वर्तमान समय में कर्ज़ लेकर घी पीने कि परम्परा प्रचलित है। अर्थात अनावश्यक भौतिक सुविधाओं कि प्राप्ति अधिकांश कर्ज़ लेकर ही पाई जाती है या पाई जा रही है। भौतिक सुख-सुविधाओ की प्राप्ति अधिकृत ऋण से पाई जा सकती है।

यह आज के आधुनिक मनुष्य का भ्रम मात्र है। टेलीविजन तथा अन्य माध्यमों से हमें बार बार दिखाया जाता है तथा हमे अच्छे जीवन स्तर कि गारंटी दी जाती है।इसे बार-बार हमें सुनाया व दिखाया जाता है

जिससे हम वास्तविक पुरुषार्थ भूलकर अपने प्रारब्धों को बढ़ा रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि हम इस संसार में जन्म कर्ज उतारने के लिए लेते हैं लेकिन कारण वंश अगर हम कर्ज को बढ़ाते हैं तो अपने पुरुषार्थ को कमजोर तथा प्रारब्ध को मजबूत करते हैं।

व्यक्ति का जन्म अपने व अपने पूर्वजों के कर्ज़ को चुकाने के लिए होता है अगर व्यक्ति अपने जीवन में अपने पूर्वजों के ऋण का भूगतान करता है तो वह व्यक्ति अपने पूर्वजों को ऋण से मुक्त कर पाता है। हमारी सनातन संस्कृति में पूर्वजों को तृप्त करने कि परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

किसी कारण भूल-चूक से रहे हुए कर्ज़ को चुकाने का दायित्व वंशजों का होता है।और यही प्रकृति का नियम भी है पिता द्वारा लिए गए उधार के धन को उसकी सन्तान चुकाती है। प्रत्यक्ष रूप से लिए गए कर्ज का भूगतान तो धन देकर चुकाया जा सकता है लेकिन (अप्रत्यक्ष रूप से )पितृदोष के ऋण का भुगतान करना मुश्किल होता है।

पितृदोष का निर्माण जब होता है तब हम किसी से धन उधार लेते हैं और उधार चुकाने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है तो यह स्थिति पितृदोष का निर्माण करती है। इस स्थिति में जीवन में परेशानियां बढ़ती है तथा भटकाव बढ़ता है। जीवन में वृद्धि रूक जाती है और वंश बेल बढ़ने में रुकावट पैदा हो जाती है।

इसका उपचार क्षमा याचना करने तथा गुप्त रूप से धर्मार्थ कार्य तथा वृक्षारोपण कार्य,जल के सार्वजनिक स्त्रोतों का निर्माण करने से दोष कम होने के सार्थक कर्म बताये जाते हैं। इस जन्म में लिया गया उधार पैदा प्रत्यक्ष रूप से कर्ज है और पिछले जन्मों का तथा पूर्वजों का लिया हुआ उधार धन अप्रत्यक्ष रूप से कर्ज होता है। कर्ज़ चुकाने से पुरूषार्थ को बल मिलता है तथा जीवन में दोषों की निवृत्ति होती है और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है।

कर्ज़ कि वृद्धि के ज्योतिषीय कारण :-

जब लाभ भाव का स्वामी हानि भाव के स्वामी से कमजोर हो। और आय भाव का स्वामी कमजोर स्थिति में होकर अपने शत्रु के घर में बैठा हो। छठे भाव का स्वामी बलवान होकर लग्नेश के शत्रु के साथ मित्रता में हो।

अगर ग्रहों की बात करते हैं तो कर्ज का कारक ग्रह मंगल है अगर यह अच्छी स्थिति में होगा तो व्यक्ति अपने जीवन में दूसरों का कर्ज उतरता है अपने प्रारब्ध तथा अपने पूर्वजों का कर्ज भी उतरता है और मंगल विपरीत स्थिति में हो तो व्यक्ति इस जीवन में अपने कर्ज को बढ़ाता है और अपने साहस को दूर्साहस में बदलकर अपने कर्ज को बढ़ा लेता है।

