जय सिया राम।
8 अक्तुबर 2024, मंगलवार , षष्ठी तिथि, शुक्ल पक्ष अश्विन माह।
नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के स्वरूप का पूजन माता कात्यायनी के रूप में किया जाता है।
इनकी पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनका स्वरुप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है। शेर पर सवार है। माँ की चार भुजाएं हैं,
इनके बायें हाथ में कमल और तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।मां कात्यायनी के इस कांति मय स्वरूप का ध्यान करने से कांति का विस्तार होता हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उनको रोग, संताप और अनेकों प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरुप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है।
इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है।
माँ कात्यायनी का यह नाम कैसे विख्यात हुआ इसके बारे में पौराणिक कथा में वर्णित है।
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एक बार कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे,उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें।
मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत अधिक बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को प्रकट किया।महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।
द्वापरयुग में भी मां कात्यायनीकी महिमा का वर्णन मिलता हैं।गोपियों ने कृष्ण जी कि कामना करते हुऐ मां कात्यायनी का अनुष्ठान किया था।
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