इस संस्कार का प्रयोजन है नवजात शिशु को इस संसार में आगमन पर वातानुकूलित वातावरण का प्रबंध करना तथा जीवनरक्षा के नियमों का पालन करना इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य हैं।
इस संस्कार को बच्चे के जन्म के स्थिति के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है ।( बालक का जन्म हो उसी घड़ी अथवा सूतक के अंत में पित्रों का पूजन कर जातकर्म करना चाहिए।
नारद संहिता के अनुसार उत्पन हुऐ बालक के जो संस्कार किए जाते है उन को जातकर्म संस्कार कहा जाता हैं। इस कर्म में बालक को स्नान कराना ,मुख साफ करना , शहद चटाना स्तनपान तथा आयुष करण शामिल हैं।
नाल छेदन के बाद जिस कमरे में जच्चा–बच्चा हो उस कमरे के द्वार पर अग्नि से भरे मटके को या अन्य किसी पात्र में अग्नि रखी जाती हैं ।
यह अग्नि दस दिन तक कम से कम रखी जाती है तथा लगातार प्रजवल्लित रखनी चाहिए ये एक स्वास्थय माप दंड के प्रति रखी जाती हैं। लेकिन आज के समय में बच्चो का जन्म अस्पतालो में होने के कारण ये संस्कार आधुनिक तरीके से होते हैं । घर पर आने के बाद अग्नि का प्रयोग कमरे के बाहर जरूर करें ।
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