पुंसवन संस्कार का उद्देश्य सन्तान वीर्य वति तथा स्वस्थ पैदा हों । संसार में प्रत्येक गर्भ का यह संस्कार होना चाहिए । माता को जननीं कहा गया है। इस संसार में स्त्री को प्रकृति कहा गया है। बच्चे कि उत्पत्ति में पिता से अधिक माता का सहयोग होता है।
शुभ नक्षत्र:- मृगशिरा ,पुनर्वसु ,पुष्य, हस्त, मूल, श्रवण।
शुभ तिथी:- सभी शुभ तिथियां।
शुभ वार :- रवि ,बृहस्पति,मंगल।
शुभ तिथी:– रिक्तता तिथियां निषेध है।
शुभ पक्ष:- शुक्ल पक्ष हि शुभ होता हैं ।
सही समय तीसरा महिना।
कुछ ध्यान रखने योग्य बातें:-
गर्भवती स्त्री पहले दिन से ही रोज खुश रहे किसी प्रकार के शोक अथवा चिंता से दुर रहें। ओर अपने स्वास्थय तथा स्वच्छ वातावरण का पुरा ध्यान रखें। नित्य अपने पुर्वजों ,गुरू जनो तथा अपने ईष्ट का ध्यान करें। इस लिए इस अवस्था में अपने विचारों को सात्विक रखें।
मलिन विकृति तथा हिन भावना वाले व्यक्ति को स्पर्श ना करें । गला- सड़ा भोजन ना करें, केवल शुद्ध भोजन ही करें। दुर्गन्ध वाली ,डरावनी,सुनसान जगहों पर ना जाएं। शमशान घाट ना जायें तथा अकेली घर से बाहर किसी को साथ लेकर ही जाये। रात्री काल में वृक्ष के नीचे ना जाएं!
गर्भवती स्त्री को चाहिए कि वह मन को प्रसन्न रखें,रस दार तथा पोष्टिक भोजन करें। शिक्षा प्रद कहानियां एवं महापुरूषों कि जीवन शैली को पढें। इस समय गर्भ में मस्तिष्क का निर्माण शुरू हो जाता है। अपने स्वभाव को शांत रखें।
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