कर्णवेध संस्कार का मुख्य प्रयोजन आभूषण धारण करना है। इस शुभ लग्न में लड़कियों का कर्णवेध किया जाता है।
प्राचीन काल में यह संस्कार लड़कों को भी किया जाता है। इस संस्कार को करने से पुरूषों में अंडकोष के रोगों में वृद्धि नही होती । इस संस्कार का प्रचलन जहां नही है वहा पर पुरूषों के अंडकोष के रोग निवारण के लिय कर्णछेदन किया जाता हैं । वह उपचार भी इसी मुहूर्त में किया जाता है।
इस उपचार रूपी क्रिया का विशेष महत्व है इस लिए इसे संस्कारो मे शामिल किया गया हैं ।
शुभ समय :- चूड़ा कर्म के बाद पहला साल तीसरा तथा पांचवा वर्ष ।
इस संस्कार में एका गर्ल दोष वर्जित माना गया है।
शुभ नक्षत्र:- पुष्य,मृगशिरा,चित्रा,श्रवण,रेवती।
शुभ तिथि :- चतुर्थी ,नवमी,चतुर्दशी, पुर्णिमा,अमावस्या आदि तिथियों को छोङकर ।
शुभ वार:- सोमवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार रविवार।
सूर्योदय के समय से सूर्यास्त से पहले का समय ।
यह संस्कार रात्री में ना करे।
इस मुहूर्त से संबंधित सभी जानकारियां यहां पर दी गई है इसके अलावा अगर आप मुहूर्त दिखवाना चाहते है तो नीचे दिए गए फार्म भरे। यह सुविधा सशुल्क हैं।
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