अश्विनी नक्षत्र।

आकाश में स्थित तारा – समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु वर्तमान ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं। नक्षत्रों का पौराणिक परिचय विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इनमें चंद्रमा कि सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी की व्याख्या सत्ताईस बहनों में सबसे अधिक सुंदर होने के कारण चंद्रमा कि प्रिया बताया गया है।

अश्विनी नक्षत्र भचक्र का प्रथम नक्षत्र है ,अश्वविनी नक्षत्र मे तीन तारो का समूह तथा घोड़े किआकृति बनती है। यह नक्षत्र उत्तर दिशा में दिखलाई पड़ता हैं ॥ यह मेष राशि के अन्तर्गत आने वाला पहला नक्षत्र है। इस कि गणना मूल नक्षत्रसूत्री में आती है।अश्विनी नक्षत्र की जाती वैश्य है। अश्विनी नक्षत्र का सम्बन्ध वायु तत्त्व से है। अश्विनी के स्वामी देवता अश्विनीकुमार हैं।

स्वामी देवताओं के स्वभाव के अनुसार ही इन नक्षत्रों का स्वभाव कहा गया है। नक्षत्र इस भचक्र में क्षेत्र उसे अवधि का प्रतीक है जिस समय चंद्रमा उसे क्षेत्र में से भ्रमण करता हैं 27 नक्षत्र में इस ब्रह्मांड को बांटा गया है यह एक अवस्था का रूप दिया गया है जिस क्षेत्र का स्वामी जो नक्षत्र होता है उस क्षेत्र में नक्षत्र के प्रभाव देखने को मिलते हैं। नक्षत्र स्वामी देवता का प्रभाव उस क्षेत्र में रहने वाले जीवों तथा उस क्षेत्र के भूगोल पर दिखाई पड़ते हैं। अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है ।

जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र के देवता की पूजा करें। ब्रह्मांड में नक्षत्रों कि प्रकृति अनुसार नक्षत्रों के सूक्ष्म रूप से आंकलन करते हैं तो और भी गहरा प्रभाव हमें दिखाई देता है जिस व्यक्ति का जैसा नाम होता है उसका स्वभाव वैसा ही बन जाता है प्राचीन काल में नाम नक्षत्र के अनुसार ही रखा करते थे लेकिन आज की पद्धति में पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर नाम का महत्व हम भूल चुके हैं और जाने अनजाने में स्वभाव के विपरीत प्रकृति वाला नाम रख लेते हैं जिससे व्यक्ति जीवन भर अस्त-व्यस्त रहता है।

हमारे वेद शास्त्रों में नामकरण के अधिकारी कह गए हैं सर्वप्रथम वेदपाठी ब्राह्मण उसके बाद घर के बुजुर्ग तथा माता पिता को अधिकार होता है। बिना अर्थ को जाने नाम रखने का प्रचलन अभी हुआ है और अज्ञानतावश वह मनुष्य सभ्यता के लिए घातक है।हमारी संस्कृति में नामकरण का एक विशेष महत्व होता है नक्षत्रों के अनुसार नामकरण एक वैज्ञानिक तरीका है ज्योतिष एवं सनातन संस्कृति में नामांकरण संस्कार अद्भुत मापदंड है यह मनुष्य के कर्मसिद्धि को सुनिश्चित करता है ंजीवन में व्यवसाय का चुनाव अपनी प्रकृति के अनुसार चुन सकें जिससे व्यक्ति प्रकृति के अनुरूप काम करता है तो सिद्धि प्राप्त होती है ।जब चंद्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा करता है और परिक्रमा करते समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में वर्तमान में भ्रमण करता है नवजात शिशु का जन्म होता है तो उसे समय चंद्रमा जिस चरण में स्थित होता है उस चरण से संबंधित अक्षर पर नामकरण किया जाता है । हमारे ऋषि-मुनियों ने प्राचीन काल में ही इस पद्धति द्वारा नामकरण कि व्यवस्था कर दी थी।

अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातकों का नामाक्षर – चू ,चे ,चो ,ला आदि अक्षरों के अनुसार रखा जाता है।

काल पुरूष कि आकृति के अनुसार नक्षत्र।

काल पुरूष कि आकृति के अनुसार नक्षत्रों का स्थान मनुष्य के शरीर में अंगों का प्रतिनिधित्व करता है जैसे  अश्विनी नक्षत्र काल पुरूष के दोनों घुटने  का प्रतिनिधित्व करता है। महादशा में विपरीत दशा के काल खंड में नक्षत्र अपना प्रभाव मनुष्य के इस अंग पर जरूर छोड़ता है । नक्षत्र कि स्थिति के अनुसार तिल का अथवा चोट का निशान बनता है।

