3 अक्टूबर 2024 गुरुवार। प्रथमा तिथि, शुक्ल पक्ष अश्वनी माह।

नवरात्रों में मां दुर्गा का सर्वप्रथम पूजन एवं ध्यान माता शैलपुत्री के रूप में किया जाता हैं। इनका जन्मं राजा शैलराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में हुआ। ओर इनका नामकरण शैलपुत्री के नाम से हुआ। ओर शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुई। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं।

इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। माता शैलपुत्री देवी दुर्गा मां का प्रथम रूप हैं।इनको सती के नाम से भी जाना जाती हैं। इसके पिछे का विवरण पौराणिक कथाओं में वर्णित हैं। इनके सती रुप कि इनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार राजा प्रजापति ने अपनें राज्य में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। ओर सभी देवताओं को आमंत्रित किया।

लेकिन अपने जमाईबेटी सती का पति) देवों के देव महादेव शंकर को अपमानित करने की मंशा से कोई निमंत्रण नही भेजा। जब यज्ञ के आयोजन का माता सती को पता चला तो वह पिता के घर तथा यज्ञ मे जाने के लिए तैयार हुई तब शंकरजी ने उन्हें बताया कि सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया है, पंरतु उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। लेकिन माता सती कि व्याकुलता तथा प्रबल आग्रह को देखते हुऐ उन्होंने माता सती को अपने पिता के घर जाने कि अनुमति देदी। जब माता सती अपने पिता के घर पहुंचीं तो वहां केवल मां ने ही उन्हें स्नेह दिया।

बाकी सभी ने उनका तिस्कार किया। उनकी बहनों की बातों में कटु व्यंग्य और उपहास के भाव थे। उनके पति महादेव शंकर के प्रति भी तिरस्कार के भाव थें। राजादक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे माता सती को बहुत ज्यादा दुख पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और अपने आपको यज्ञ कि अग्नि में जलाकर भस्म कर लिया।

इस समाचार को पाकर महादेव दुःख से व्याकुल हो गये।व्याकुलता वश महादेव ने उस यज्ञ के पंडाल को विध्वंस कर दिया। यही देवी सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। नवरात्रि का प्रथम पूजन मां शैलपुत्री के रूप में रोग मुक्त रहने के लिए किया जाता हैं।cइस दिन मां शैलपुत्री का ध्यान करना चाहिए।विधि वत पूजन करना चाहिए।अपना आचरण स्वच्छ रखें एवं सफेद वस्तुओं का भोग लगाना चाहिए।

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