अवस्थाधान का अर्थ है घर के उपयोगी कार्यों को सम्पन्न करने के लिए उपयोगी अग्नि को स्थापित करना है।
अवस्थाधान संस्कार का प्रयोजन है जीवन में युवावस्था के बाद आयु के जिस पड़ाव में मनुष्य जब प्रवेश करता है वहां उसकी अपनी जिम्मेदारियों भी बढ़ जाती है। इनको निभाने का संकल्प मात्र है अवस्थाधान संस्कार।
जो व्यक्ति मां-बाप कि अकेली सन्तान हो उसे यह संस्कार चतुर्थी कर्म के बाद हि कर लेना चाहिए। कई भाई हो तो समयानुसार अपने अपने घरों मे करें।
ग्राहपत्य ,आहवानीय और दक्षिणाग्नि इन तीनों अग्नियों को इकट्ठा करना हि इस संस्कार का मुख्य प्रयोजन है। इसको कई जगहों पर त्रेताग्नि संग्रह भी कहा गया है ।
अग्नि वास:- अग्नि वास पृथ्वी पर अनिवार्य है।
चंद्रमा विचार :- ४,६,८,१२ वां नहीं होना चाहिए।
शुभ नक्षत्र:- विशाखा, कृतिका, मृगशिरा, रेवती, ज्येष्ठा, उत्तरा -३
शुभ मास:- माघ,फाल्गुन,चैत्र,वैशाख, ज्येष्ठ के दोनो पक्ष तथा श्रावण,अश्विन, मार्गशीष के शुक्ल पक्ष मलमास , क्षय मास वर्जित।
शुभ वार:- मंगलवार और शनिवार को छोड़कर।
शुभ तिथि:- रिक्ता तिथि को छोड़कर सब तिथि शुभ है।

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