मनुष्य कि पहचान उसके हस्ताक्षर से होती है। या यूं कहें कि वह अपनी पहचान अपने हस्ताक्षर के द्वारा स्थापित करता है। व्यक्ति के हस्ताक्षर उसकी स्वीकृति होती है जब भी कोई व्यक्ति किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर करता है तो वह उसकी स्वीकृति होती है। पहले हमारे हस्ताक्षर हमारे अंगुठे कि छाप के रूप में होते थे।
जिनकी पहचान केवल हमसे ही जुड़ी हुई थी लेकिन इस प्रणाली को अनपढ़ता बताकर पश्चिमी देशों में हस्ताक्षर किए शुरुआत हुई। आपका हस्ताक्षर एक तरह से आपके व्यक्तित्व का परिचय भी देता है।आप जिस तरीके से अपने हस्ताक्षर को बनाते हैं आपका स्वभाव भी वैसा ही बन जाता है।
जैसी हाथ कि लेखनी होती है वैसे ही स्वभाव का निर्माण होता है।और इस संसार के साथ आपका तालमेल बैठता है एक दुसरे को समझने के बाद।यह संसार आपको कुछ भी देने कि शुरुआत तब ही करता है जब आप इस दुनियां को समझ में आने लगते हैं।
आप भी किसी विषय वस्तु को तब ही ग्रहण करते हैं जब वह पूर्णतया आपको समझ में आने लगती है। प्राप्ति का नियम है संसार में जब तक आप किसी कि समझ में नहीं आते तब तक आपको मिलने कि शुरुआत नहीं होती।आपके हस्ताक्षर आपके व्यक्तित्व तथा आपके स्वभाव कि पहचान बनते है। इस लिए अपने हस्ताक्षर को पुरी तरह से विकसित रूप में करें। तथा अपने स्वभाव कि अनचाही त्रुटियों को दूर रखें।
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