यात्रा मे ललाट योग का विचार-
लग्न का सूर्य पूर्व दिशा में।
पांचवें छठे स्थान का चंद्रमा व्यावय दिशा में ।
दशम स्थान का मंगल दक्षिण दिशा में।
चौथे स्थान का बुध उत्तर दिशा में ।
दूसरे तीसरे स्थानों का बृहस्पति ईशान दिशा में ।
ग्यारहवें, बाहरवें11 भाव का शुक्र आग्नेय दिशा में ।सप्तम स्थान का शनि पश्चिम दिशा में ।
आठवें और छठे स्थान का राहु नैऋत्य दिशा में ।
यात्रा करते समय लग्न कुंडली मे ग्रहों कि ये स्थितियां ललाट योग बनाती है ।
ललाट योग यात्रा में वर्जित होता है।
यदि सूर्य ललाट में हो तो अग्नि भय।
मंगल ललाट में हो तो पास रखे पैसों का नाश हो।
बुध अगर ललाट दोष में हो तो शत्रुओं से पराजय तथा भागना पड़ता है।
बृहस्पति अगर ललाट में हो तो नौकरों से विवाद सेवा का नाश ।
शनि ललाट में हो तो मृत्यु भय देता है।
चंद्रमा ललाट में हो तो रोग व्याधि देता है।
शुक्र ललाट में हो तो ऊपर कहे गए सभी फलों में कोई भी फल दे सकता है भौतिक संसाधनों में कमी देता है।
दिशा का स्वामी ललाट में हो या दिग्बल बल से युक्त हो तो यात्रा करने वाले का वध तथा बंधन होता है। यदि दिशा का स्वामी केंद्र में रहकर लग्न को देख रहा हो तो जय तथा धन देने वाला होता है।
पुर्व आचार्यों का मानना हैं कि जिस दिशा मे यात्रा करनी हो उस दिशा का स्वामी ललाट दोष मे हो तो यात्री लोटकर कम हि आते है या ढुढ कर लाने पड़ते है।