पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का पूर्ण परिचय
आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु वर्तमान ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का पौराणिक परिचय
विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इनमें चंद्रमा कि सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी की व्याख्या सत्ताईस बहनों में सबसे अधिक सुंदर होने के कारण चंद्रमा कि प्रिया बताया गया है। पूर्वाफाल्गुनी भचक्र का ग्यारहवां नक्षत्र हैं।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कि आकृति, दिशा, तत्व एवं जाति।
पूर्वाफाल्गुनी मे दो तारो का समूह तथा खटिया कि आकृति बनती है। पूर्वाफाल्गुनी,नक्षत्र उत्तर से दिखलाई पड़ते हैं ॥ पूर्वाफाल्गुनी की ब्रहामण जाति है ,पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का सम्बन्ध अग्नि तत्त्व से है।
पूर्वाफाल्गुनी के स्वामी देवता भग हैं।
स्वामी देवताओं के स्वभाव के अनुसार ही इन नक्षत्रों का स्वभाव कहा गया है।
नक्षत्र इस भचक्र में उस क्षेत्र की अवधि का प्रतीक है जब चंद्रमा उस क्षेत्र में भ्रमण करता हैं । 27 नक्षत्रों को हमारे ब्रह्मांड के साथ बराबर बराबर 27 भागों में बांटा गया है। इसके 27 क्षेत्रों को अपनी-अपनी अवस्था के अनुसार का रूप दिया गया है जिस क्षेत्र का स्वामी जो नक्षत्र होता है उस क्षेत्र में नक्षत्र के प्रभाव देखने को मिलते हैं। नक्षत्र स्वामी देवता का प्रभाव उस क्षेत्र में रहने वाले जीवों तथा उस क्षेत्र के भूगोल पर दिखाई पड़ते हैं।
ब्रह्मांड में नक्षत्रों कि प्रकृति अनुसार नक्षत्रों के सूक्ष्म रूप से आंकलन करते हैं तो और भी गहरा प्रभाव हमें दिखाई देता है जिस व्यक्ति का जैसा नाम होता है उसका स्वभाव वैसा ही बन जाता है । प्राचीन काल में नाम नक्षत्र के अनुसार ही रखा करते थे लेकिन आज की पद्धति में पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर नाम का महत्व हम भूल चुके हैं और जाने अनजाने में स्वभाव के विपरीत प्रकृति वाला नाम रख लेते हैं जिससे व्यक्ति जीवन भर अस्त-व्यस्त रहता है।
हमारे वेद शास्त्रों में नामकरण के अधिकारी कह गए हैं सर्वप्रथम घर के बुजुर्ग उसके बाद माता पिता तथा वेदपाठी ब्राह्मण को अधिकार होता है। बिना अर्थ को जाने नाम रखने का प्रचलन अभी हुआ है और अज्ञानतावश यह तरीका मनुष्य-सभ्यता के लिए घातक है।
हमारी संस्कृति में नामकरण का एक विशेष महत्व होता है नक्षत्रों के अनुसार नामकरण एक वैज्ञानिक तरीका है। ज्योतिष एवं सनातन संस्कृति में नामांकरण संस्कार अद्भुत मापदंड है यह मनुष्य के कर्मसिद्धि को सुनिश्चित करता है।
जीवन में व्यवसाय का चुनाव तथा जीवनसाथी का चुनाव व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार करें जिससे व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुरूप काम करे और जीवन में सहयोगी भी स्वयं कि प्रकृति को समझने वाला है तो सिद्धि प्राप्त होती है और व्यक्ति के अंदर इन सब गुणों की पहचान नक्षत्र के द्वारा की जाती है।
जब चंद्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा करता है और परिक्रमा करते समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में वर्तमान में भ्रमण करता है उसी भ्रमण काल में नवजात शिशु का जन्म होता है तो उस समय चंद्रमा जिस चरण में स्थित होता है उस चरण से संबंधित अक्षर से ही नवजात शिशु का नामकरण किया जाता है । हमारे ऋषि-मुनियों ने प्राचीन काल में ही इस पद्धति द्वारा नामकरण कि व्यवस्था कर दी थी।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातकों का नामाक्षर मो ,हा,टी ,टू आदि अक्षरों के अनुसार रखा जाता है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कि स्वामी राशि सिंह है।
