श्राद्ध पक्ष विशेष

श्राद्ध पक्ष विशेष:-

18 सितंबर 2024 पूर्णिमा तिथि श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो रहा है।

18-9-2024 बुधवार। पूर्णिमा तिथि सुबह 8:03 तक। (प्रथम श्राद्ध) द्वितीय श्राद्ध भी इसी दिन होगा प्रथमा तिथि 8:03 के बाद में ही है।

द्वितीय श्राद्ध- 19-9-2024 बृहस्पतिवार कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि ।

तृतीय श्राद्ध- 20-9-2024 शुक्रवार कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि ।

चतुर्थ श्राद्ध- 21-9-2024 शनिवार कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 6:13: सायं काल तक।

पांचवां श्राद्ध- 22-9-2024 रविवार कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 3:42 दोपहर के बाद तक।

छठा श्राद्ध- 23-9-2024 सोमवार कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि दोपहर 1:49 तक।

सातवां श्राद्ध- 24-9-2024 मंगलवार कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि 12:38 दोपहर तक।

आठवां श्राद्ध- 25-9-2024 बुधवार कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 12:10 दोपहर तक।

नौवां श्राद्ध- 26-9-2024 बृहस्पतिवार कृष्ण पक्ष नवमी तिथि 12:24 दोपहर तक।

दसवां श्राद्ध- 27-9-2024 शुक्रवार कृष्ण पक्ष दसवीं तिथि दोपहर 1:19 तक। ।

ग्यारहवां श्राद्ध- 28-9-2024 शनिवार कृष्ण पक्ष एकादशी दोपहर 2:49 तक ।

बारहवां श्राद्ध- 29-9-2024 रविवार कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि सायं 4:47 मिनट तक।

तेरहवां श्राद्ध- 30-9-2024 सोमवार कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि सायं काल 7:05 मिनट तक ।

चौदहवां श्राद्ध- 1-10-2024 मंगलवार कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि रात्रि 9:38 मिनट तक ।

पंद्रहवां श्राद्ध- 2-10-2024 बुधवार कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि रात्रि 24:18 तक ।

श्राद्ध शब्दका शाब्दिक अर्थ है श्रद्धा से किया गया कार्य। श्रृद्धा से किया गया कार्य विश्वास को बढ़ाता है। और विश्वास से कार्य के पूर्ण होने की संभावनाओं में वृद्धि होती है।

श्राद्ध पक्ष का समय :-

वर्षभर मे सूर्य बारह राशियों का भ्रमण करता हैं।जब कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितृ लोक  मृत्युलोक के समीप होता है यह स्थिति पितृपक्ष कहलाती हैं। इसमें हमारे पूर्वजों को याद करने तथा उनका विधि पूर्वक पूजन करने का विधान है।भाद्रपदमास कि पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास के कृष्णपक्ष कि अमावस्या तक सोलह दिन तक यह पर्व मनाया जाता है।
इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है।  श्राद्ध करने से पितृ गण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

संसार में जितनी सभ्यताएं विकसित हुई है उन सब में अपने पूर्वजों को पूजने का विधान है। सनातन संस्कृति में इस उत्सव को श्राद्ध कहा गया है। सोलह दिन अपने पूर्वजों कि मृत्यु तिथि अथवा दाह संस्कार तिथि के दिन अपने पूर्वजों के निमित्त भोजन अथवा वस्त्रों को  दान करने कि परम्परा है। जिस पूर्वज कि मृत्यु तिथि जिस तिथि को आती हैं उस दिन उस पूर्वज के निमित्त ब्राह्मण को भोजन तथा वस्त्रों का दान दिया जाता हैं तथा पूर्वजों के निमित्त ब्राह्मण से आशिर्वाद लिया जाता हैं ओर पूर्वजों कि आत्मा की शांति के लिए परमात्मा से प्रार्थना कि जाती हैं।

ये सौलह दिन अपने पूर्वजों कि आत्मा की शांति तथा आशिर्वाद प्राप्ति के  लिए पुरी श्रद्धा से किये जाते है।

जो मनुष्य उनके प्रति श्नद्धा से तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। वर्ष में उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है।

इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है।, शास्त्रों में किसी एक सात्विक एवं संध्या वंदन करने वाले ब्राह्मण को भोजन कराने की भी आज्ञा देते हैं।आज के समय में सात्विक एवं संध्या वंदन ब्राह्मण नहीं मिलते इस लिए किसी जरूरत मंद को भी भोजन करवाया जा सकता हैं। लेकिन जरूरत मद हि होना चाहिये।

श्राद्धकर्म श्रद्धा से जुड़ा विषय है। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा मनुष्य को सतकर्मों से जोड़ कर रखती हैं। वैसे तो अपने पूर्वजों का ऋण कभी नही उतरता लेकिन अपने वंश के कल्याण मे किया गया कार्य मनुष्य को ऋण मुक्त करता है। यह एक तरह से वचनबद्ध कर्म है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है।

