• बृहस्पति ग्रह सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रह है। इसका रंग पीला है।
  • बृहस्पति और सूर्य के बीच की दूरी 77 करोड 8000000 लगभग किलोमीटर है।
  • बृहस्पति सूर्य के चारों ओर एक चक्कर 11. 86 वर्ष में पूरा करता है।
  • और यह अपनी धुरी का चक्कर मात्र 10 घंटे में पूरा करता है। इसका वजन 1.898×10^27 है।

ज्योतिषीय स्वरूप:-

जीवन में आपसी रिश्ते, गुरुजन, अर्थात आदरणीय ,बड़े भाई बहन तथा  जिनसे ज्ञान की प्राप्ति हो उस गुरु के कारक बृहस्पति हैं। स्थाई ज्ञान का कारक गुरु देव है। बृहस्पति ग्रह को जीवन में ज्ञान से संबंधित देखा जाता है ।

मनुष्य के जीवन में बृहस्पति यानी गुरुदेव का आशीर्वाद मिल जाए तब ही हरि की प्राप्ति होती है। अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति होती है। उच्च कर्म हि जीवन में मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। और उच्च स्तरीय  कर्मो कि क्षमता का विस्तार गुरु से माना गया है। गुरु तथा अपनों से बड़ों का सम्मान गुरु ग्रह की ऊर्जा को बल देते हैं। शरीर में बृहस्पति की ऊर्जा ठीक हो तो मनुष्य ज्ञान को तीव्र गति से ग्रहण करता है।

जिन व्यक्तियों में गुरु की ऊर्जा संतुलन नहीं होती  वह व्यक्ति जीवन में ज्ञान से दूर ही रहते हैं।

बृहस्पति ग्रह का ज्योतिषीय महत्व।

ज्योतिष में बृहस्पति को गुरु तथा ज्ञान ,बड़े भाई का सामाजिक प्रतिष्ठा का कारक माना जाता हैं।कुंडली में मनुष्य के ज्ञान का आकलन बृहस्पति से किया जाता है। यह कुंडली में जिस घर में बैठते हैं उस घर को दबाते हैं जहां के देखते हैं जहां इनकी दृष्टि होती है वहां शुभ फल प्रदान करते हैं

  • शरीर में बृहस्पति को चर्बी का कारक माना गया है।
  • यह धनु और मीन राशि का स्वामी है।
  • बृहस्पति ग्रह के बारे मे पौराणिक कथाओं के अनुसार बृहस्पति ग्रहं को देव माना गया है। इनके  पिता का नाम अंगीरा ऋषि ओर माता का नाम  स्मृति है। अंगिरा ऋषि को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र भी कहा जाता है।
  • अगीरा ऋषि को स्मृति से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई।
  • जिनका नाम उतथ्य व जीव  हुआ।
  • जीव बचपन से ही शांत एवम जितेन्द्रिय प्रकृति के थे।
  • उनका ध्यान हमेशा ज्ञान से जुड़े क्षेत्र में लगा रहता था।

उन्होंने समस्त शास्त्रों तथा नीतियो का अध्ययन किया तथा शास्त्रों के ज्ञाता हुऐ।ज्ञान प्राप्ति के बाद उनकी इच्छा देवाधिदेव श्री महादेव कि तपस्या करने कि हुई।  इस लिए उन्होंने प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना की तथा शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। महादेव ने उनकी आराधना एवम तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा,’ हे द्विज श्रेष्ठ ! तुमने बृहत तप किया है अतः तुम बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हो कर देवताओं के गुरु बनों और उनका धर्म व नीति के अनुसार मार्गदर्शन करो।’ 

इस प्रकार महादेव ने बृहस्पति को देवगुरु पद और नवग्रह मंडल में स्थान प्रदान किया। तभी से जीव, बृहस्पति और गुरु के नाम से विख्यात हुए। देवगुरु की शुभा,तारा और ममता तीन पत्नियां हैं। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भारद्वाज एवम कच नामक दो पुत्र हुए।