गर्भ में एक महीने तक निर्माण क्रिया शुक्र ग्रह से संबंधित होती है। रूप आकृति निर्माण। कोखं में निषेचन होने के 5-6 दिन में भ्रूण गर्भाशय में आकर सतह पर चिपक जाता है। जिसे प्रत्यारोपण कहा जाता है। पहले महीने के अंत तक भ्रूण का आकार चावल के दाने से भी छोटा होता है। पहले महीने में भ्रूण एक शिशु कि आकृति में ढलने लगता है। चेहरा आकार लेने लगता है, इस दौरान मुँह, आँखें, नीचे का जबड़ा और गला भी बनने लगता है । साथ ही रक्त कोशिकाएं बनने शुरू हो जाती है और रक्त प्रवाह शुरू हो जाता है। इस समय शिशु अपना रुप ओर आकृति धारण करता है।इस समय शुक्र ग्रह से संबंधित क्रियाऐं विकसित होती है। इस समय गृभ में आकृति अपने रूप को धारण करती है। इस समय एक मां को चाहिए कि वह अपने मनस पर सुंदर आकृतियों का ध्यान करे । इस लिए गर्भ धारण करने के साथ हि माताएं अपने कमरे में शिशु के चित्र लगाते है।जिससे शिशु कि रूप आकृति सुंदर व आसानी से विकसित हो सके। प्रथम मास मे गर्भवती को खट्टा – मिठा खिलाऐ। यह रस स्वाद शुक्र ग्रह संबंधित माना गया है।इस समय गर्भवती को भी ऐसे स्वाद रस कि इच्छा रहती है।

दूसरे महीने में गर्भ पर मंगल का प्रभाव रहता है। दूसरे महीने में भ्रुण में खून का संचार पहले ज्यादा बढ जाता है। जिससे भ्रुण के अंग विकसित होने का क्रम अपनी गति पकड़ लेता है। शरीर मेंअंग तेजी से विकसित होने लगते है। छठे सप्ताह में शिशु की धड़कन यंत्रों(सोनोग्राफी) के माध्यम से देखी जा सकती है। जिससे पिंड मे प्राणों का स्वरूप साक्षी होता जाता है। इस महीने के अंत तक शिशु विकसित होकर 1.5 से 2 सेंटीमीटर का हो जाता है । शिशु में थोड़ी सी महसूस करने की क्षमता पैदा होने लगती है।इस समय गर्भवती को मिठा खाने का मन रहता है। इस समय गर्भवती को मिठे रस वाली वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।

तीसरे महीने गर्भ पर गुरु ग्रह का प्रभाव रहता है। इस समय शिशु के विकास का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। इस समय तक शिशु के चेहरा कान, हाथ-पैर और अंगुलियाँ पूरी तरह से बन चुकी होती हैं। नाखुन बनना शुरू हो जाते हैं और जननांग बनने लगते हैं। इस महीने के अंत तक हृदय, धमनियाँ तथा अन्य अंग विकसित होने लगते है।

आकृति को पुर्ण रूप प्राप्त होता है। शिशु के विकास का पहला चरण तीन महीनों में पूरा हो जाता है इसलिए इसके बाद गर्भपात होने की संभावना कम ही रहती है। तीसरे महीने के महिला का शिशु से भावनात्मक रूप से लगाव होना शुरु हो जाता है। दूध और मीठे से बनी मिठाई या पकवान का सेवन करे तथा पीले वस्त्र धारण करें।इस समय गर्भवती को गीता को जरूर पढना चाहिए।गर्भवती को दुध मे केसर डालकर सेवन करना चाहिए।इस समय शिशु मे बृहस्पति ग्रह कि ऊर्जा विकसित होती हैं। चौथे महिने गर्भ पर सुर्य ग्रह का प्रभाव रहता है।