नक्षत्र लोचन परिचय।

लोचन का अर्थ देखना दृष्टिगत। इसको चार श्रेणियों में बांटा गया है।१ अंध लोचन।२ मद लोचन ।३ मध्य ( कारण) लोचन। ४ सुलोचना। नक्षत्रों के इन स्वरूपो का प्रयोग खोई हुई वस्तुओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।

अश्वविनी नक्षत्र मंद लोचन नक्षत्र है।

इस नक्षत्र में खोई हुई वस्तु का कुछ दिनों बाद में पता लगता है।

अश्वविनी नक्षत्र क्षिप्र तथा लघु संज्ञक नक्षत्र है । इस नक्षत्र में दुकान खोलना , शास्त्र विद्या का ज्ञान ग्रहण करना आभूषण एवं नए वस्त्र को धारण करना, शिल्पकार तथा चित्रकारी कला को सीखने के लिए गान वादे शास्त्रीय संगीत इत्यादि कला काम करने के लिए यह नक्षत्र अति शुभ फलदाई होता है।

अश्वनी नक्षत्र कुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिन में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है |

अश्वियुज् या अश्विनी का लिंग स्त्रीलिंग हैं और यह द्विवचन नक्षत्र है । इस नक्षत्र का प्रयोग गर्भधारण संस्कार तथा खोई हुई वस्तु के संबंधित प्रश्नों के हल जानने के लिए किया जाता है।

नक्षत्रों के अनुसार मनुष्य का स्वभाव

मनुष्य के स्वभाव पर नक्षत्र अपना प्रभाव रखते हैं। नक्षत्रों के अनुसार मनुष्य का स्वभाव मनुष्य जीवन पर नक्षत्र का विशेष प्रभाव होता है नक्षत्र चरण से व्यक्ति के नामकरण किया जाता है और उसका प्रभाव जीवन भर बना रहता है शास्त्रों के अनुसार नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति किस स्वभाव का होगा नीचे विवरण दिया गया है। व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उसे नक्षत्र के अनुसार व्यक्ति की प्रकृति की पहचान का पता चलता है। जो जातक जिस नक्षत्र में जन्मं लेता हैं उसके स्वभाव में नक्षत्रों के अनुसार गुण,व्यक्तित्व के प्रभाव देखने को मिलते हैं। नक्षत्र अपने स्वभाव गत जीवन पर भी असर डालते हैं। जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है वह नक्षत्र उसके स्वभाव और आगामी जीवन पर अपना असर जरूर छोड़ता है। इसी विषय पर अलग-अलग विद्वानों ने अपने अनुभव से नक्षत्रों के अनुसार व्यक्ति के स्वभाव कि जानकारियों को संचित किया है।

अश्विन नक्षत्रज्योतिष शास्त्र में सबसे प्रमुख और सबसे प्रथम अश्विन नक्षत्र को माना गया है। जो व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेता है वह बहुत ऊर्जावान होने के सथ-साथ हमेशा सक्रिय रहना पसंद करता है। इनकी महत्वाकांक्षाएं इन्हें संतुष्ट नहीं होने देतीं। ये लोग रहस्यमयी प्रकृत्ति के इंसान होने के साथ-साथ थोड़े जल्दबाज भी होते हैं जो पहले काम कर लेते हैं और बाद में उस पर विचार करते हैं। ये लोग अच्छे जीवनसाथी और एक आदर्श मित्र साबित होते हैं।अतिबुद्धिमान, धनि, विनायांविंत, अति प्रज्ञावाला, यशस्वी, सुखी। भूषण श्रृगांर में रूचि रखने वाला,रूपवान,सबका प्यारा, सब कार्यो को करने में चतुर बुद्धिमान होता हैं।

अश्विनी नक्षत्र कि प्रकृति तामसिक हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तिके स्वभाव में तामसिक गुण ज्यादा होते हैं। व्यक्ति के स्वभाव में तामसिकता बढ़ी रहती है। नाकारात्मक विचार इन पर अपना पुरा प्रभाव रखते हैं। किसी भी विषय पर इनके नाकारात्मक विचार ज्यादा होते हैं। किसी भी कार्य को अपने दृष्टिकोण से ही देखते हैं। शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण नहीं होता। आलस्य परम मित्र होता है।

ज्योतिष शास्त्र का शुक्ष्म अध्ययन तथा समय कि सटीक गणना केलिए नक्षत्रों के चरणों का अध्ययन और इसके साथ नक्षत्र के स्वामी ग्रह तथा नक्षत्रों के चरणों के स्वामी ग्रहो का अध्ययन आप कि प्रमाणिक गणना में सहायक सिद्ध होगी।

