• शुक्र ग्रह का व्यास 12104 किलोमीटर है।
  •  शुक्र सूर्य से 10 .81 करोड किलोमीटर दूर है ।
  • सूर्य अपना एक चक्कर सूर्य के चारों ओर 224 दिन में पूरा करता है ।तथा अपनी धुरी का चक्र चार दिन में पुरा करता है।
  • सूर्य ग्रह का वजन 4.867 ×10 ^24  किलोग्राम है।
  • यह एक चमकिला ग्रह है।

ज्योतिषीय स्वरूप:-

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को भौतिक सुखों तथा ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है। शरीर में सप्तधातुओं का कारक भी शुक्र देव को माना जाता है। ये दिखने में बहुत सुंदर छवि के है। इनको श्रृंगार का शौख है। शुक्र से प्रभावित लोग सजावट एवं सुंदर दिखने में विश्वास रखते हैं जैसे शरीर में धातु का पोस्टिक होना आवश्यक है उसी प्रकार सफल जीवन के लिए चरित्रवान होना आवश्यक है। जीवन में चारित्रिक स्वच्छता  का आधार शुक्र है।

कुंडली में शुक्र कि अवस्था से मनुष्य मे  कलात्मक,दाम्पत्य जीवन मे सुख, शरीर में धातुबल,भौतिक सुखों, तथा ऐश्वर्य  का आंकलन किया जाता हैं।

शुक्र ग्रह की पौराणिक जानकारी:-

पौराणिक कथाओं के अनुसार शुक्र ग्रह को भी गुरु शब्द से संबोधित किया जाता  हैं। लेकिन इनको दैत्यो का (राक्षसों का) गुरु कहा गया है।

इनके पिता का नाम ऋषि भृगु  ओर माता का नाम ख्याति जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। भृगु ऋषि ओर ख्याति से दो पुत्र ओर एक पुत्री  संतानों की प्राप्ति हुई।

इनके नाम धाता,विधाता तथा पुत्री का नाम  श्री है।

महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव यानी गुरु तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि यानि शुक्र समकालीन थे। यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया। कवि महर्षि अंगिरा के पास ही रह कर बृहस्पति ( जीव ) के साथ ही विद्याध्ययन करने कि प्राथमिक शुरुआत  कि ।

आरंभ में तो सब सामान्य रहा लेकिन बाद में अंगिरा अपने पुत्र बृहस्पति की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने लगे व कवि(शुक्र) की उपेक्षा करने लगे। कवि ने इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में ही छोड़ कर जाने की अनुमति ले ली और गौतम ऋषि के पास पहुंचे। गौतम ऋषि ने कविराज शिक्षा पुर्ण करवाई तथा की उसे महादेव कि शरण में जाने का उपदेश दिया। 

महर्षि गौतम  के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर जाकर महादेव की कठिन आराधना  व तपस्या की। तपस्या व आराधना से प्रसन्न हो कर महादेव ने कविराज शुक्र को देवों से भी दुर्लभ मृतसंजीवनी नामक विद्याप्रदान की तथा कहा कि जिस मृत व्यक्ति पर तुम इसका प्रयोग करोगे वह जीवित हो जाएगा। साथ ही ग्रहत्व प्रदान करते हुए भगवान शिव ने कहा कि आकाश में तुम्हारा तेज सब नक्षत्रों से अधिक होगा।

तुम्हारे उदित होने पर ही विवाह आदि शुभ कार्य आरम्भ किए जाएंगे। अपनी विद्या से पूजित होकर भृगु नंदन शुक्र दैत्यों के गुरु पद पर नियुक्त हुए। जिन अंगिरा ऋषि ने उनके साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया था।लेकिन उन्हीं के पौत्र जीव पुत्र कच को संजीवनी विद्या देने में शुक्र ने किंचित भी संकोच नहीं किया। इस संसार में सभी प्रकार के दत्यो तथा उनकी शक्तियों पर दैत्यराज शुक्र का अधिपत्य है। ये सवेत  वस्त्र धारण करते है।

इनकी सवारी ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ है। इनके हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी दिखाई देती हैं।

जिस तरह देवों के गुरु बृहस्पति हैं, ठीक उसी तरह शुक्र दानवों के गुरु हैं। इसलिए बृहस्पति देव से शुक्र की कभी नहीं बनती है। दोनों बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में है। पेड़ का बाहरी आवरण  बृहस्पति गुरु को दिखाई देता है और पेड़ कि जड़ें दैत्य गुरु को दिखाई देती है।