प्राणी मात्र ने अच्छे या बुरे कर्म पूर्व जन्मं में किय है उसकेअच्छे या बुरे फल कि परिपकावस्था बतलाने वाले इस विज्ञान को ज्योतिष शास्त्र कहते हैं।

यह अंधकार में रोशनी के द्वारा पदार्थो को दिखाने वाला दिपक है।समय का ज्ञान कराने वाले इस शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहते।मुख्य रूप से यह शास्त्र समय का आंकलन करता है। समय चाहे मनुष्य के जीवन से जुड़ा हो या प्रकृति का कोई घटना क्रम हो। जब भी कोई घटना घटती है उसके पिछे कोई कारण जरूर होता हैं।

उन कारणों का पता ज्योतिष शास्त्र से चलता है। जब किसी कि जन्म कुडली बनती है तो उस व्यक्ति के प्रारब्ध ओर पुरूषार्थ दोनों का आंकलन किया जाता हैं।जीवन के सभी घटना क्रम इन दोनों पर ही आधारित हैं। प्रारब्ध के साथ -साथ पुरूषार्थ का भी बराबर महत्व होता है ।

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प्रारब्ध:- ईस जीवन में जो हम है वह प्रारब्ध है ( हमारे रिस्ते-नाते, परिवार,जन्मस्थान,हमारा चरित्र,हमारा शरीर तथा वह सब कुछ जीससे हमारा वास्ता है। )

पुरूषार्थ:- जो हम इस जीवन को सहि रूप से चलाने तथा पिछले पापकर्म से मुक्त्ति के परयोजन मे किया ( प्रकृति के अनुरूप) गया कर्म तथा कर्तव्यो कि पुर्ती के लिए किया गया कर्म पुरूषार्थ कहलाता हैं सही कर्मों से भाग्य निखरता है।

ज्योतिष हमें शुभ-अशुभ का ज्ञान करवाता है। यह हमे उचित समय तथा सहि दिशां बतलाता है। अगर हम यह माने कि हमारे साथ तो वही होना है जो लिख रखा है।तो उपचार क्यो करें । नही ऐसा बिल्कुल भी नही हैं। यह वो दण्डं हैं जो आपने कर्म पिछले समय अथवा पूर्व जन्मं में आपने पाप कर्म करके अर्जित किय है।

कर्म करके कर्म फल तो चखना पङता है। ( परिणाम तो भुगतना हि पड़ता हैं। ) आपमें प्राश्चित् करनें कि शक्ति को पुरूषार्थ जगाता हैं।आप क्षमा मागं सकते हैं. प्रार्थना कर सकते है। नैतिकता तथाअपने दायित्व को मुख्य जीवनधारा से जोड़कर आप प्राश्चित कर सकते है.

पूर्व जन्मं में किय गए कर्म को दैव ( प्रारब्ध ) तथा तथा इस जीवन में जो कर्म हम करेगें उसे पुरूषार्थ कहेगें। कर्म कि सिद्धि प्रारब्ध तथा पुरूषार्थ के संहयोग से हि सिद्ध होती है । इन सबकी पहचान आपके जीवन में ज्योतिष करता हैं। ज्योतिष शास्त्र में सपूर्ण ब्रम्हांड को चिन्हित करके मनुष्य की घटनाओं से जोड़ रखा है।

मनुष्य का जन्म जब होता हैं उस समय आकाश कि स्थिति से पुरे जीवन कि घटना क्रम का आंकलन किया जाता हैं।

जिसे जन्म कुंडली कहा जाता हैं। इसी स्थिति से मुक्ति का मार्ग प्रसस्त होता हैं। संसार का सबसे महत्वपुर्ण ज्ञान के स्त्रोत चारो वेद हैं।ओर ज्योतिष शास्त्र को वेद का नेत्र कहा गया है।वेद को जानने के लिए पहले ज्योतिष शास्त्र को जानना पड़ता हैं।

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