श्राद्ध या पिण्डदान दोनो शब्दो का एक हि अर्थ है।  पिण्डदान शब्द का अर्थ है अन्न के आटे का  पिण्ड  बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिण्डदान कहते है। ओर इसी क्रिया कि अनुसार ब्राह्मण को भोजन करवाना श्राद्ध कहलाता हैं। हमारे शास्त्रों में १३ तरह से श्राद्ध शब्द को संबोधित किया गया है।

शास्त्रों में श्राद्ध कर्म के अनुसार इनकों अलग अलग नामों से संबोधित किया गया है।

  • नित्य श्राद्ध :- श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं। इसमें भोजन बनते हि अपने पूर्वजों को याद करके पहली रोटी गाय को दि जाती है। वह नित्यकर्म श्राद्ध कहलाता है।
  • नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध :- वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है,यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवीत्रक होता है।
  • काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है।
  • वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं।
  • पावर्ण श्राद्ध पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं, ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं।
  • सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है।
  • गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
  • शुद्धयर्थ श्राद्ध: शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं।
  •   कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं।
  • दैविक श्राद्ध : देवताओंकी की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें दैविक श्राद्ध कहते हैं।
  •  यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ कहते हैं।
  • पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं।
  • श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्ड पितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कमार्ग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं।

वैज्ञानिक कारण:-

इसका  वैज्ञानिक कारण है हमारा  निर्माण तथा विकास हमारे पूर्वजों से हुआ इसका सिधा सा मतलब हम  अपने पूर्वजों के अंश है जो क्षमताएं उनमें थी वो हममें भी है।  एक पीढी को तैयार करने में कई पीढियों का बलिदान होता हैं। हमारे जीवन की परेशानियों को मुख्य रूप से हमारे माता-पिता(पूर्वज) दूर करते हैं । उनके संस्कारो का ही विस्तार हमारे जीवन में होता हैं।जीवन जीने की विधी हमें अपने पूर्वजों से मिलती है। अपनी शक्ल ,सुरत, नैन,नक्श सब कुछ उन्हीं का आशीर्वाद से प्राप्त होता हैं,ओर इनसे मिली हुई क्षमताओं का विस्तार जीवन भर होता रहे,तथा अपने पूर्वजों का नाम चलता रहे। इसके लिए हमें उनका ध्यान करने कि जरूरत है। प्रत्यक्ष रूप से परमात्मा हमारे पूर्वज ही होते हैं जब हम किसी देव को पूजते हैं तो वह अप्रत्यक्ष होता है। हम केवल धारणाओं से ही देवताओं को पूजते हैं

लेकिन पूर्वज हमारे प्रत्यक्ष देवता है। हम अपने देवताओं को भी मनुष्यों के रूप में अथवा अपने पूर्वजों के रूप में पूजते है। हमारा ऐसा मानना कि श्राद्ध-पक्ष  में हमारे  पितरों को  भी आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जिनको जानना सभी के लिए जरूरी है।

इस समय भौगोलिक परिवर्तन के अनुसार हमारे शरीर में भी हमारे पूर्वजों से ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है जिससे हमारे अन्दर पैतृक गुण बढ़ता है इस समय को अपने पूर्वजों से जोड़ के रखेंगे तो हमारे आंतरिक क्षमता का विस्तार होता हैं। श्राद्ध पक्ष को मनाने से पूर्वजों से जुड़ाव होता है तथा उनके प्रति मन में श्रद्धा बढ़ती है ।
आज के समय में देखा जाय तो हम अपनी परंपराओं तथा संस्कृति के निमित्त संस्कारों से दुरी बनाते जा रहे है। यह हमारे पतन का मुख्य कारण है।

जिस दिन श्राद्ध निकालना है उस दिन सुबह जल्दी उठकर  स्नान निवृत्त होकर सूर्योदय के समय सूर्य को साक्षी मानकर अपने पूर्वजों को जलांजलि दे। रसोई को साफ करके शुद्ध भोजन तैयार करे। भोजन तैयार करके सबसे पहले  अपने पूर्वज का ध्यान करना चाहिए। भोजन को दो थालियों में परोस कर  एक थाली गाय  तथा दूसरी थाली कौवों को खिलाऐं इसके बाद अपने पूर्वज के निमित्त ब्राह्मण को भोजन करवाऐं।

ब्राह्मण को भोजन  पूरी  श्रद्धा  शांतीपूर्ण करवाना चाहिए।श्राद्ध पक्ष में अपने आप को शुद्ध रखना चाहिए। नित्य पाठ कर्म तथा पूर्वजों का ध्यान करना चाहिए।श्राद्ध पक्ष में नया व्यवसाय,नई यात्रा, नये वस्त्र, नये आभूषण तथा वाहन खरीद , विवाह प्रस्ताव, स्त्री-रमण,नये घर का निर्माण कार्य निषेध माना गया है।
श्राद्ध में निषेध भोजन:- बेंसन से निर्मित भोजन तथा चना ,घिया, करेला वर्जित है।

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