‘मौली’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’। मौली शब्द से तात्पर्य है सिर से भी ऊपर । मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। भगवान शंकर के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है। इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहते है।

यह अलग अलग प्रयोजनों पर अलग अलग धागों के रूप में प्रयोग कि जाती हैं। जैसे मांगलिक कार्यों में लाल,पिले तथा हरे रंग के धागों का प्रयोग करतें है। तथा अन्य किसी प्रयोजनों में नीले, सफेद और काले धागे का प्रयोग किया जाता हैं। इसको कई नामों जाना जाता है

जैसे मौली, कलावा,रक्षा सूत्र, उप मणिबंध इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं के अनुसार और भी नाम हो सकते। यह कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती है।

यह अलग अलग क्षेत्रों में लोकाचारों के अनुसार बांधी जाती है। कहीं लाल, पीला और हरा तो कही नीला, ओर काले रंग के धागे का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव के नाम से रक्षा ।

सुत्र बांधना हमारी वैदिक तथा सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ तथा मांगलिक कार्यों के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा हमारे यहां बहुत पहले से ही रही है। लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा,

जब दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, ‍जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था।

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मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है

तो इसे खोल दिया जाता है। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है। इसे संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान बांधी जाती है।

मौली बांधने के नियम शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार, 5 बार और 7 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।

इसे पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है। हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। क्योंकि यह जितनी पुरानी होती है इसमें उतने ही किटाणु (गंदगी)बढ जाते है।

जिससे नाकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ जाता है। क्योंकि जब हम भोजन करते हैं तब यही हाथ हमारे नाक के पास जाता है और सांस के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश हो जाते हैं। इस लिए दो तीन दिन में बदल लेना चाहिए। यह कपड़े कि तरह हि होती हैं।

जैसे हम कपड़े बदलते है वैसे ही इसको भी बदल लेना चाहिए। मौली बांधने के 3 कारण हैं- पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक।मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है।

किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी बांधते हैं। किसी देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए भी बांधते हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।

हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है। इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है।

मौली बांधते समय इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है। येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।

इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

”मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।इन मणिबंधो के नाम ब्रह्मा , विष्णु, महेश हैं।

इसी तरह सरस्वती, लक्ष्मी तथा शक्ति का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्ति यों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है।

इस रक्षा-सूत्र को संकल्प पूर्वक बांधने से रोग दोष का प्रभाव व्यक्ति पर नही होता। यह मान्यता भी हैं कि इसे बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषंण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।

शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।

यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है।इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है।

यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है।कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं

कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।

प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के ‍चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है।

पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिए लाभकारी था।

मनोवैज्ञानिक मानते है इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।

शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं।

कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है।कमर पर बांधे जाने वाली मौली को तगड़ी भी कहा जाता है।

यह धागा काले रंग होता है।इसके संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।