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गणपति जी को किसी भी कार्य कि शुरुआत करने से पहले पूजन किया जाता है इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण जुड़ा है। इस विज्ञान को समझने के लिए हमें हमारे मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को समझना होगा। हमारे मस्तिष्क के मुख्य रूप से दो क्षेत्र है चेतन मन और दूसरा है अवचेतन मन।

चेतन मन :-

चेतन मन का कार्य है कि दिन भर कि जानकारी को रात्रि में जब व्यक्ति गहरी नींद में होता है तब अवचेतन मन में स्थानांतरित कर देता है।चेतन मन अपनी सभी जानकारियां यहां इक्ट्ठा करने का कार्य करता है।

अवचेतन मन:-

अवचेतन मन में उन जानकारियों का संग्रह होता है जो इस जन्म कि तथा इससे पहले के जन्म से संबंधित सभी जानकारियां होती है। जिसके आधार पर वह व्यक्तित्व का निर्माण करता है। तथा जीवन में अपना व्यवहार करता है।

चेतन मन 10% क्षेत्र में सक्रिय होता है तथा अवचेतन मन, 90% क्षेत्र में सक्रिय होता है।उदाहरण के लिए जब हम किसी अनजान से पहली बार मिलते है तो हम उसके साथ जो भी अनुभव साझा करते है वो तर्कनिष्ठा के साथ साझा करते है। हम अपनी बौद्धिक क्षमता दिखाने का प्रयत्न करे है। हम उसके साथ जो भी व्यवहार करते हैं वह हमारे अवचेतन मन कि धारणाओं के अनुभव के आधार पर हमारा चेतन मन करता हैं। जब भी हम किसी के साथ पहली बार मिलते हैं तो हम उसके साथ हम अजनबियों जैसा व्यवहार करते हैं।

यह चेतन मन का स्वभाव होता है।दिन चर्या में जो भी घटित होता है पुरे दिन में हम जो भी कार्य करते हैं उसे जब हम रात्रि के समय जब हम गहरी निद्रा में होते है तो वो सभी चीजे जो हमारी दिनचर्या में घटित हुई है वो सब हमारे चेतन मन से अवचेतन मन के साथ साझा कर देते हैं।और जब किसी व्यक्ति से हम दुबारा मिलते हैं तो हमें तुरंत याद आ जाता है कि हम पहले भी मिले हुए हैं। और हम उसके पिछले अनुभव के अनुसार व्यवहार करते हैं।

यह कार्य हम अपने पिछले अनुभव के कारण करते हैं जो हमारे अवचेतन मन में यादों के रूप में संग्रहित होता है। अवचेतन मन में पूर्व जन्म से संबंधित एवं डीएनए से जुड़ी सभी जानकारी संग्रहित होती है। हमारे शरीर का रूप रंग सब पीढ़ी दर पीढ़ी एक जैसा ही रहता है वो इस मस्तिष्क की जानकारी के आधार पर ही रहता है।

इस मस्तिष्क में जैसी जानकारियां होंगी व्यक्ति का स्वभाव वैसे ही निर्मित होता रहेगा। आनुवांशिकता से जुड़ी जानकारियां मस्तिष्क में रहती है वैसे ही व्यक्तित्व का विकास होता है। चेतन मन इस दुनिया को समझने के लिए तरह तरह कि भाषाएं सिखता है।

इसके स्वभाव में तर्क क्षमता होती है। लेकिन अवचेतन मन कि भाषा है रूपक भाषा । रूपक भाषा का अर्थ है चित्रों कि भाषा। प्रतीकों कि भाषा।अवचेतन मन केवल प्रतीक तथा चित्रों कि भाषा ही समझा है।अवचेतन मन किसी प्रतीक के आधार पर ही जानकारियों को याद रखता है और उसी के आधार पर नई जानकारियां संग्रहित करता रहता है। भाषा का विषय तो सिर्फ चेतन मन का है।