काल पुरूष कि आकृति के अनुसार नक्षत्रों का स्थान मनुष्य के शरीर में अंगों का प्रतिनिधित्व करता है जैसे
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र काल पुरूष के गुप्तांगों का प्रतिनिधित्व करता है। महादशा में विपरीत दशा के काल खंड में नक्षत्र अपना प्रभाव मनुष्य के इस अंग पर जरूर छोड़ता है । नक्षत्र कि स्थिति के अनुसार तिल का अथवा चोट का निशान बनता है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सुलोचन नक्षत्र है।
इस नक्षत्र में खोई हुई वस्तु का कभी भी पता नहीं चलता।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र की संज्ञा उग्र और क्रुर है। इस नक्षत्र में शस्त्रों का निर्माण, अग्नि संबंधित से संबंधित कोई भी कार्य शुभ फलदाई होता है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कुल संज्ञक नक्षत्र हैं।
इस में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है |
पूर्वाफाल्गुनी का लिंग स्त्रीलिंग और यह द्विवचन नक्षत्र है।
इस नक्षत्र का प्रयोग गर्भधारण संस्कार तथा खोई हुई वस्तु के संबंधित प्रश्नों के हल जानने के लिए किया जाता है।
नक्षत्रों के अनुसार मनुष्य का स्वभाव ।
मनुष्य जीवन पर नक्षत्र का विशेष प्रभाव होता है नक्षत्र चरण से व्यक्ति के नामकरण किया जाता है और उसका प्रभाव जीवन भर बना रहता है शास्त्रों के अनुसार नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति किस स्वभाव का होगा नीचे विवरण दिया गया है।
व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उसे नक्षत्र के अनुसार व्यक्ति की प्रकृति की पहचान का पता चलता है।
जो जातक जिस नक्षत्र में जन्मं लेता हैं उसके स्वभाव में नक्षत्रों के अनुसार गुण,व्यक्तित्व के प्रभाव देखने को मिलते हैं। नक्षत्र अपने स्वभाव गत जीवन पर भी असर डालते हैं। जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है वह नक्षत्र उसके स्वभाव और आगामी जीवन पर अपना असर जरूर छोड़ता है। इसी विषय पर अलग-अलग विद्वानों ने अपने अनुभव से नक्षत्रों के अनुसार व्यक्ति के स्वभाव कि जानकारियों को संचित किया है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति स्वभाव से चपल, कुकर्म चरित्र वाला, त्यागी, दृढ़ , कामुक , होते हैं। इनकी बाणी प्यारी होती है ,उदार, कान्तिवान,फिरने वाला, राज सेवा में तत्पर होते हैं। स्वभाव में कहता होने के कारण से निक्कू कर्म अपनी वाणी के पीछे छुपा लेते हैं और यह इनके जीवन में एक अभिशाप का काम करता है अपनी शक्ति अपने समाजिक अख्तर के कारण इनको जो मिलता है उसका यह कई बार दुरुपयोग करते हैं।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों में संगीत और कला की विशेष समझ होती है जो बचपन से ही दिखाई देने लगती है। ये लोग नैतिकता और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं, शांति पसंद होने की वजह से किसी भी तरह के विवाद या लड़ाई-झगड़े में पड़ना पसंद नहीं करते। इनके पास धन की मात्रा अच्छी खासी होती है जिसकी वजह से ये भौतिक सुखों का आनंद उठाते हैं। ये लोग अहंकारी प्रवृत्ति के होते हैं।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र राजसिक प्रकृति का नक्षत्र होता हैं। इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में मन कि चंचलता अधिक होती है। इनका निर्णय स्पष्ट नहीं बन पाता। इस प्रकृति के व्यक्ति सिर्फ पैसे पर अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं और इसके पिछे का विज्ञान नहीं समझ पाते। ऐसे व्यक्ति रोग कि दवा ढूंढ कर रोगी बनते है।