चौथे महीने में आँखें, भौंहे, नाखुन और जनजांग बन जाते हैं। दाँत और हड्डियाँ मजबूत होने लगती हैं। अब शिशु सिर घुमाना, अंगुठा चुसना आदि शुरू कर देता है। इस समय कटु रसोंका सेवन करे तथा महरून वस्त्र ज्यादा धारण करें। इस समय शिशु में सुर्य ग्रह कि ऊर्जा विकसित होती है। गृर्भवती को परमात्मां के अस्तित्व के बारे में पढना चाहिए।ओर अपने अंदर उसके प्रति विश्वास स्थापित करना चाहिए।

पांचवे महीने में गर्भ पर चंद्र ग्रह का प्रभाव रहता है। पाँचवे महीने में सिर के बाल बनना शुरू हो जाते हैं। कंधा, कमर और कान बालों से ढके होते हैं यह बाल बहुत मुलायम और भूरे रंग के होते हैं।महीने के अंत तक वजन 300 ग्राम और लम्बाई 16.5 सेंटीमीटर हो जाती है। इस समय तक शिशु की मांसपेशिया विकसित हो जाती है इसलिए वह हलचल शुरू कर देता है जिसे माँ महसूस कर सकती है। इस समय गर्भवती को दूध और दही तथा चावल तथा सफ़ेद चीजों का सेवन करना चाहिए। इस समय शिशु में चंद्रमा की ऊर्जा विकसित होती है।

छटे महीने गर्भ पर शनि का प्रभाव रहता है। छठे महीने में शिशु का रंग लाल होता है जिसमें से धमनियों को देखा जा सकता है। इस समय शिशु के महसूस करने की क्षमता बढ़ जाती है। और वह ध्वनि को सुनकर उसे महसूस कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगता है। इस महीने के अंत तक उसका वजन 600 ग्राम और लम्बाई 30 सेंटीमीटर के लगभग हो जाती है। इस समय गर्भवती को कसैली चीजों केल्शियम और रसों के सेवन करना चाहिए। तथा मानसिक शांति व मानसिक शुद्धि पर ध्यान करें। सातवे महीने में गर्भ पर बुध ग्रह का प्रभाव रहता है।

सातवें महीने में शिशु में चंचलता बढ़ने लगती है। उसकी आवाज सुनने की क्षमता और अधिक बढ़ जाती है, प्रकास के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देने लगता है। और गर्भ में जल्दी-जल्दी अपना स्थान बदलता रहता है। इस समय तक शिशु इतना विकसित हो चुका होता है कि किसी कारण से समय से पहले प्रसव हो जाये तो वह जीवित रह सकता है। इस समय गर्भवती को जूस और फलों का खूब सेवन करे तथा हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।

आठवे महीने गर्भ पर चंद्रमा ग्रह का प्रभाव रहता है। आठवें महीने में शिशु की हलचल और अधिक बढ़ जाती है जिसे माँ बहुत अच्छे से महसूस कर सकती है। इस समय दिमाग का विकास तेजी से होता है और वह सुनने के साथ देख भी सकता है। फेंफड़ों के अलावा अन्य सभी शारीरिक अंगो का विकास पूरा हो चुका होता है। इस महीने में शिशु का वजन लगभग 1700 ग्राम होता है और लम्बाई 42 सेंटीमीटर हो जाती है। समय गर्भवती को सुबह-शाम ध्यान में बैठना चाहिए तथा अपने खाने-पीने का पूरा ध्यान रखें फलों का रस लेते रहें। इस समय शिशु में चंद्रमा की ऊर्जा विकसित होती है।

नौवे महीने गर्भ पर सूर्य का प्रभाव रहता है। नवें महीने में बच्चे के फेफड़े भी पूरी तरह से बन चुके होते हैं। शरीर में हलचल बढ़ जाती है पलके झपकाना, आँखे बंद करना, सिर घुमाना और पकड़ने की क्षमता भी विकसित हो जाती है। इस समय शिशु पर सूर्य ग्रह की उर्जा का पुरा प्रभाव रहता है। वह अब प्रकाश की ओर गर्भ से बाहर आने की पूरी कोशिश करता है। इस प्रकार गर्भ में सात ग्रहों का प्रभाव प्रभावित करता है।