हवन क्रिया का प्रयोजन मुख्य रूप से वातावरण कि शुद्धिकरण तथा देवताओं को आहुति के लिए किया जाता है।
हवन-यज्ञ करवाते समय मुख्य रूप से चंद्रमा शुद्धि तथा हवन-यज्ञ आहुति मुख और अग्नि का वास देखना चाहिए।
हवन के दिन :- हवन जिसके नाम से किया जाता है उसका चंद्रमा छठे आठवें तथा बारहवें भाव में ना हो तथा लग्न में पाप ग्रह ना हो। लग्नेश बली हो।
आहुति मुख देखने के लिए :- जिस नक्षत्र में सूर्य स्थित हो उस नक्षत्र से लेकर 3-3 नक्षत्र का एक त्रिक बनाएं इस प्रकार 27 नक्षत्रों के 9 त्रिक होते हैं।
- पहला त्रिक सूर्य का
- दूसरा त्रिक बुध का
- तीसरा त्रिक शुक्र का
- चौथा त्रिक शनि का
- पांचवा त्रिक चंद्रमा का
- छठा त्रिक मंगल का
- सातवां त्रिक बृहस्पति का
- आठवां त्रिक राहु का
- नौवा त्रिक केतु का होता है ।
हवन के दिन जो नक्षत्र हो ओर वह कोन से ग्रह के त्रिक मे है। आहुति उसी ग्रह के मुख मे पड़ती है। पाप (खल)ग्रहों के मुख में आहुति शुभ नही मानी जाती ।
अग्नि का वास :- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर ईष्ट तिथि तक गिनने से जितनी संख्या हो उसमें एक जोड़ दे । रविवार से ईस्ट वार तक गिरने से जितनी संख्या हो उसको पिछले जोड़ में जोड़ देंवे । इससे जुड़े हुए अंकों में 4 का भाग देने पर जो संख्या बचती है वह अग्नि के वास को दर्शाती है। जैसे शुन्य अथवा तीन शेष हो तो अग्नि का वास भूमि पर होता है । यदि शेष दो बचता हो तो अग्नि का वास आकाश में होता है। अगर शेष एक बचता है तो अग्नि का वास पाताल में होता है ।
अग्नि का वास्तु भूमि पर हो तो हवन का फल सुख कारक होता है ।
अग्नि का वास आकाश में हो तो हवन का फल प्राणों को नाश करने वाला होता है ।
अग्नि का वास पाताल में हो तो हवन का फल धन की हानि करता है ।
दुर्ग भंग, ग्रह शांति ,विवाद, शत्रु विग्रह, शांति कर्म, गृह शुद्धि मे अग्नि चक्र का पुरी तरह ध्यान रखें ।
ग्रहण पूजा, विवाह, गण्डमूल , दुर्गा पुजा , व्रत उत्सव, नवरात्र पुजा , विष्णु पुजा ,नित्यकर्म पुजा , कुल देवता पुजन ,चुड़ा कर्म , मूल पुजा में अग्नि वास के विचार कि आवश्यकता नही होती।
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