इस संस्कार का प्रयोजन जीवन में शिक्षा ग्रहण करने कि शुरुआत से हैं। इस संस्कार को गुरुकुल में अध्ययन कि शुरुआत से पहले किया जाता है। जब बच्चा सात वर्ष कि आयु तक पहुंचता है तो विद्या ग्रहण करने से जुड़े सभी संस्कारों कि शुरुआत कि जाती है, अलग-अलग स्थानों में उपनयन संस्कार के साथ ही यह संस्कार करवाया जाता है, कुछ स्थानों पर इनसे संबंधित संस्कारों का लोप हो चुका है वहां केवल विद्या ग्रहण संस्कार ही करवाया जाता हैं।
शुभ नक्षत्र:- अश्विनी,रोहिणी,मृगशिरा,आर्द्रा,पुनर्वसु,पुष्य,आश्लेषा,पुर्वाफाल्गुनी,पुर्वाषाढा,पुर्वभाद्रपद,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढा,उत्तराभाद्रपद,हस्त,चित्रा,स्वाती,श्रवण,धनिष्ठा,शतभिषा,अनुराधा,मूल,रेवती येसभी नक्षत्र शुभ होते हैं ।
शुभ तिथि:- २,३,५,६,१०,११,१२
शुभवार:- रविवार,गुरूवार,शुक्रवार
चंद्रमा ६,८,१२ में नही होना चाहिय।
सुर्य उत्तरायण में हों । अपने पुर्वजो के आशिर्वाद के साथ तथा गुरूजनो को प्रणाम करके विद्यारंभ करें। यह संस्कार उपनयन संस्कार के बाद किया जाता हैं । इसमे गुरू शिष्य को पुरी तरह विश्वास का पात्र बनाकर विद्या ग्रहण कराना आरंभ करवाते हैं । कई जगहों पर इसी संस्कार को वेदारंभ संस्कार भी कहा गया है।
मुहूर्त निकलवाने के लिए नामाकन करे-