शनि देव का पिंड स्वरूप:-

  • शनि ग्रह का व्यास 116460 किलोमीटर है
  • शनि ग्रह का वजन 5.683×10^26 किलोग्राम है।
  • इनकी गति औसतन 10 किलोमीटर प्रति सेकंड है। शनि सूर्य का एक चक्कर लगभग 29.5 वर्ष में पूरा करता है। और यह अपनी धुरी का एक चक्र10 घंटे 40 मिनट में  पूरा कर लेता है।
  • शनी से सूर्य के बीच की दूरी 1.4 अरब किलोमीटर लगभग है।

ज्योतिषीय महत्व:-

ज्योतिष में शनिग्रह को न्याय का कारक  माना गया है। जिस व्यक्ति के अंदर शनि ग्रह की उर्जा सुव्यवस्थित होती है उन व्यक्तियो में न्याय करने कि क्षमता तथा निर्णय लेने की क्षमता अधिक होती है।

जो व्यक्ति मेहनत में विश्वास रखते हैं तथा झूठ से दूर रहते हैं और चरित्रवान होते हैं उनमें शनि की उर्जा का विस्तार अपने आप बढ़ता रहता है। शनी देव सेवाभाव के कारक है। मनुष्य के मन में सेवा का भाव होगा तो वह जीवन में कठिन से कठिन कार्य को भी आसानी से कर लेता है। जो व्यक्ति अपने अंदर शनि की ऊर्जा का विस्तार कर लेते हैं उनमें निर्णय करने की क्षमता बहुत अद्भुत रुप से विकसित हो जाती है ।

शरीर में शनि हड्डियों का कारक है।

कुंडली में शनि की अवस्था को देखकर व्यक्ति के निर्णय क्षमता अथवा उसकी दरिद्रता कि स्थिति का पता लगाया जाता है।

पौराणिक स्वरूप:-

हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि  देव को सूर्य देव का पुत्र माना गया है। सूर्य देव कि पत्नी छाया से  शनि देव का जन्म हुआ है।सूर्य देव से विपरीत स्वभाव  के कारण इनको सूर्य देव  का वैचारिक शत्रु  माना गया है। इनका स्वभाव शांत है। तथा इनके स्वभाव में निर्णयात्मक दृष्टि  बहुत ज्यादा विकसित होने के कारण  इनको निर्णय के देव भी कहा गया है। कर्मानुसार सटीक फल कर्मगति प्रदान करना इनकी मुख्य विशेषता है। निर्णय सुनाते समय यह सिर्फ सच्चाई को साक्ष्य मानते है। इस लिए इनको कठोर स्वभाव का कहा गया है।इनके बारे मे यह धारणा है कि यह अपने पिता को भी माफ नहीं करते।

ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्मस्थल माना जाता है।

सूर्य से शत्रुता के बारे मे पौराणिक मान्यता:-

जब सूर्य देव अपनी पत्नी के पास सहवास के लिए गये तो सूर्य देव के  तेज के प्रभाव  के सामने छाया कि आखे नही खुली रही थी।वह बहुत परेशान हो गई। ओर उसने अपनी आखे बंद करली ओर  हाथों से अपना मुंह ढक लिया। सूर्य देव गर्भाधान संस्कार करके अपने स्थान को लोट गये।

निर्धारित समय  के बाद  छाया के गर्भ से पुत्र कि प्राप्ति हुई। पुत्र का श्याम वर्ण (काले रंग) को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि यह मेरा पुत्र नहीं है। यही बात मां छाया के मुख से सुनकर  पुत्र के मन मे पिता के प्रति घृणा  विचारों का उदगम हुआ तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुता रखते हैं।

इनकी दृष्टि में जो क्रूरता  कहि गई है। वह इनके निर्णय करने  के तरीकों से  धारणा बन गई क्योंकि ये किसी को भी माफ नही करते।

जब सूर्य देव ने इनको पुत्र रूप में नहीं स्वीकारा तो ये दुखी होकर शिव कि अराधना में ध्यान मगन हो गए ।

शनि देव ने  महादेव के समक्ष कठोर तपस्या कीm ओर उनको खुश किया ओर वरदान के पात्र बन गए ।ओर शिव जी से प्रार्थना की सूर्य देव के तेज के सामने

मेरी मां छाया की परजय तथा अपमान युगों युगों से होता रहा है। उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है। इसलिए  उनकी  इच्छा है कि मैं अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं। इनकी इच्छा को महादेव ने स्वीकार किया ओर उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।