्वी पर है उतने ही अनुपात में हमारे शरीर में भी है।
जितनी वायु हमारे वायु मंडल में है उतनी ही वायु प्राण वायु के रूप में हमारे शरीर में हैं। जितना अनुपात पृथ्वी पर अग्नि तत्व का है वही अनुपात हमारे शरीर में भी अग्नि तत्व का है। जितना आकाश हमें दिखाई देता है पृथ्वी से उसी अनुपात के अनुसार हमारे शरीर में आकाश तत्व का है। जितना पृथ्वी तत्व है उतना ही अनुपात हमारे शरीर में भी है। कहने का अभिप्राय है कि हमारा शरीर इस ब्रह्मांड कि एक छोटी सी ईकाई है।
जब मनुष्य अपना घर बनाता हैं।तो अपने लिए भुमि का निर्धारण करता है। जैसी व्यवस्था इन तत्वों कि इस पृथ्वी पर है । तथा जिस अनुपात में पांचों तत्व इस पृथ्वी पर व्यवस्थित है । वहीं व्यवस्था घर पर भी होनी चाहिए हैं। क्योंकि मनुष्य को यह तत्वों कि व्यवस्था जीवन भर चाहिए होती है । जैसा तत्वों का अनुपात इस पृथ्वी पर है वैसा ही अनुपात घर पर भी होना चाहिए।
उसी व्यवस्था को वास्तु कहा गया है।
जब तक मनुष्य के शरीर में वह तत्वों का अनुपात पृथ्वी के तत्वों के अनुपात के अनुसार बना रहता है तब तक मनुष्य या कोई भी प्राणी संतुलन मे रहता है। जितनी जितनी मात्रा में तत्वों का संतुलन इस पृथ्वी पर है उसी अनुपात में हमारे शरीर में भी है जब हम अपना घर बनाते हैं तो चारों ओर दीवार खींचते हैं तो हम अपने लिए नये
आकाश का निर्माण करता है और उस आकाश में भी तत्वों का संतुलन पृथ्वी के अनुपात के अनुसार ही व्यवस्थित करते हैं तब वह व्यवस्था जीवन भर बनी रहती है और जरूरत के अनुसार हमारी क्षमता का विस्तार होता रहता है। यह भी एक वास्तु शास्त्र का परिचय हैं।
लेकिन जब यह संतुलन किसी कारण वश बिगड़ता तब मनुष्य या प्राणी पीड़ित होता है। लेकिन जीवन भर यह तत्वों का संतुलन बना रहे इसके लिए तत्वों कि व्यवस्था हमारे घर मे व्यवस्थित होती है। उत्तर दिशा में जल तत्व, पूर्व दिशा में वायु तत्व, पूर्व- दक्षिण में अग्नि तत्व, दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी तत्व और पश्चिम में आकाश तत्व विद्यमान होते है। जीससे जीवन भर तत्वों संतुलन हमारे जीवन में बना रहता है। इस व्यवस्था को वास्तु कहते हैं।
पांच तत्वों का संतुलन ही जीवन कि परिभाषा। जहां ये संतुलित है वही जीवन चक्र संतुलित है। अन्यथा जंहा ये संतुलित नही वंहा पर पिङा हैं। असंतुलन ही पिङा कि परिभाषा हैं। वास्तु एक व्यवस्था है जंहा पर तत्वों को संतुलित किया जाता हैं।जीससे जीवन में पुरूषार्थ को सिद्ध किया जा सके।
वास्तु कि परिभाषा :- किसी क्षेत्र को बसने योग्य स्थान बनाने तथा पंच तत्वों को संतुलन करने की व्यवस्था को वास्तु कहा जाता है। जैसे मानव शरीर पांच तत्वों से निर्मित है तथा जीवन भर उनके संतुलन से मानव शरीर व्यवस्थित रहता है । उसी प्रकार घर में भी पांचों तत्वों को संतुलन में किया जाता है जिससे घर में रहने वाले व्यक्तियों का संचालन बुद्धि विकास यह सुचारू रूप से होता रहे। सर्वप्रथम मनुष्य गुफाओं में रहा करता था।
बुद्धि की चेतना का जैसे-जैसे विस्तार हुआ उसी प्रकार मनुष्य ने घर बनाना, भवन बनाना शुरू किया।घर ,भवनो मे रहना शुरू किया। फिर भवन में ऊर्जा की पहचान करके उन को नियमित रूप से व्यवस्थित करके उनका लाभ उठाना शुरू किया।घर में अग्नि कि स्थापना चिन्हित तथा उसके वास्तविक क्षेत्र में करने से घर में रहने वालो कि अग्नि व्यवस्थित हो जाती हैं।उसी प्रकार अन्य तत्वों का संतुलन वास्तु के अनुसार किया जाता हैं।
वास्तु शास्त्र की परिभाषा जीवन के परयोजन को सिद्ध करने वाले इस विद्या को वास्तु शास्त्र या वास्तु विज्ञान कहा गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार रहने पर कर्मो कि सिद्धी प्राप्त होती है तथा जीवन चक्र से मुक्ति मिलती हैं।
वास्तु शास्त्र में तत्वों के अनुसार भवन निर्माण करने का प्रावधान किया गया है। माना जाता हैं कि सुरूवात में जीतनी विद्याऐ मनुष्य ने अपनेआप को विकसित करने के लिए की थी उनमे यह ज्ञान प्रमुख है। जीतनी विद्या जो मानव सभ्यता के साथ थी उन विद्या ओ मे वास्तु शास्त्र भी सदैव मनुष्य के साथ साथ रही हैं। वास्तु शास्त्र सिर्फ भवन निर्माण तक ही सिमित नही है
बल्कि जीवन का संपूर्ण ज्ञान है।वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण करने से मनुष्य अपनी क्षमताओं का विस्तार करके अपने पुरूषार्थ को सिद्ध कर सकता हैं। वास्तु शास्त्र प्रमात्मां द्वारा मनुष्य को दिया हुआ एक विशेष ज्ञान है जिसके अनुसार चलने पर प्रमात्मां कि प्राप्ति होती हैं परमार्थ सिद्ध होता हैं।
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