वर्तमान काल में इस लोकिक ज्ञान को व्यवसाय के रुप में ही देखा जाता है।ज्योतिष शास्त्र केवल धन अर्जित करना मुख्य उद्देश्य बन चुका है। जिसके कारण ज्योतिष शास्त्र अपने मूल सिद्धांतों से दूर होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण इस ज्ञान को अधुरे नियमों के आधार पर ग्रहण करना। इससे ग्रहण किया गया ज्ञान सार्थक सिद्ध नहीं हो पाता है। प्राचीन काल में ज्योतिष शास्त्र को संकल्प करके ग्रहण किया जाता था। ज्योतिष शास्त्र व अन्य परा विद्याओं को ग्रहण करके इन विषय से आजिविका निर्धारण करने के अधिकारी कोन बन सकता है।
सनातन संस्कृति में शिक्षा एवं ज्ञान से संबंधित एक ऐसा आवरण रहा है कि जो व्यक्ति जैसा ज्ञान ग्रहण करना चाहता है वह व्यक्ति वैसा ही आचरण बनाकर उस ज्ञान अथवा विद्या को ग्रहण कर सकता है। ज्ञान के इस संसार में प्रत्येक विद्या एक सिद्धांत पर आधारित है उसकी हर एक स्थिति पर सिद्धांतों का अधिकार है।
जो व्यक्ति इन सिद्धान्तों को अपना कर ज्ञान ग्रहण करता है वह इस क्षेत्र में सफल हो जाता है।
जैसे हम किसी विद्या को ग्रहण करना चाहते हैं तो उसके लिए एक सिद्धांत है और जब हम किसी विद्या से धन अर्जित करना चाहते हैं तो उसका भी एक सिद्धांत है ।
अगर व्यक्ति अपने पूर्वजों के कार्य को करता है तो
वह ज्ञान उसके अनुवांशिक गुणों में होता है इसलिए उस कार्य से धन अर्जित करना उसके लिए सरल रहता है।
जैसे बढई का बेटा बढई होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में उसके पूर्वजों के व्यवसाय या पीढ़ी दर पीढ़ी से चले आने वाले व्यवसाय के गुण होते हैं। अगर व्यक्ति अपने पूर्वजों से संबंधित कार्य से संबंधित कोई कार्य करता है तो उसको अधिक सीखने की जरूरत है नहीं पड़ती है वह व्यक्ति औरों से ज्यादा और जल्दी उस कार्य को करने में सक्षमता प्राप्त कर लेता है।
और यदि व्यक्ति कि रूचि किसी अन्य कार्य में होती है और वह उस कार्य से संबंधित ज्ञान को ग्रहण करके माप दण्डों को पूरा करता है तो वह ज्ञान ग्रहण करके उस ज्ञान को विकसित कर सकता है एवं उस कार्य से आजिविका के लिए धन अर्जित कर सकता है।
इसी प्रकार हमारे इतिहास में भी हुआ है विश्वामित्र एक क्षत्रिय होते हुए भी ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त कर महर्षि की स्थिति तक पहुंचे ठीक उसी प्रकार वाल्मीकि जी ने भी ज्ञान ग्रहण करके परमात्मा को प्राप्त किया हमारी सनातन संस्कृति में किसी भी ज्ञान को कोई भी सीख सकता था ऐसी परंपरा रही है।
गुरुकुलों में शुद्ध शाकाहारी भोजन एवं शुद्ध आचरण पर जोर दिया जाता था। क्योंकि ज्ञान ग्रहण करने का सीधा सा अर्थ है कि आपकी भोजन श्रृंखला शाकाहारी होनी चाहिए।
मनुष्य कि चेतना में जागृति एवं ब्रह्मांड कि रचना के बारे में ज्ञान तभी हुआ जब मनुष्य कि भोजन श्रृंखला शाकाहारी हुई ।
आदिकाल में तो मनुष्य मांसाहारी ही था जब उसने मजबूरी वश या कोई घटना क्रम घटने से कंदमूल खाना शुरू किया। जो वर्ग उस समय कंदमूल खाने लगा था उनकी पीढ़ियों में ज्ञान का विस्तार होता गया और वह परमात्मा के स्वरूप इस प्रकृति के विज्ञान को समझने लगे। परमात्मा कि प्रार्थना,उपासना एवं ब्रह्म ज्ञान का प्रचार उनकी परंपरा बन गया आदिकाल से सनातन संस्कृति में जितने भी ऋषि महर्षि हुए हैं उनका जीवन अपने विशेष आचरण में व्यतीत हुआ।
प्रकृति का सिद्धांत है जिस मनोवृति से ज्ञान को ग्रहण किया जाता है वैसे ही फल कि प्राप्ति होती है।
अगर विद्यार्थी की भोजन श्रृंखला मांसाहारी है तो वह ज्ञान को भी तामसिक प्रवृत्ति से ही ग्रहण करता है।
इस लिए आपको जानकारी दी जाती है कि जो व्यक्ति मांसाहार एवं मदिरा का सेवन करता है और वह व्यक्ति इस विद्या को सिखना चाहता है तो व्यसनता का तुरंत त्याग करें।
नियमित अध्ययन एवं लेखन अभ्यास से ज्ञान ग्रहण करने कि क्षमताओं में वृद्धि होती है।
परमात्मा में विश्वास रखने से भी ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
विद्यार्थी कि नियमित दिनचर्या से आचरण में शुद्धिकरण होता है।
विशेष जो विद्यार्थी अपने जीवन में नियमानुसार ज्ञान को ग्रहण करने में विश्वास रखते हैं वहीं इस विद्या को सिखने के पात्र हैं।
जो व्यक्ति केवल रात्रि समय में पुस्तक पढ़कर ज्ञान ग्रहण करना चाहते हैं वो इस विद्या से उपेक्षा ना रखें।
ज्ञान का आधिपत्य सूर्य देव को माना गया है। इस लिए दिन में ज्ञान ग्रहण करने से चेतना में प्रकाश कि वृद्धि होती है और रात्रि में ग्रहण किया गया ज्ञान आपको अंधकार में ही रखता है।
जो व्यक्ति इस विषय पर ज्ञान ग्रहण करने कि रूचि रखता है उसे ही यह विद्या सिखनी चाहिए।
जो इस ज्ञान को ग्रहण करके अपना तथा जन मानस का भला करके अपने पुरुषार्थ को बल देना चाहते हैं।
आपकी आयु कितनी भी हो सकती है लेकिन आपके अंदर एक विद्यार्थी के गुण होने परम आवश्यक है।
ज्ञान को ग्रहण करने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती । ग्रहण किए गए ज्ञान को अपने अनुभव के अनुसार ज्ञान को प्रकृति के सार्थक प्रयोजनों में सहायक बनना आपका जीवन सार्थक बनाता है।
नव निर्माण में सूर्य संक्रांति विचार।