मंगल नीच में हो तो व्यक्ति के व्यसन तथा व्यभिचार उसे कर्ज़वान बनाते हैं। ऋण एक अदृश्य अग्नि है जो वर्तमान समय में मनुष्य के कर्म क्रिया से प्राप्त फल कि गति को अवरूद्ध कर रही है या जला रही। कर्ज़ को मनुष्य का सबसे बड़ा व खतरनाक शत्रु माना गया है क्योंकि इसके प्रहार की गति कभी भी रूकती नहीं है यह प्रत्येक क्षण अपने वेग में बनी व चलती रहती है।

कर्ज़ मुक्ति वास्तु शास्त्र के अनुसार सुधार करके:-

पंचतत्वों के संतुलन चक्र में जब अग्नि क्षीण होती है अर्थात अग्नि तत्व दूषित होता है तो कर्ज़ वृद्धि के कारण उत्पन्न होते है। पंच महाभूतो में जीवन का सबसे स्पष्ट परिचय अग्नि तत्व से है ज़ब शरीर से अग्नि तत्व रुष्ट हो जाता है तब जीवन कि समाप्ति को निश्चित करता है।

अग्नि तत्व हमारे जीवन में उत्साह का कारक माना जाता है। अग्नि तत्व हमारे जीवन में साहस व दूर्साहस दोनो का प्रतीक माना जाता है। जैसे जीवन में अग्नि सार्थक तब तक रहती है जब तक वह हमारे नियंत्रण में रहती हैं इसी रूप में वह हमारे साहस का प्रतीक है और अग्नि जब अनियंत्रित होकर हमारी शत्रु कि भुमिका में आती है तो वह हमारे दूर्साहस का कारण बनती है।

जब अग्नि हमारे नियंत्रण में होती है तब हम इच्छानुसार फलों कि प्राप्ति कर सकते हैं। और जब अनियंत्रित होती है तो हमारे परिणामों को जला देती है।इस संसार में किसी भी वस्तु के निर्माण तथा उसके प्रयोग की स्वीकृति हमें अग्नि तत्व से होती है। वस्तु कि आकृति का निर्माण तथा बनी हुई आकृति में बदलाव भी अग्नि तत्व से ही संभव होता है।

हमारे घर पर अग्नि तत्व संतुलित हो तो जीवन में आर्थिक संपन्नता से सार्थकता बढ़ जाती है। जब किसी कारण वश हमारे घर में अग्नि तत्व क्षीण अथवा खंडित होता है तो अग्नि से संबंधित सभी कार्य स्थगित हो जाते हैं। साहस दूर्साहस में बदल जाता है।घर में औरतों का रवैया भी अनिष्टकारी हो जाता है।अगर अग्नि अनियंत्रित हो जाएं तो वह हमारे परिणामों को भी जला देती है अनियंत्रित अग्नि ही जीवन में कर्ज़ में वृद्धि का कारक होती है।

जैसे हमारे जीवन में नकद धन कि उपस्थिति का परिचय अग्नि तत्व से है उसी प्रकार क्षीण अग्नि दरिद्रता का कारण बनती है।अगर हमारे घर पर तथा हमारे आवरण में अग्नि तत्व अनियंत्रित होगा तो हमारे जीवन में भी विषयों पर हमारा नियंत्रण नहीं नहीं बन पाता, अग्नि क्षीण होने पर हमारे निर्णय भी क्षीण होते हैं।

अग्नि क्षीण होने पर हमारे निर्णय भी क्षीण ऊर्जा के अनुरूप कार्य करते हैं और क्षीण ऊर्जा से किए गए कार्य भी अल्प परिणामों कि प्राप्ति देते हैं। अपने आवरण में अग्नि तत्व कि शुद्धिकरण करके उसे व्यवस्थित करते हैं तो यह जागृत होकर आपके जीवन में कर्ज़ से मुक्ति दिला सकती है। अपने घर में वास्तु शास्त्र कि सहायता से अग्नि को व्यवस्थित करें और वास्तविक क्षमता से अपने जीवन में बदलाव लाएं।