मुहूर्त में लग्नेश की स्थिति।

जब लग्न कुंडली का निर्माण करके मुहूर्त देखा जाता है, तो लग्न कुंडली में लग्नेश की स्थिति अनुसार स्थितियों का निर्माण होता है। लग्नेश अच्छे भाव में है, तो अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। अगर बुरे भाव में हैज़ तो परेशानियां बनी रहती हैं।

लग्नेश के साथ कौन-से ग्रहों की संगति है। अच्छे ग्रह की संगति है, तो अच्छा फल मिलता है। अगर बुरे ग्रहों की संगति हो, तो परिणाम भी बुरे होते हैं।

  • लग्नेश प्रथम भाव में हो, तो व्यक्ति अपने बारे में विचार करता है। परिवार के नजदीक का माहौल में रहना पसंद करता है।
  • लग्नेश द्वितीय भाव में हो, तो उसकी कोशिश वाणी के प्रभाव से तथा अपनी जान पहचान के कारण कार्य को करवाने के गुणों में विस्तार देता है।
  • लग्नेश तीसरे भाव में हो, तो व्यक्ति अपने पुरुषार्थ को जागृत करता है तथा कर्तव्य को करने की तैयारी होती है।लग्नेश तीसरे भाव में अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य को करने की शुरुआत करता है।
  • लग्नेश चौथे भाव में मातृ भाव में रहता है। छोटी दूरियों की यात्रा भी करता है। मित्रों के साथ खेल-कूद करना, चंचलता ज्यादा रहती है।
  • लग्नेश पांचवे भाव में हो, तो व्यक्ति ज्ञान ग्रहण क्षमता तथा धन की छोटी प्राप्ति या विद्या ग्रहण क्षमता तथा मनोरंजन के भावों से प्रभावित रहेगा।
  • लग्नेश छठे भाव में चोरी, शत्रुता तथा दूसरों से सहायता मांगने के भावों में वृद्धि रहती है। छठा लग्नेश निषेध है। चौथा लग्नेश निषेध है।
  • सातवें भाव में लग्नेश है, तो व्यक्ति अपनी पूरी तैयारी के साथ मैदान में होते हैं। सातवा भाव दो आत्माओं के संयोग को दर्शाता है। साथ मिलकर आगे बढ़ने के भावों में वृद्धि करता है।
  • लग्नेश अष्ठम भाव में हो, तो गुप्त तथा निर्णायक विचारों का प्रवाह ज्यादा रहता है। यह भाव प्रारब्ध के फलों की प्राप्ति का कारण है। आठवां भाव मृत्यु का कारक माना गया है। इसलिए इसकी स्थिति मुहूर्तों में वर्जित है। खोई हुई चीज ढूंढने के लिए लग्नेश अष्टम में हो, तो पता जरुर लगता है।लग्नेश अष्ठम भाव में हो, तो व्यक्ति तथा विषय की प्राप्ति गुप्त रहस्य से होती है। जो छुपा हुआ है, उसका ज्ञान लग्नेश अष्टम भाव में हो, तब प्राप्त करता है, किसी विशेष जानकारी का पता चलता है। जब लग्नेश अष्टम में हो तो।
  • लग्नेश नवम भाव में हो, तो भाग्य की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ में वृद्धि के लिए, पराक्रम की क्षमता तब बढ़ती है, जब लग्नेश नवम भाव में होता है। नवम भाव में लग्नेश हो, तो व्यक्ति धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करने वाला होता है। नौवां लग्नेश हो, तो व्यक्ति के अंदर किसी भी कार्य को नीति पूर्वक करने के गुण विकसित होते हैं।
  • लग्नेश दसवें भाव में हो, तो पुरुषार्थ सिद्धि के योग बढ़ते हैं। कार्यक्षेत्र का निर्माण होता है। कर्म शीलता के भाव वृद्धि होते हैं। दसवें भाव में लग्नेश शुभ फलदाई होता है। दसवें भाव में लग्नेश अपनी कार्य क्षमता के साथ मैदान में है। वह पूरी तैयारी के साथ है। व्यक्ति को मुख्यधारा के साथ जुड़े रहने की क्षमता का विस्तार भी दसवें भाव से संभव है। कार्यक्षेत्र में ही कर्मों का विस्तार होता है।
  • लग्नेश ग्यारवें भाव में हो तो वह शुद्ध लाभ को दर्शाता है। अपने सामाजिक तथा पारिवारिक लाभ को भी दर्शाता है। जीवनदायिनी सहायता को दर्शाता है । ग्यारहवां भाव धन का आगमन वस्तु की बिक्री को दर्शाता है।
  • बारहवां भाव में लग्नेश हो, तो हानि होती है। यह भाव रात्रि काल में सोने का है। दूर की यात्रा तथा खर्चे को दर्शाता है। पैसों के नुकसान का कारक बारहवां भाव होता। लग्नेश बारहवें भाव में हो, तो लग्नेश की क्षमता कमजोर हो जाती है। जो भी होता, वह ज्यादा खर्चीला होता है।

इसलिए मुहूर्त में इस भाव की स्थिति को अशुभ माना जाता है।

लग्नेश जितना बलवान होता है, उतना ही कार्य को करने की क्षमता व्यक्ति के अंदर होती है। लग्न शुद्धि परम आवश्यक है।


विशेष:- लग्नेश चौथे, छठे, आठवें, बारहवें भाव में नहीं होना चाहिए।

चंद्रमा परिचय।