1. मंगल ग्रह का रंग लाल है।
  2. यह अपनी धुरी पर एक चक्कर 24 घंटे 40 मिनट में पूरा करता है।
  3. मंगल व्यास कि तुलना में पृथ्वी से आधा है। पृथ्वी का व्यास 7926 मील हैओर मंगल का व्यास 4220 मील है ।
  4. अगर यह तुलना भार के अनुसार की जाए तो मंगल पृथ्वी से दसवें हिस्से के भार के अनुसार भारी है।
  5. मंगल सूर्य के चारो ओर एक चक्र लगभग 687 दिन में पूरा करता है। सूर्य से मंगल के बीच की दूरी 14.2 करोड़ मील दूर है। और सौर मंडल में पृथ्वी से मंगल तीसरे नंबर पर है। सूर्य चौथे नंबर पर है।
  6. मंगल का वजन 6. 39 ×10√23kg किलो भार है।

मंगल का ज्योतिषीय महत्व :-

सहकर्मी तथा हम उम्र के मित्र तथा भाइयों का कारक है। यह साहस का प्रतीक है। अग्नि का कारक होने के कारण इनके स्वभाव मे गुस्सा तथा अग्नि झलकती है।

शरीर में खून तथा मजा का कारक है अगर शरीर में खून का संचार सुचारू रूप से होता है तो शरीर में बल कि क्षमता भी बढ़ती है। संसार में अपने बल का प्रयोग सुव्यवस्थित हो तो क्षमता तथा बल का विस्तार होता है। तथा साहस में वृद्धि होती है और दुस्साहस का अंत होता है। बल का प्रयोग अव्यवस्थित हो तो दुर्व्यसनो में वृद्धि होती है

व्यक्तिगत स्वभाव में आक्रामकता बढ़ती है । शरीर में सुचारू रूप से खून के संचार का कारक मंगल ग्रह को माना गया है। जन्म कुडंली में मंगल कि स्थिति से जीवन में साहस तथा क्षमताओ का आंकलन किया जाता है। मंगल ग्रह के अधिष्ठ देव हनुमान जी है। मंगल नाथ के नाम से शिव लिंग कि पुजा उज्जैन में कि जाती है।

  • मंगल ग्रह का पौराणिक महत्व।
  • मंगल ग्रह की देव तुल्य पुजा की जाती है।
  • मंगल ग्रह की उत्पत्ति का एक पौराणिक वृत्तांत स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड में मिलता है।

एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधकासुर नामक दैत्य राज्य करता था।  उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था। एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युद्ध कर उसे मार गिराया। उस दानव को मारकर इन्द्र देव अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गए।

इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन कर अपनी अवस्था उन्हें बताई और रक्षा की प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिए। इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।

अंगारक, रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामों से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है।