वानप्रस्थ संस्कार का प्रयोजन जीवन में अपनी ग्रहस्थ जीवन कि जिम्मेदारी को पुरा करने के बाद अपनी बाकी बचे जीवन को परमात्मा के चरणों में लगाने के लिए किया जाता है ।
ब्रह्मचर्य और गृहस्थ आश्रम के कर्तव्यों को पूरा करने के पश्चात जब देह में बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होने लगते हैं । तब पुत्र का पुत्र हो जाए तब ।
अपना ध्यान ग्रहस्थ से हटाकर अध्यात्म में लगाने का समय होता है इस संस्कार के अधीन व्यक्ति अपने घर से कहीं दूर जाकर रहने लगता है ।
इस संस्कार के लिए चंद्रमा और यात्रा के मुहूर्त पर विचार किया जाता है।
मुख्य रूप से प्रचलित श्रोता धान संस्कार के बाद कर्म संन्यास ओर वानप्रस्थ संस्कार दोनों ही एक साथ ग्रहण किए जाते हैं। कर्म संन्यास के समय भक्ति का संकल्प लिया जाता है।
कर्म संन्यास व वानप्रस्थ का प्रयोजन संसार कि माया जाल को छोड़कर परमात्मा में ध्यान किया जाए।
चंद्रमा विचार:- ४,६,८,१२ ।
यात्रा मुहूर्त विचार :- साधारण यात्रा मुहुर्त पर विचार करें।
मुहूर्त निकलवाने के लिए नामाकन करे-