अवचेतन मन तो सिर्फ प्रतीकात्मक भाषा के आधार पर जानकारी रखता है।यह केवल चित्र देखकर ही समझ लेता है की विषय क्या है इसकी जानकारी का स्त्रोत है। इस संसार में सभी प्राणि कि अवचेतन मन की भाषा प्रतीकों कि भाषा ही सक्रिय हैं।

मनुष्य और पशु के बीच में आपसी तालमेल को प्रतीकों कि भाषा ही बनातीं है। प्रत्येक प्राणी और कुछ समझे या ना समझे लेकिन प्रतीकों की भाषा को जरूर समझता है।जब मनुष्य किसी प्रतीक को देखता है तो सबसे पहले उसका अवचेतन मन सक्रिय होता है। जैसे हम किसी ऊर्जा से जुड़े प्रतीक को देखते हैं तो हमें ऊर्जा का एहसास होता है।

हमारे मस्तिष्क में किसी भी तरह के ज्ञान को ग्रहण करने के स्त्रोत हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां हैं। इसके अतिरिक्त हमारा ज्ञान ग्रहण करने का कोई और विकल्प नहीं है। हमारी पांच ज्ञान इंद्रियां जैसे आंख,नाक, कान , जीभ और त्वचा। इनके आधार पर ही हम ज्ञान ग्रहण करते हैं। जैसे आंख से देखकर,नाक से सूंघकर,कान से सुन कर,जीभ से चख कर और त्वचा से स्पर्श करके हम विषयों पर जानकारी प्राप्त करते हैं।

हमारे जीवन में इन पांच इंद्रियों का बहुत बड़ा महत्व हैव्यक्ति की विशेषता इन पांच इन्द्रियों के आपसी तालमेल एवं समझ के साथ ही जुड़ी है। व्यक्ति कि ये पांचों ज्ञानेंद्रियां जितनी विकसित होती है वह व्यक्ति उतना ही बड़ा बुद्धिमान होता है। जब हमारा अवचेतन मन इन इंद्रियों के प्रतीक को देखता है तो वह सक्रिय हो जाता है।और वह अपना कार्य सुचारू रूप से करने लगता हैं। इस इंद्रियों के स्वरूप को देखकर हमारा अवचेतन मन हमारी ज्ञानेंद्रियों को विकसित करने पर काम करता है। जिससे हमारी बुद्धि विकसित होती है।

गणेश जी के चित्र में यह पांचों इंद्रियां विकसित तथा बड़े रूप में दर्शाईं गई है।

जब हमारा अवचेतन मन जो सिर्फ प्रतीक कि भाषा समझता है अगर बह गणेश जी का चित्र देखता है तो वह विकसित होता है। अवचेतन मन जब इन पांचों इंद्रियों को विकसित रूप में देखता है तो यह अपने ज्ञान को विकसित करने का कार्य करता है। पांचों इंद्रियों को देखने से हमारी बुद्धि विकसित होती है।

इसीलिए गणेश जी को सर्वप्रथम मनाया जाता है और इनकी आराधना की जाती है। हमारा अवचेतन मन अज्ञानता को दूर करता है और प्रकाश से हमारे इन पांचों इन्द्रियों को प्रज्वलित कर देता हैं।

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चेतन मन :-
चेतन मन का कार्य हैउदाहरण के लिए जब हम किसी अनजान से पहली बार मिलते है तो हम उसके साथ जो भी अनुभव साझा करते है वो तर्कनिष्ठा के साथ साझा करते है। हम अपनी बौद्धिक क्षमता दिखाने का प्रयत्न करे है। हम उसके साथ जो भी व्यवहार करते हैं वह हमारे अवचेतन मन कि धारणाओं के अनुभव के आधार पर करते हैं। जब भी वह किसी के साथ पहली बार मिलते हैं तो हम उसके साथ तो उसके पश्चात जब हम रात्रि के मय जब हम गहरी निद्रा में होते है तो वो सभी चीजे जो हमारी दिनचर्या में घटित हुई है वो सब हमारे चेतन मन से अवचेतन मन के साथ साझा हो रही होती