आयु की कौन सी अवस्था में कौन सा तत्व जीवन को प्रभावित करता है।
तत्वों के प्रभाव में जीवन।
1 से 10 वर्ष कि आयु तक जीवन में जल तत्व प्रभावित रहता है। जैसे का स्वभाव है वैसा ही स्वभाव बच्चे का भी है। जैसे जल अपने से नीचे चल कि और आकर्षित होता है वैसे ही बच्चा भी दुसरो कि तरफ जल्दी आकर्षित हो जाता है।जल की प्रकृति भाव से परिचित है जब बच्चा एक से लेकर 10 साल तक का होता है तो उसमें पानी के बहाव कि तरह पवित्र स्वभाव जैसी भावना ज्यादा रहती है।
मनस पर विचारों में जल कि प्रधानता के कारण वह व्यवहार से भी जल की तरह ही व्यवहार करता है।किसी भी चीज की तरफ जल्दी से आकर्षित हो जाता है जल की प्रकृति जैसा ही होता है बच्चा । जैसे जल जीवन चक्र में प्रथम तत्व है। वैसे ही बचपन भी जीवन कि शुरुआत है। जैसे जल में बिना रास्ता दिखाईं देने पर भी आगे बढ़ने की क्षमता होती है वैसे ही गुण बचपन में भी होते हैं।
10 से 20 वर्ष तक व्यक्ति कि आयु वायु तत्व से प्रभावित रहती हैं। जीवन में यह अवस्था वायु कि तरह हि व्यवहार करतीं हैं। इस समय शरीर में वायु का वेग ज्यादा रहता है व्यक्ति एक जगह नहीं रूकता तथा एक जगह से दूसरी जगह घूमता ही रहता है । लोगों के साथ ज्यादा जुड़ाव रखता है। इस अवस्था में रुचि घूमने-फिरने की ज्यादा रहती है इस आयु में व्यक्ति की रूचि खेलने में कूदने में ज्यादा रहती है व
ह उत्साहित रहता है। कई बार सुनने में आता है। ” खेलने कूदने की भी एक उम्र होती है।” वह अवधि जीवन की इसी अवस्था में होती है। जीवन कि वह अवधि वायु तत्व से प्रभावित है। यह आयु खेलने की कूदने की होती है इस समय व्यक्ति के स्वभाव में वायु का प्रभाव ज्यादा रहता है इन्हें इस अवस्था में किताबें पढ़नी चाहिए अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए आदर सम्मान करना चाहिए सभी व्यक्तियों का।
जैसे वायु तत्व का कार्य आवश्यक तथा अनावश्यक ज्ञान को ग्रहण करना है। वैसे ही इस आयु में भी घटित होता है। इस अवस्था में ज्ञान ग्रहण करने कि क्षमता अनियंत्रित जल्दी होती है।जैसे वायु हमें इच्छा और बिना इच्छा के खुशबू और दुर्गंध दोनों से अवगत करवाती है वैसे ही इस आयु कि अवधि में घटित होता है। यह व्यक्ति इस समय अगर अपने से बड़ों का आदर करेगा तो अपने तत्वों को अपने अनुसार विकसित कर पाएगा इसमें ज्ञान का प्रभाव विकसित होने लग जाता है।
इस अवस्था में अपने तत्व को विकसित करने के लिए छोटे बच्चों को पढ़ाना चाहिए तथा उनकी देखभाल उनके साथ समय व्यतीत करना चाहिए और अपने से बड़ों का आदर एवं उनके प्रति सेवा भाव रखना चाहिए जिससे उनका तत्व निर्विरोध विकसित हो सके। वायु तत्व वाला व्यक्ति अगर परिश्रम करता है
तो वह अपने पुरुषार्थ सिद्ध करने की राह पर होता है। 18 वर्ष की आयु के बाद में व्यक्ति को अपने परिश्रम से धन अर्जित करना शुरू कर देना चाहिए। वह अपने आप कमाने के लिए तैयार हो चुका होता है। यह वह अवस्था होती है जब वायु अपने अंतिम पड़ाव पर अग्नि में परिवर्तित होने की अवस्था में होती है । पेड़ की लकड़ियां उससे अलग करने के बाद में सूखती है और अपने ज्वलन ताप तक पहुंचती है।
10 से20 वर्ष के व्यक्ति को 50 से बड़ी उम्र के व्यक्तियों के प्रति अंतर्मन में विशेष आदरणीय भाव रखने चाहिए।
20 से 50 वर्ष कि आयु में व्यक्ति अग्नि तत्व से प्रभावित रहता है। यह अवस्था घटनाक्रम को बदलने में सबसे तेज होती। तत्वों में अस्तित्व तथा आकार को बदलने की क्षमता इस तत्व में अन्य तत्वों से ज्यादा होती है। इस आयु की अवधि में व्यक्ति नया कुछ उत्पन्न करता है । यह अवस्था बच्चो को जन्म देने कि अवस्था होती है।
