जब आपके घर में पूर्व का क्षेत्र दूषित होता है। अर्थात अव्यवस्थित होता है या वहां पर भंडार ग्रह होता है तो इसका प्रभाव आपके सामाजिक आवरण में विपरीत होता है। ऐसी स्थिति में आपके प्रति सामाजिक आवरण में भ्रम की स्थिति बनी रहती है इस अवस्था में आपका सामाजिक संपर्कों का अभाव हमेशा बना रहता है

आपके साथ सामाजिक संपर्कों का अभाव बना रहता है आपके जो कार्य सामाजिक तथा बाहरी लोगों से होने होते हैं वह कार्य विलंबित होते हैं तथा आपका रवैया बाहरी लोगों के प्रति अविश्वसनीय रहता है तथा आपके प्रति भी लोगों का रवैया भी विरोधाभास से भरा रहता है।

आपका सामाजिक आवरण में मुख्य रूप से आपका परिवार तथा आपके रिश्तेदार सरकारी संस्थाएं तथा आपके साथ काम करने वाले सभी लोग आते हैं अगर आपका व्यवसाय है तो आपके जितने भी सहयोगी हैं

वह सभी लोग इसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं इस क्षेत्र को हम किसी भी प्रतिष्ठान पर अव्यस्थित रखते हैं तो यह अपना प्रभाव अपनी स्थिति के अनुसार अनुभावित करवाता है। जैसे व्यावसायिक स्थलों पर पूर्व का क्षेत्र अव्यस्थित हो तो कर विभाग से परेशानी बढ़ जाती है।

अगर यह क्षेत्र घर में अव्यस्थित हो तो बच्चों के रिश्तों में परेशानी आती है। घर में रहने वाले लोगों के संबंध सामाजिक आवरण में विकसित नहीं हो पाते।

बिना कारण सामाजिक विरोध बना रहता है तथा घर के सदस्यों को आपसी लाल मेल में भी परेशानियां खड़ी होती हैं वह एक दूसरे को समझ नहीं पाते एक दूसरे की भावनाओं को समझने में परेशानी होती है।

अगर यह क्षेत्र दूषित होता है तो हमारी प्रतिष्ठा भी विकसित नहीं हो पाती हमारे अंदर निजी स्वार्थ की चरम सीमा विकसित होती है हम लोग लोगों से अपना काम तो निकलवा लेते हैं लेकिन हम दूसरों के लिए कार्य नहीं कर पाते इसी कारण हमारी छवि बाहर के आवरण में भ्रमित रहती है। हम सामाजिक विरोध वाले कार्य ज्यादा करते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में किया गया भंडारण व व्यवस्था हमारे लिए बड़ा गतिरोध बनता है।

जब हवा का वेग ज्यादा होता है तो वह हमारे ज्ञान रूपी पृथ्वी तत्व ( रेत) को समाप्त कर देता है और जब पृथ्वी तत्वों का प्रभाव भंडारण के रूप में पूर्व के क्षेत्र में बढ़ता है तो वह वायु को दूषित कर देता है।

वायु तत्व हमारा परिचय सामाजिक क्षेत्र में अपने आप फैलाने में अच्छा करता है हमारी बातें दूसरों तक इसी तत्व के प्रभाव से पहुंचती हैं । जैसे आवरण में किसी भी प्रकार की खुशबू तथा बदबू का हमें इसी तत्व से ज्ञात होता है।

जीवन में ज्ञान से जुड़े विषयों को जानने के लिए हमें वायु तत्व के बारे में पूरी तरह जानना सहायक होगा। पूर्व दिशा वायु तत्व प्रधान क्षेत्र है और वायु का कार्य हमें बाहरी आवरण की जानकारी देना है और इस दिशा में किया गया भंडारण पृथ्वी तत्व को इस क्षेत्र में स्थापित करता है इन दोनों तत्वों का आपसी विरोध होता है तब यह दोनों तत्व आपस में एक जगह होते हैं

तो आवरण में आंधी का निर्माण करते हैं जिससे हमें वास्तविकता ज्ञान न होकर आदि अधूरी तथा विकृति पूर्ण जानकारी मिलती है तथा हमारे बारे में भी लोगों के सामने हमारी पूरी छवि दिखाई नहीं देती जिसके कारण हम लोग पूरी तरह से लोगों को नहीं जान पाते और लोग हमें नहीं जान पाते।

जैसे रेत और वायु के मिलने से अंधकार छा जाता है वैसे ही स्थिति घर में रहने वाले प्राणियों के मनस पर भी रहती है हमें किसी भी विषय को दूसरों को समझने में परेशानी होती है और उनके विषयों को समझने में भी परेशानी होती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार हमारे घर में पंच तत्व अपने विशेष स्थान पर प्रभावशाली बनकर जीवन चक्र चक्र को जागृत रखते हैं। जब तक मनुष्य के शरीर में तत्वों का संतुलन बना रहता है तब तक शरीर में आत्मा का आत्मा का स्थायित्व भी बना रहता है लेकिन जब किसी कारण वंश यह संतुलन बिगड़ा है

तब शरीर शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा की अनुभूति होती है तब व्यक्ति अपने अच्छे अनुभवों को भूल जाता है और अपने बुरे अनुभवों के साथ अपने जीवन के विरुद्ध खड़ा हो जाता है व्यक्ति को विपरीत प्रभाव की पहचान होने लगती है

शारीरिक पीड़ा से दुख दुखदाई मानसिक पीड़ा होती है विचारों के कारण जो पीड़ा मानसिक स्थल पर बनती है वह किसी को दिखाई नहीं देती लेकिन जो मनुष्य इस पीड़ा से प्रभावित होता है उसे लगातार महसूस होता रहता है ।

  • जहां तक हो सके अपने घर में पूर्व का क्षेत्र निर्विरोध रखें।
  • वहां फालतू सामान ना रखें ।
  • कूड़ा दान पूर्व दिशा में नहीं रखना चाहिए।
  • इस क्षेत्र में अपने पूर्वज का चित्र भी ना रखें।
  • इस दिशा में पीले रंग से संबंधित रंग ना करें।

वास्तु सलाह तथा वास्तु यात्रा के लिए संपर्क करें। यह सुविधा सशुल्क हैं।