ज्योतिष शास्त्र का शुक्ष्म अध्ययन तथा समय कि सटीक गणना केलिए नक्षत्रों के चरणों का अध्ययन और इसके साथ नक्षत्र के स्वामी ग्रह तथा नक्षत्रों के चरणों के स्वामी ग्रहो का अध्ययन आप कि प्रमाणिक गणना में सहायक सिद्ध
१०८ की संख्या का पौराणिक महत्व :-
इस ब्रह्मांड को आध्यात्मिक अध्ययन के लिए 108 चरणों में विभाजित किया गया है।
यह 108 चरण कि संख्या परमात्मा की पूर्ण प्रार्थना को दर्शाते हैं। १०८ कि संख्या एक तरह सिद्धि तथा पुर्णता को दर्शाती है। जब कोई विद्वान किसी सिद्धि को प्राप्त करता है तो उस व्यक्ति को श्री १०८ कि उपाधि से सम्मानित किया जाता है।
इस वह चक्र में 27 नक्षत्र और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण तब 27 नक्षत्र के चरणों कि संख्या १०८ होती है।
इस भचक्र में प्रत्येक नक्षत्र के चरण का गृह स्वामी होता है उसे चरण में जन्म लेने वाले जातक का स्वभाव भी उस ग्रह से प्रभावित रहता है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र है ।
राशि चक्र में बनने वाले 360 डिग्री के क्षेत्र में पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र को ग्यारहवां नक्षत्र गिना जाता है और इस भचक्र कि 108 चरणों कि श्रृंखला में 41,42,43,44 वें चरण पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के है।
41 पूर्व फाल्गुनी (प्रथम चरण )133.20—136.40 इस चरण का स्वामी सूर्य हैं।
दशा काल में नक्षत्र स्वामी शुक्र के साथ साथ चरण स्वामी का सूर्य भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति के अनुसार वह ग्रह उस अवधि में अपने फल देता है।
42 पूर्व फाल्गुनी (द्वितीय चरण)136.40—140.00 इस चरण का स्वामी बुध हैं।
दशा काल में नक्षत्र स्वामी शुक्र के साथ साथ चरण स्वामी का बुध भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति के अनुसार वह ग्रह उस अवधि में अपने फल देता है।
43 पूर्व फाल्गुनी(तृतीय चरण)140.00–143.20 इस चरण का स्वामी शुक्र हैं।
दशा काल में नक्षत्र स्वामी शुक्र के साथ साथ चरण स्वामी शुक्र भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति के अनुसार वह ग्रह उस अवधि में अपने फल देता है।
44 पूर्व फाल्गुनी (चतुर्थ चरण)143.20–146.40 इस चरण का स्वामी मंगल हैं।
दशा काल में नक्षत्र स्वामी शुक्र के साथ साथ चरण स्वामी मंगल भी अपने प्रभाव को दिखाता है। कुंडली की स्थिति के अनुसार वह ग्रह उस अवधि में अपने फल देता है।
तैत्तिरीय संहिता में नक्षत्रों कि योनि,गण,वर्ग,युंजा,नाड़ी,वश्य,बैर योनि के बारे में विशेष रूप से ध्यान देने के लिए कहा गया है। मनुष्य जीवन में जीवन साथी का चुनाव जीवन का अहम निर्णय होता है और इस निर्णय के लिए शास्त्रों में कुंडली मिलान कि प्रक्रिया से अपने स्वभाव से मित्रता स्वभाव वाले जीवनसाथी का चुनाव और उसकि प्रकृति के अनुसार व्यक्ति के जीवन में विचारों कि समानता, निर्णय क्षमता कि पहचान कि जाती है ।