व्यक्ति इस आयु की अवधि में निर्माण करता है । उद्योग , व्यापार करता है तथा अपनी मेहनत और अपने विवेक से पैसे कमाता है । शारीरिक परिश्रम से धन अर्जित करता है।व्यक्ति इस अवधि में आर्थिक तथा भौतिक दोनों ही क्रिया करता है । इस अवस्था में व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावशाली रहता है।
यह अवस्था नगद भुगतान कि अवस्था होती है। इस अवस्था में विषय को बदलने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है।अग्नि तत्व के बिना किसी भी वस्तु का पूर्ण निर्माण संभव नहीं है। संसार में किसी भी वस्तु को उसकी पूर्ण अवस्था में अग्नि ही लेकर जाती है। बिना अग्नि कि सहायता के कोई भी वस्तु अपने पूर्ण आकार में नहीं पहुंच पाती क्योंकि आकार का निर्माण अग्नि हि करतीं हैं। इस अवस्था की सहायक अवस्था युवावस्था होती है।
इस आयु के व्यक्तियों को वृद्धावस्था से जुड़ी अवस्था के व्यक्तियों कि सेवा अंतर्मन से करनी चाहिए। तथा बच्चों के प्रति कल्याण कारी भाव रखने चाहिए। जीवन में यह अवस्था पुरूषार्थ को सिद्ध करने में सबसे ज्यादा सहायक होती है।
50 से 60 वर्ष कि आयु में व्यक्ति पृथ्वी तत्व से प्रभावित रहता है। इस आयु में मनुष्य पृथ्वी तत्व के अनुसार ही व्यवहारिक होते हैं। इस अवधि में व्यक्ति अपने जीवन के लिए हुए सभी अनुभवों से अपने कर्तव्यों की पूर्ति करता है। इस अवस्था में अपने बच्चों की शादीयां करता है तथा अपने व्यवसाय को अपने वारिसों से बांटता है। इस अवस्था में व्यक्ति पृथ्वी तत्व कि तरह स्थिर रहता है।
इस अवस्था में व्यक्ति अपनी जिम्मेवारियों को निभाने का कार्य करता है। निर्णय तथा अन्य कोई फैसला लेने कि क्षमता इस अवस्था में पूर्ण रूप परिपक्व होती है। जीवन कि तीन अवस्थाओं का अनुभव इनको अच्छे से होता है।
घर में रहने वाले अन्य अवस्थाओं के सभी सदस्यों कि भावनाओं से ये भली भांति परिचित होते है। इनके द्वारा कही हुई बात प्रभावशाली होती है। इस लिए इनको घर में सबसे ज्यादा सम्मान मिलता है। अग्नि तत्व वाली अवस्था के व्यक्ति इनके पुर्ण रूप से सहयोगी होते हैं। वायु तत्व कि अवस्था वाले व्यक्ति इनको विपरीत रूप से प्रभावित करते हैं। इस अवस्था वाले व्यक्ति को सभी का सम्मान करना चाहिए। यह अवस्था पूर्ण रूप से निर्णय लेने में सक्षम होती है।
60 वर्ष कि आयु के बाद व्यक्ति को आकाश तत्त्व प्रभावित करता है। इस अवस्था में व्यक्ति आकाश तत्त्व कि तरह पूरा ज्ञान तथा मनन करने के अनुभवों से पुरी तरह विकसित होता है। इस अवस्था में संसार कि जानकारी होने कि निश्चित अवस्था होती है। इस अवस्था में व्यक्ति जीवन के अनुभवों का मनन करता है। यह अवस्था जीवन कि अंतिम अवस्था होती है। इस अवस्था को मोक्षदायिनी भी कहा गया है। इस अवस्था में क्षमा मांगने के भाव ज्यादा रहते हैं।जीवन कि परिपक्व अवस्था होती है।
इंद्रियों पर नियंत्रण धीरे-धीरे कम होता जाता है।यह अवस्था शिव कि अवस्था होती है। यह अवस्था हि पृथ्वी पर सबसे अधिक समय कि साक्षी होती है। इस अवस्था में व्यक्ति अपने द्वारा किए गए पाप कृत्यों के लिए परमात्मा से प्रार्थना कर सकता है। तथा औरों को निःस्वार्थ भाव से शिक्षा प्रदान कर सकता है।यह अवस्था नव जीवन के पूर्ण रूप से सारथी होते है। जल की अवस्था वाले 10 वर्ष कि आयु के बच्चो के सहायक होते हैं।
अगर बच्चा 10 वर्ष तक अपने दादाजी के साथ रहे तो वह अपने संपूर्ण जीवन को अनुभव कर लेता है।इसी प्रकार तत्वों का प्रभाव हमारे जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इस दुनियां का सबसे अच्छा तत्व योग है आकाश से जल कि प्राप्ति।दादा ओर पोता।
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