सोते समय सिर को पूर्व अथवा दक्षिण दिशा में रखना चाहिए। आईए जानते हैं इसका वैज्ञानिक कारण।
पृथ्वी के दो ध्रुव हैं उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव वैसे ही हमारे शरीर में भी दो ध्रुव हैं मनुष्य का सिर उत्तरी ध्रुव और पैर दक्षिणी ध्रुव। चुंबकीय पदार्थ के भी दो ध्रुव होते हैं उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव। हमारी पृथ्वी पर चुम्बकीय पदार्थो का भंडार क्षेत्र उत्तर दिशा में है। और चुम्बक लोहा धातु को अपनी और आकर्षित करती है। पृथ्वी पर कहीं भी रखा हुआ लोहा धातु तथा लोहे से बना कोई भी उपकरण उत्तर दिशा कि तरफ आकर्षित होता रहता है। दिशा दर्शक यंत्र इसी सिद्धांत पर कार्य करता है।
मानव शरीर मुख्य रूप से सप्तधातु से निर्मित है । और पृथ्वी पर जितना लोहा धातु है उसी अनुपात में हमारे शरीर में भी लोहा विद्यमान है। हमारे शरीर में लोहा धातु हमारे खून में होती है।क्योंकि जब हमारे शरीर में खून कि कमी होती है तो डॉक्टर हमें iron (लोहा) कि दवाएं देता है।
लोह भस्म भी खून विकार में दी जाती है। चुम्बकीय पदार्थ के नियमानुसार जब हम चुम्बक के दो टुकड़े करते हैं तो वह अलग होते ही दोनों टुकड़ों में स्वयं नये ध्रुवों का निर्माण कर लेता है उसी प्रकार पृथ्वी बड़ा टुकड़ा है और प्राणी दुसरा टुकड़ा है।चुम्बक के दो ध्रुव आपस में कभी भी नहीं चिपकते।उत्तरी ध्रुव आपस में एक-दूसरे को विपरीत दिशा में धकेलते हैं। वैसे ही दक्षिण ध्रुव भी एक दूसरे को आपस में धकेलते है। लेकिन जब उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव आपस में मिलाएं जाएं तो वह आपस में चिपक जाते हैं।
यही सिद्धांत हमारे शरीर पर भी लागू होता हैं। हमारे सिर का क्षेत्र उत्तरी ध्रुव होता है अगर हम उत्तर दिशा में सिर करके सोते हैं तो इसी नियम के अनुसार हमारे शरीर में खून का दवाब बढ़ जाता है और इससे अनिद्रा तथा अन्य खून कि विकृतियां शरीर में होने लगती है। और हमारे पांवों कि तरफ दक्षिणी ध्रुव होता है
जैसे हमारे पांव उत्तर दिशा में रखते हैं तो हमारे शरीर में खून का वहाव सामान्य रहता है और शरीर में खून कि विकृतियां नहीं होती और नींद अच्छी तरह से आती है। इस लिए ध्यान रखें सोते समय सिर को पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा में रखकर ही सोएं। हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा निर्देशित है अगर ज्ञान ग्रहण करना है तो पूर्व दिशा में सिर रखकर सोएं और ग्रहण किए हुए ज्ञान को गुणित करना है तो दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोएं ।
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