जीवन साथी चुनने से पहले जीवन साथी के नक्षत्र के स्वभाव कि पहचान कि जाती और इन सात बिंदुओं पर विचार किया जाता है। प्राचीन काल से इस विधि का प्रयोग करके ही जीवन साथी का चुनाव किया जाता था ।
इसके लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने शूक्ष्मता से अध्ययन करके नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति के मूल प्रकृति कि पहचान कि है ।
और इन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया।
१ नक्षत्रों कि ये सात तरह से कि गई पहचान से मनुष्य के स्वभाव के मूल रूप को दर्शाती है।
इनमें प्रथम विचार योनि पर किया गया है।
योनि से अभिप्राय यहां योनि चक्र के अंतर्गत प्राणी रूपी शरीर से है।
नक्षत्र कि योनि स्वरूप प्राणी के शरीर जो योनि नक्षत्रानुसार चिन्हित है उस प्राणी का स्वरूप के अंश मनुष्य के स्वभाव में दिखाई देते है।
ज्योतिषार के अनुसार योनि स्वरूपी शरीरों कि पहचान तेरह रूपों में कि गई है।
१ महिष योनि २ सिंह योनि ३ वानर योनि ४ नकुल योनि ५ मृग योनि ६ मूषक योनि ७ मार्जार योनि ८ व्याघ्र योनि ९ अश्व योनि १० गौ योनि ११ श्वान् योनि १२ मेष योनि १३ गज योनि।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कि योनि मूषक है।
और इसकी बैरी योनि मार्जार है। इस नक्षत्र कि योनि मूषक हैं इस लिए मार्जार योनि वाले नक्षत्रानूसार व्यक्ति से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं।
२ गण भी मनुष्य के एक तरह से स्वभाव की पहचान को ही नाम दिया गया है। व्यक्ति के नक्षत्रानूसार जो उसका गण होता है, उस व्यक्ति के स्वभाव में गण अनुसार स्वभाव के अंश होते हैं।
ये तीन रूपों में चिन्हित है । प्रथम गण देवः, द्वितीय गण मनुष्यः, तृतीय गण राक्षसः।
देव गण का स्वभाव प्रभाव देव गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों में इसका प्रभाव सोम्य रूप में होता है ।
मनुष्यः गण का स्वभाव प्रभाव मनुष्यः गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों में देव और राक्षस गण दोनों का प्रभाव सोम्य रूप तथा कुटिल रूप में होता है ।
राक्षसः गण का स्वभाव राक्षसः गण की नक्षत्रसूत्री वाले व्यक्तियों में इसका प्रभाव कुटिल रूप में होता है ।
राक्षस गण और देव गण कि आपस में शत्रुता होती है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का गण मनुष्य है ।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के जातकों के लिए राक्षस गण वाले नक्षत्रों से संबंधित व्यक्तियों से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं। तथा देव और मनुष्य गण वाले नक्षत्र शुभफलदाई होते हैं।

३ तीसरे स्थान पर आता हैं वर्ग ।
वर्ग भी एक तरह से स्वभाव कि पहचान का घोतक होता है , वर्गों की पहचान आठ रूपों में की गई है नीचे दी गई सारणी में प्रत्येक वर्ग कि स्वयं से पांचवीं गिनती वाले गण कि शत्रुता है।
नक्षत्रानूसार अपने से पांचवें वर्ग वाले नक्षत्र के व्यक्ति से मित्रता शास्त्रों में निषेध बताईं गईं हैं।
१ वर्ग मेषः
२ वर्ग मृग
३ वर्ग मूषकः
४ वर्ग सर्प
५ वर्ग श्वानर
६ वर्ग सिंह
७ वर्ग मार्जार ( बिलाव)
८ वर्ग गरूड
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का वर्ग मूषक है और इसकी शत्रुता मार्जार ( बिलाव) से हैं।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के जातक को मार्जार ( बिलाव) वर्ग वाले नक्षत्र के व्यक्तियों से मित्रता नहीं करनी चाहिए।
४ नक्षत्रों के अनुसार चौथे स्थान पर पहचान को युंजा के रूप में जानते हैं। यह भी स्वभाव का एक प्रारूप ही होता है।