१०८ की संख्या का पौराणिक महत्व।

इस ब्रह्मांड को आध्यात्मिक अध्ययन के लिए 108 चरणों में विभाजित किया गया है। यह 108 चरण कि संख्या परमात्मा की पूर्ण प्रार्थना को दर्शाते हैं। १०८ कि संख्या एक तरह सिद्धि तथा पुर्णता को दर्शाती है। जब कोई विद्वान किसी सिद्धि को प्राप्त करता है तो उस व्यक्ति को श्री १०८ कि उपाधि से सम्मानित किया जाता है।इस वह चक्र में 27 नक्षत्र और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण तब 27 नक्षत्र के चरणों कि संख्या १०८ होती है।इस भचक्र में प्रत्येक नक्षत्र के चरण का गृह स्वामी होता है उसे चरण में जन्म लेने वाले जातक का स्वभाव भी उस ग्रह से प्रभावित रहता है1

अश्विनी नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है।

मेष राशि ।

  • (प्रथम चरण ) 0*–3.20 *। इस चरण का स्वामी मंगल हैं। दशा काल में नक्षत्र स्वामी (केतु) के साथ साथ चरण स्वामी का मंगल भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति की अनुसार वह ग्रह उसे अवधि में अपने फल देता है।

  • अश्विनी नक्षत्र का (द्वितीय चरण) 3.20*–6.40* इस चरण का स्वामी शुक्र है। दशा काल में नक्षत्र स्वामी (केतु) के साथ साथ चरण स्वामी का शुक्र भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति की अनुसार वह ग्रह उसे अवधि में अपने फल देता है।

  • अश्विनी नक्षत्र का (तृतीय चरण) 6.40*—10* इस चरण का स्वामी बुध हैं। दशा काल में नक्षत्र स्वामी (केतु) के साथ साथ चरण स्वामी का बुध भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति की अनुसार वह ग्रह उसे अवधि में अपने फल देता है।

  • अश्विनी नक्षत्र का (चतुर्थ चरण) 10*—13.20* इस चरण का स्वामी चन्द्रमा हैं। दशा काल में नक्षत्र स्वामी (केतु) के साथ साथ चरण स्वामी का चन्द्रमा भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति की अनुसार वह ग्रह उसे अवधि में अपने फल देता है।

अश्वविनी नक्षत्र कि योनि ,गणादि परिचय।

तैत्तिरीय संहिता में नक्षत्रों कि योनि,गण,वर्ग,युंजा,नाड़ी,वश्य,बैर योनि के बारे में विशेष रूप से ध्यान देने के लिए कहा गया है। मनुष्य जीवन में जीवन साथी का चुनाव जीवन का अहम निर्णय होता है।और इस निर्णय के लिए शास्त्रों में कुंडली मिलान कि प्रक्रिया से अपने स्वभाव से मित्रता स्वभाव वाले जीवनसाथी का चुनाव और उसकि प्रकृति के अनुसार व्यक्ति के जीवन में विचारों कि समानता, निर्णय क्षमता कि पहचान कि जा सके।इसके लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने शूक्ष्मता से अध्ययन करके नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति के मूल प्रकृति कि पहचान कि है , और इन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया।

नक्षत्रों कि ये सात तरह से कि गई पहचान से मनुष्य के स्वभाव के मूल रूप को दर्शाती है। इनमें प्रथम विचार योनि पर किया गया है।योनि से अभिप्राय यहां योनि चक्र के अंतर्गत प्राणी रूपी शरीर से है। नक्षत्र कि योनि स्वरूप प्राणी के शरीर जो योनि नक्षत्रानुसार चिन्हित है उस प्राणी का स्वरूप के अंश मनुष्य के स्वभाव में दिखाई देते है।ज्योतिषार के अनुसार योनि स्वरूपी शरीरों कि पहचान तेरह रूपों में कि गई है। योनि,गण,वर्ग,युंजा,नाड़ी,वश्य,बैर योनि आदि।

नक्षत्र योनि परिचय।

महिष योनि २ सिंह योनि ३ वानर योनि ४ नकुल योनि ५ मृग योनि ६ मूषक योनि ७ मार्जार योनि ८ व्याघ्र योनि ९ अश्व योनि १० गौ योनि ११ श्वान् योनि १२ मेष योनि १३ गज योनि।

अश्विनीनक्षत्र कि योनि अश्वः(घोड़ा) है। और इसकी बैरी योनि महिष है। जिस नक्षत्र कि योनि महिष हो उसके लिए अश्वः योनि वाले नक्षत्रानुसार व्यक्ति से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं।

