होली का त्योहार 2024

इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च को तथा धुलंडी 25 मार्च को मनाया जायेगा।

होलिका दहन का शुभ-मुहूर्त
भद्रा काल रात्रि दस बजकर बीयालीस मिनट तक रहेगा।इस स्थिति में होलिका दहन रात्रि ग्यारह बजे करना शुभ रहेगा।

भारतीय परम्परा में मनाएं जाने वाले त्योहारों में एक त्योहार है होली। होली सबसे पुराना त्योहार माना जाता है। जिसमें होली का दहन होता है ओर अगले दिन लोग रंग-बिरंगे गुलाल से खेलते है। एक दूसरे को गुलाल लगा कर अपनी खुशी को प्रकट करते है। यह पर्व वैसे तो फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू हो जाता है। लेकिन मांगलिक कार्यों को अष्टमी तिथि से के बाद निषेध माना गया है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा तक के समय को होलाष्ठ कहा गया है।

इस अंतराल मांगलिक कार्यों तथा अन्य कार्यों का शुभारंभ वर्जित माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली का त्यौहार सनातन संस्कृति में सबसे पुराना है यह त्योहार सतयुग से प्रचलित है। यह पर्व परमात्मा में अटूट विश्वास को दर्शाता है। इस विषय का विवरण हमे पौराणिक कथाओं में भी सुनने को मिलता है। यह घटना सतयुग कि है।

जब पृथ्वी पर चौथे अवतार अवतरित हुए थे।हिरण्यकश्यप नामक राजा को भ्रम हो गया कि वह भगवान बन गया है। और उसका अंहकार बढ गया और उसने अत्याचार करने शुरू कर दिए। अपने आपको सर्वशक्तिमान साबित करने के लिए वह अपनी पूजा करवाने लगा और भगवान कि पूजा करने पर तथा भगवान का नाम लेने पर मृत्यु दण्ड देना शुरू कर दिया था। हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रहलाद था जो भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय भक्त था।

चोरी हुई वस्तु के बारे में जाने के लिए यहाँ क्लिक करे

विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद की प्रभु भक्ति से क्रोधित होकर प्रहलाद भक्त को मृत्यु दण्ड के लिए हिरण्यकश्यप ने बहुत सी यातनाएं दी लेकिन प्रहलाद के प्राण बच गए। हिरण्यकश्यप कि बहन होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था इस लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद मे लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया था जिससे प्रहलाद को मृत्यु दण्ड दिया जा सके। प्रहलाद को इससे पहले भी मृत्यु दण्ड के लिए हिरण्यकश्यप ने बहुत सी यातनाएं दी लेकिन प्रहलाद के प्राण बच गए।

प्रभु भक्ति में लीन प्रह्लाद मुस्कुराते हुए होलिका की गोद में बैठे और फिर हिरण्यकश्यप के आदेश पर अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। थोड़ी देर में बाद लोगों ने अग्नि के कोप में झुलस रही होलिका की चीखें सुनी जो उसमे जलकर भस्म हुई और प्रह्लाद सुरक्षित अग्नि से बाहर निकल आए। हिरण्यकश्यप के पाप का घड़ा भर चुका था।

लेकिन उसे भी मृत्यु के कारणों पर वरदान प्राप्त था। लेकिन परमात्मा स्वयं इस प्रकृति के रचयिता है। ओर प्रकृति क्रिया पर प्रतिक्रिया जरूर करतीं हैं। हिरण्यकश्यप के वध के लिए भगवान नरसिंह (मनुष्य तथा शेर से मिला जुला रूप मे) के रूप में अवतरित हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया। बुराई पर अच्छाई कि जीत हुई।

यह पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पुरे फाल्गुन मास इसका उत्सव मनाया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन लोग एक दूसरे से मिलते हैं और उनको रंग गुलाल लगाकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

इसमें भद्रा काल का समय भिवानी के अक्षांश के अनुसार बताया गया है। स्थान परिवर्तन के अनुसार भद्रा काल के समय में फेर बदल रहेगा तो विद्वान अपने स्थान और सूर्योदय कि स्थिति के अनुसार अपने क्षेत्र में भद्रा काल का समय निर्धारित करें।