तीन प्रकार के है।
१ युंजा पूर्व
२ युंजा मध्य
३ युंजा अंत्य
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का युंजा मध्य है।
५ नक्षत्रों के अनुसार व्यक्ति के शरीर कि संरचना तथा स्वभाव कि पहचान नाड़ियों से कि गई है। इनकी तीन रूपों में पहचान है।
नाड़ी तीन प्रकार की होती है।
आद्य नाड़ी,मध्य नाड़ी और अंत्य नाड़ी।
नाड़ी एक होने पर दोष होता है । नाड़ी मेलापक कि विस्तृत जानकारी आगे दी जाएगी।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र की नाड़ी मध्य है ।
६ वस्य से अभिप्राय है नक्षत्र योनि कि शरीर कि पहचान तथा आचरण को दर्शाता है। इससे नक्षत्रों के विचरण तथा जीवन में पथ कि पहचान होती है।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के वश्य कि पहचान वनचर के रूप में होती है।
७ बैर योनि ।
बैरी योनि से अभिप्राय है,शत्रु योनि।
प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वभाव होता है और वह स्वभाव किसी व्यक्ति के लिए ठीक होता है तथा किसी व्यक्ति के लिए गलत होता है। हम गलत व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ कुछ समय बिता सकते हैं लेकिन पूरा जीवन नहीं बिता सकते इसलिए बैरी योनि अनुसार नक्षत्र वाले व्यक्ति से संपर्क नहीं रखना चाहिए वह शत्रु होता है
उसकी प्रकृति आपके नक्षत्र के अनुसार अनुकूल नहीं होती।
इस लिए कुंडली मिलान करते समय पर बैरी योनि के नक्षत्र से विवाह करना निषेध बताया गया है क्योंकि वह विपरीत स्वभाव का होता है।
इसका प्रयोजन :- इस प्रणाली से जातक को पता चलता है कि उसका बैर योनि नक्षत्र कौन सा है ।
अगर बैरी योनि का नक्षत्र हो तो विवाह नहीं करना चाहिए।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कि योनि मूषकः: है और इसका बैर मार्जार योनि से है।
वर्तमान गणना के अनुसार भचक्र में पड़ने वाले 27 नक्षत्रों के समूहों कि संख्या 218 हैं । किसी नक्षत्र में एक तारा है तो किसी नक्षत्रों में एक से अधिक तारों का समुह होता है वह हमें आपस में जुड़े हुए दिखाई देते हैं। इन तारों के समूह से बनी हुई आकृति में जो उसका स्वरूप और रंग दिखाई देता है। उसी आकृति के अनुसार ही व्यक्ति के स्वभाव का आकलन किया जाता है ।
धन्य हैं हमारी संस्कृति और धन्य है हमारे ऋषि मुनि जिन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से इतनी दूर स्थित होने पर भी इन नक्षत्रों का अध्ययन किया और उनके रंगों का विश्लेषण किया। वर्तमान समय में नासा एक ऐसा संस्थान है जो हर ग्रह नक्षत्र की वर्तमान स्थिति का विवरण करता है लेकिन हमारे ऋषि मुनियों द्वारा वैदिक काल में ही अपनी दिव्य दृष्टि से इनका उल्लेख कर दिया था।
प्रश्न लग्न तथा जन्म पहचान में नक्षत्र के रंग के अनुसार ही जातक पर रंग का प्रभाव दिखाई पड़ता है प्रश्न लग्न में किए गए प्रश्नों को ज्ञात करने के लिए गोचर में चंद्रमा का गोचर किस नक्षत्र में है उसे नक्षत्र से संबंधित रंग का उल्लेख प्रश्न का हल कारक होता है।
जातक के जन्म समय जो नक्षत्र होता है उस नक्षत्र के अनुसार ही व्यक्ति के शरीर पर आभा दिखाई देती है। आकाश में देखने पर नक्षत्रों के रंग भी वैसे ही दिखाई देते हैं।
पूर्व-फाल्गुनी नक्षत्र का रंग हलका भूरा है।
पूर्व-फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे जातकों के आभा मंडल में हलका भूरे वर्ण से संबंधित रंग का प्रभाव दिखाई देता है।
