मुहूर्त में तिथि विचार।
वर्जित तिथि-
चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी अमावस्या, श्राद्ध पक्ष, होलाष्ट, सावड़-सूत्तक अवधिया निषेध है।
द्वितीय, तृतीय, पंचमी, सष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादश, त्रयोदशी, पूर्णिमा, कृष्ण पक्ष, प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी इसके बाद चंद्रमा का प्रभाव क्षीण हो जाता है। किसी भी कार्य के दो पक्षों होते हैं एक योजनाओं पर तथा दूसरा बनाई हुई योजना को मूर्त रूप दे। पर योजना का कार्य कल्पना से जुड़ा हुआ है और कल्पना का कारक चंद्रमा के प्रकाश का प्रभाव जितने दिन पृथ्वी पर रहता है, उस अवधि में कोई भी कार्य की शुरुआत की जाए, तो उत्तम परिणाम मिलते हैं। जैसे-जैसे चंद्रमा का प्रभाव बढ़ते क्रम की तरफ बढ़ता है उन तिथियों में कार्य की शुरुआत शुभ फलदाई है।
चंद्रमा का प्रभाव जिस समय पृथ्वी पर क्षीण रहता है। उस समय बनाई हुई योजनाओं को शारीरिक कर्म से कार्य को करने की क्षमता में वृद्धि रहती है।
जब चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी पर ज्यादा रहता है तो पृथ्वी पर प्रत्येक प्राणी का मन ज्यादा चंचल रहता है। मन के पटल पर विचारों का आगम ज्यादा रहता है और जब चंद्रमा के प्रकाश का प्रभाव कम रहता है तो मन में विचारों की गति धीमी रहती है।
किसी भी कार्य में तिथियों का विशेष प्रभाव रहता है।