नक्षत्र गण परिचय।

गण भी मनुष्य के एक तरह से स्वभाव की पहचान को ही नाम दिया गया है। व्यक्ति के नक्षत्रानुसार जो उसका गण होता है, उस व्यक्ति के स्वभाव में गण अनुसार स्वभाव के अंश होते हैं, ये तीन रूपों में चिन्हित है । प्रथम गण देवः। द्वितीय गण मनुष्यः। तृतीय गण राक्षस

देव गण का स्वभाव।

देव गण तथा मनुष्य गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों के साथ इनका प्रभाव सोम्य रूप में होता है । राक्षस गण और देव गण कि आपस में शत्रुता होती है।

मनुष्यः गण का स्वभाव ।

मनुष्यः गण तथा देव गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों के साथ इनका प्रभाव सोम्य रूप में होता है । मनुष्यः गण और राक्षसः गण कि आपस में शत्रुता होती है।

राक्षसः गण का स्वभाव ।

राक्षसः गण तथा मनुष्य गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों में इसका प्रभाव सोम्य रूप में होता है। राक्षस गण और देव गण कि आपस में शत्रुता होती है ।

अश्विनीनक्षत्र का गण देवःहै। अश्वविनी नक्षत्र के जातकों को राक्षस गण वाले नक्षत्रों से संबंधित व्यक्तियों से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं।

नक्षत्र वर्ग परिचय।

तीसरे स्थान पर आता हैं वर्ग । वर्ग भी एक तरह से स्वभाव कि पहचान का घोतक होता है , वर्गों की पहचान आठ रूपों में की गई है नीचे दी गई सारणी में प्रत्येक वर्ग कि स्वयं से पांचवीं गिनती वाले गण कि शत्रुता है। नक्षत्रानुसार अपने से पांचवें वर्ग वाले नक्षत्र के व्यक्ति से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं।

१ वर्ग मेषः २ वर्ग मृग ३ वर्ग मूषकः ४ वर्ग सर्प ५ वर्ग श्वानर६ वर्ग सिंह७ वर्ग मार्जार ( बिलाव) ८ वर्ग गरूड ।

अश्विनी नक्षत्र का वर्ग सिंह है और इसकी शत्रुता मृग वर्ग से हैं।आसामी नक्षत्र के जातक को वर्ग मृग वाले नक्षत्र के व्यक्तियों से मित्रता नहीं करनी चाहिए।

नक्षत्र युंजा परिचय।

नक्षत्रों के अनुसार चौथे स्थान पर पहचान को युंजा के रूप में जानते हैं। यह भी स्वभाव का एक प्रारूप ही होता है।तीन प्रकार के है।१ युंजा पूर्व२ युंजा मध्य३ युंजा अंत्य।

अश्विनी नक्षत्र का युंजा पूर्व है।

नक्षत्र नाड़ी परिचय।

नक्षत्र वश्य परिचय।

वस्य से अभिप्राय है नक्षत्र योनि कि शरीर कि पहचान तथा आचरण को दर्शाता है। इससे नक्षत्रों के विचरण तथा जीवन में पथ कि पहचान होती है।

अश्विनी नक्षत्र के वश्य कि पहचान चतुष्पद के रूप में होती है।

नक्षत्र बैर योनि परिचय।

बैर योनि बैरी योनि से अभिप्राय है,शत्रु योनि।प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वभाव होता है और वह स्वभाव किसी व्यक्ति के लिए ठीक होता है तथा किसी व्यक्ति के लिए गलत होता है। हम गलत व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ कुछ समय बिता सकते हैं लेकिन पूरा जीवन नहीं बिता सकते इसलिए बैरी योनि अनुसार नक्षत्र वाले व्यक्ति से संपर्क नहीं रखना चाहिए वह शत्रु होता है उसकी प्रकृति आपके नक्षत्र के अनुसार अनुकूल नहीं होती।इस लिए कुंडली मिलान करते समय पर बैरी योनि के नक्षत्र से विवाह करना निषेध बताया गया है क्योंकि वह विपरीत स्वभाव का होता है।इसका प्रयोजन -इस प्रणाली से जातक को पता चलता है कि उसका बैर योनि नक्षत्र कौन सा है । अगर बैरी योनि का नक्षत्र हो तो विवाह नहीं करना चाहिए।अश्वविनी नक्षत्र कि योनि अश्व है और इसका बैर महिष योनि से है।

इस पोस्ट से हमने अश्वविनी नक्षत्र के बारे में जानकारी प्राप्त कि।

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