पौराणिक स्वरूप में नक्षत्रो के स्वरूप कि पहचान चंद्रमा कि पत्नियों के रूप में कि गई है । 27 नक्षत्रों के नाम और इनके नाम से ही चंद्रमा कि 27 पत्नियों के नाम रखे गए हैं। चंद्रमा प्राणी के शरीर में मन का कारक है। यह 27 नक्षत्र को चंद्रमा की पत्तियों से जोड़ा गया है इसका वैज्ञानिक कारण है की चंद्रमा कि यह 27 पत्नियां मनस कि अवस्थाएं हैं ।
मनस पर जीवन साथी के प्रति प्रेम की 27 तरह कि अवस्थाएं हैं जो प्रत्येक व्यक्ति कि अलग-अलग है। जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है उस नक्षत्र से पत्नी के स्वरूप में चंद्रमा का कैसा स्वभाव है वैसा ही स्वभाव व्यक्ति अपने जीवनसाथी के साथ व्यवहार में लेकर आता है इसीलिए जब कुंडली मिलन होता है तब मित्र नक्षत्र के साथ ही शादी का प्रस्ताव रखा जाता है।
27 नक्षत्र को राजा दक्ष प्रजापति की कन्याओं के नाम दिए गए हैं यह एक मानस भाषा है इसके अलावा ज्योतिषीय सूत्रों में नक्षत्र को भी पुरुष लिंग स्त्रीलिंग कि पहचान दी गई है और वह अपने स्वभाव तथा स्वरूप के अनुसार फल देते हैं।
जिस नक्षत्र में व्यक्ति का स्वरूप होता है उसे वैसे ही स्वरूप के रूप में पत्नी सुंदर लगती है जैसे जन्म समय पर अश्विनी नक्षत्र था तो उस व्यक्ति कि पसंद या मानसिक स्वीकृति केवल अश्विनी नक्षत्र तथा उसके मित्र नक्षत्रों के स्वरूप को पसंद करता है अन्य तथा शत्रु नक्षत्रों में जन्मे व्यक्ति को देखते ही नकार देता है।
व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाएं व्यक्ति के स्वभाव तथा उसके मानस पटल का परिचय देती है। चंद्रमा के नक्षत्र भ्रमण के अनुसार व्यक्ति की कल्पना क्षमता तथा सोचने और वैचारिक तथा मानसिक अवस्था कि जानकारी मिलती है। नक्षत्रों के पर्यायवाची शब्द जो प्राचीन काल में प्रचलित थे जो धीरे-धीरे लुप्त होते गए
पौराणिक स्वरूप में वेदों कि तकनीकी भाषा को सरलता से समझाया गया है। व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हो उसे नक्षत्र को के देव स्वरूप को पूजना चाहिए उसे स्वयं का मनस पटल और ज्यादा क्षमता वान बनता है।
उपचारीय ज्योतिष में जन्म नक्षत्र की पूजा का विधान है। प्रत्येक नक्षत्र के संबोधन में अलग-अलग मंत्रोच्चारण का विधान है।
अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है |जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र के देवता की पूजा करें।
नक्षत्रों के मंत्रों का उल्लेख अलग-अलग रूप में वर्णित है।
सनातन पुजा पद्धति में प्राचीन काल में वैदिक मंत्रों का उवाच किया जाता था और फिर पौराणिक मंत्रों का उवाच होने लगा। नक्षत्रों के जप मंत्रों में बीज मंत्र का प्रयोग किया जाता है। इनका जाप करते समय अशुद्धि का मुख्य रूप से ध्यान रखें तथा विना गुरु के आदेश के जप नहीं करना चाहिए।
नक्षत्र नामानूसार मंत्र, देवता मंत्र , पौराणिक मंत्र आदि । इन सभी मित्रों का अलग-अलग पूजा विधान में प्रयोग किया जाता है।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का नाम मंत्र – ॐ पुर्वा फाल्गुनीभ्यां नमः ।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र देवता नाम मंत्र -ॐ भगाय नमः ।।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का पौराणिक मंत्र –
भगं रथवरारुढं व्दिभुंज शंखचक्रकम् ।
फाल्गुनीदेवतां ध्यायेत् भक्ताभीष्टवरप्रदाम् ।।
पुर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का पीड़ा हर मंत्र –
स्वर्वेद्यावश्वीनौ देवौ व्दिभुजौ शुक्लवर्णको :l
सर्वारिष्ट विनाशाय अश्विभ्यांवै नमो नमःll