ज्योतिष एवं वास्तु इनका हमारे जीवन में अहम योगदान है। वास्तु शास्त्र में दस दिशाएं आठ दिशा ,उप दिशाएं तथा मध्य मे केंद्र। और ज्योतिष शास्त्र के नौ ग्रहों का आपस में गहरा तथा विशेष संबंध है।
वास्तुशास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र का आपसी संबंध ग्रहों तथा दिशाओं के गुणधर्मों में समानता के अनुसार होता है । प्रत्येक दिशा कि विशेषता तथा उसके गुण धर्म, तत्वों के अनुसार व्यवहारों कि पहचान, ग्रहों के स्वभाव कि जानकारी प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा रचित शास्त्रों में मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र का आधार एक ही है। जन्म कुंडली हमारे जन्म स्थल तथा हमारे शरीर का परिचय देती है और उसमें बैठे ग्रह पांच तत्वों को दर्शाते हैं। हमारी जन्म कुंडली में जो स्थिति नव ग्रहों कि होती है वही स्थिति हमारे घर में पांच तत्वों कि भी होती है। इसी सिद्धांत के अनुसार जन्म कुंडली हमारे घर कि स्थिति को दर्शाता है और उसमें ग्रहों कि स्थिति हमारे घर में बने हमारे रसोई, स्नान घर तथा आराम करने के क्षेत्रों कि पहचान करवाते है।
दिशा अनुसार रिश्ते।
पुर्व दिशा – सूर्य ग्रह से संबंधित दिशा है तथा पिता, सामाजिक संपर्क तथा ज्ञान के मूल का कारक।
लोगों के साथ संपर्क कि क्षमता को भी यही क्षेत्र विकसित करता है। इस क्षेत्र में वायु तत्व कि प्रधानता होती है। इस क्षेत्र से घर में रहने वाले व्यक्तियों कि ज्ञान ग्रहण करने कि क्षमता का भी पता चलता है।
आग्नेय दिशा शुक्र ग्रह से संबंधित क्षेत्र है तथा पत्नी, घर कि औरते तथा जीवन में गुणवत्ता का आधार समझने वाली दिशा है। घर में सबसे गुणवत्ता वाला क्षेत्र यही होता है। घर मे रहने वाले प्राणियों में कलाकारों के गुणों को विकसित यही क्षेत्र करता है। सुरक्षा तथा भौतिक सुखों का आधार भी यही क्षेत्र है। यह क्षेत्र विकसित अग्नि तत्व का कारक क्षेत्र है।
दक्षिण दिशा– मंगलग्रह से संबंधित दिशा है तथा छोटे भाई, मित्र, सहकर्मी का कारक व खुद के साहस का तथा आगे बढ़ने के लिए गुणात्मक रूप से जो सामंजस्य इस प्रकृति मे चाहिए वह इस दिशा के क्षेत्र से संबंधित है। सार्थक कर्म करने कि क्षमता इसी क्षेत्र विकसित होती है यह क्षेत्र परिपक्व अग्नि तत्व का कारक क्षेत्र है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा राहु ग्रह से संबंधित हैं। घर में बड़े बूढ़े का, अपने किसी दुसरे तथा अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की भावना आंतरिक मन में यहिं से आती है तथा अपने अंदर कि क्षमता को बढ़ाती है तथा उसे क्रियान्वित करती हैं। तथ्यों पूर्ण ज्ञान ग्रहण करने कि क्षमता भी इसी क्षेत्र के कारण विकसित होती है। यह क्षेत्र पृथ्वी तत्व का कारक क्षेत्र है।
पश्चिम दिशा शनि ग्रह से संबंधित है। चाचा,ताऊ,सेवक। इस दिशा से आपको सेवा करने कि भावनाओं का विस्तार होता है । किसी कार्य को लगातार करने कि तथा उस कार्य में गुणवत्ता को बढ़ाने के गुण इसी दिशा के क्षेत्र से संबंधित है। यह क्षेत्र आकाश तत्व का क्षेत्र है।
वायव्य दिशा चंद्रमा ग्रह से संबंधित है। इस दिशा से मां, मामा के रिश्तों का विश्लेषण किया जाता है।इस दिशा के क्षेत्र में कल्पना करने कि भावना का विस्तार होता है। सहयोग करने के गुणों का क्षेत्र भी इसी दिशा में विकसित होता है। यह क्षेत्र धातु कि तरल अवस्था का कारक क्षेत्र है।
उत्तर दिशा बुध ग्रह से संबंधित है। घर कि बोटियां, छोटे भाई बहिन तथा छोटे बच्चों का कारक यही दिशा क्षेत्र है। मनुष्य के जीवन में वाणी से जुड़े सभी विषयों को तथा नये धन के सभी आयामों को उत्तर दिशा का क्षेत्र ही विकसित करता है। यह क्षेत्र जल तत्व का कारक क्षेत्र है।
ईशान कोण बृहस्पति ग्रह से संबंधित है। घर का बडा बेटा,बड़े भाई-बहिन, गुरु जन, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ज्ञान ग्रहण करने के स्त्रोत इसी दिशा से संबंधित है। इस क्षेत्र में ज्ञान को स्पष्टीकरण मिलता है। तथा इसी क्षेत्र में ध्यान को गहराई मिलती है। यह क्षेत्र जल तत्व का कारक क्षेत्र है।
ब्रह्मस्थान के क्षेत्र के का स्वामी ग्रह केतु को माना गया है। ब्रह्मस्थान को उत्पत्ति का कारक माना जाता है। इस क्षेत्र को सन्तान उत्पति का कारक भी माना गया है। इस संसार में जीवन का आधार भावना को माना गया है। भावना का कारक केतु ग्रह को माना गया है। केतु को भुमि माना गया है।
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