सबसे पहले रुद्राक्ष शब्द का शाब्दिक अर्थ समझते हैं। रुद्रा+अक्ष। रुद्र का अर्थ शिव ही है। यह शिव का ही एक नाम है जब वह रूद्र अवस्था में थे तब उनको रुद्र कहा गया। और अक्ष का अर्थ है आंसु ।

रूद्राक्ष का अर्थ है शिव के आंसु।

आंसू मनुष्य के कब निकलते हैं जब उसके हृदय को आघात पहुंचता है आघात में व्यक्ति अपने भाव प्रकट करके और विषय में सिर्फ भावनाओं पर विचार करता है और भावनाओं पर विचार करते समय हृदय उन्माद करता है और तब आंसू निकलते हैं। यह आंसू शिव के तब निकले थे तब माता सती अग्नि में जलकर भस्म हो गई थी। और शिव उसे बचा नहीं पाए थे। और उनका अर्ध जला हुआ शरीर अग्नि से निकालकर उसे लेकर हिमालय की तरफ दौड़ पड़े।

शक्ति के सती के बाद शिव के वैराग्य में प्रलय की स्थिति बन चुकी थी क्रोध की ज्वाला में धड़क रहे शिवा तीसरा नेत्र खोल चुके थे और संसार को संघार करने की स्थिति बन चुकी थी ।उनकी वैराग्य अवस्था को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना चक्कर चलाया और मां शक्ति के शरीर को काटते रहे । जहां जहां शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ।

उनकी वैराग्य अवस्था चरम सीमा पर थी और उनके आंसू निकल रहे थे जब जहां-जहां उनके आंसू गिरे वहां रुद्राक्ष के पेड़ उत्पन्न हुए । पशुपतिनाथ जी के मंदिर में काठमांडू नेपाल में यह वृक्ष मंदिर में साक्षात विराजमान है इसके अतिरिक्त और भी पेड़ इस क्षेत्र में उत्पन्न हुए पशुपति नाथ मंदिर की परंपरा है कि वह रुद्राक्ष रूपी गुठली को फल कि अवस्था को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। रूद्राक्ष को साक्षात शिव माना गया है।

जैसी ऊं ऊर्जा आभा शिव की मानी गई है उसी के ऊर्जा का अंश रुद्राक्ष को माना गया है एक मुखी रुद्राक्ष सबसे ज्यादा प्रभावशाली होता है। एक मुखी रुद्राक्ष पर त्रिशूल डमरू नंदी शिवलिंग के प्रतीक बने हुए होते हैं प्रकृति अपने आप उन पर वह चिन्ह बनाती है और शिव कि दया जिस पर हो उसे वह प्राप्त होता है। शास्त्रों में इसको पूजने के लिए कहा गया है तथा इसमें औषधीय गुणों की भरमार होती है।इस लिए इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाएं बनाई जाती हैं।

जिनका ध्यान शिव में है वह व्यक्ति इसे धारण करते हैं हमारे ऋषि मुनियों ने इसकी ऊर्जा को पहचान कर इसे धारण किया और ऊर्जावान बने। लेकिन आज के समय में हर कोई व्यक्ति इसे धारण किए हुए हैं। रूद्राक्ष को धारण करना शिव को धारण करने जैसा है। शिव एक अवस्था को भी कहा गया है। जब कोई भी व्यक्ति शिव कि अवस्था को प्राप्त करता है तो वह संपूर्ण ब्रह्मांड को प्राप्त कर लेता है।

रुद्राक्ष उस अवस्था में पहुंचने में सहायक हो सकता है लेकिन उसे धारण करने के नियम होते हैं। जो व्यक्ति प्रकृति को माया मान चुका है उसे रूद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। रूद्राक्ष में शिव कि ऊर्जा होती है।जो व्यक्ति इस ऊर्जा को धारण करता है वह शिव के ध्यान में रहता है। इसको धारण वहीं व्यक्ति करें जो इसके नियमों का पालन कर सके।जो व्यक्ति या महिला सांसारिक भोग से निवृत्त हो चुके हैं। वह औरत धारण कर सकती है जो मासिक धर्म क्रिया से पुरी तरह निवृत्त हो चुकी हो। ध्यान अन्य विलासिताओं से भी निवृत्त हो चुका है। बाणी में सत्यता का प्रचार हो।

इसे वह पूरूष या स्त्री धारण कर सकते है जो शारीरिक तथा मानसिक रूप से संभोग क्रिया से दूर हों। वीर्य का उपयोग दो तरह से होता है एक तो भौतिक सुखों को भोगने के लिए तथा सन्तान उत्पति के लिए।दुसरा उपयोग व्यक्ति अपने इसको अपने तप के द्वारा रूपांतरित करके अपने सातों चक्रों को सिद्ध करता हैं और शिव कि उस अवस्था में पहुंचता है जहां सभी चेतनाओं से ऊपर उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

जो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को संगृहीत करके शिव के ध्यान में है केवल उसे ही रूद्राक्ष पहनना चाहिए। इसके अतिरिक्त जो इसे धारण करता है वह इस ऊर्जा को अपमानित करता है। जो व्यक्ति इसके पात्र नहीं हैं अगर वो इसे धारण करते हैं तो वह अज्ञानतावश अपने आप को इस ऊर्जा से नाकारात्मक प्रभाव ग्रहण कर रहे हैं। रूद्राक्ष को संन्यासियों तथा ऋषि मुनियों का श्रृंगार कहा गया है।

साधारण व्यक्ति तामसिकता से दूर नहीं हो सकता।

मांसाहार भोजन तथा किसी भी तरह का नशा करने वाले व्यक्ति को रूद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए।

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