1. जय सिया राम।
भुमि चयन प्रक्रिया में सर्व प्रथम भूमि अधिग्रहण करने से पहले भुमि के स्वामी पर विचार करना चाहिए। जो भुमि आप ले रहें है। उसका स्वामी कोन हैं।
गलत तरिके से अधिग्रहित हमेशा भूमि बसने वाले को सुख से वंचित रखती है। धोखे से ली हुई भूमि, कब्जा करके रोकी हुई भूमि पर नहीं बसना चाहिए।
इसके बाद भुमि कि अवस्था पर ध्यान दे की भुमि जागृतावस्था में हो । भुमि सोई हुई अवस्था में ना हो।
भुमि पर जंहा आपको भवन निर्माण करना हो वहां चिट्टियों का घर ( किड़ी नगरा )ना हो।भूखंड समतल होना चाहिए। भुभि लंबाई अनुपात एक अनुपात दो से ज्यादा लंबी नही होनी चाहिए। भुमि कि उच्च नीच अवस्था के बारे मे हमारे शास्त्रों में वर्णित है। जो भूमि पूर्व और उत्तर दिशा की ओर से नीची हो और बाकी भूमि सम तल हो मन को प्रसन्न रखने वाली भूमि होती है। जो भूमि दक्षिण और पश्चिम की ओर से नीची हो और उत्तर और पूर्व की ओर से ऊंची हो वह भूमि हमेशा दुखदाई होती है।
जो भूमि ऊंची नीची हो पूरा भूखंड ऊंचा नीचा हो वह भूमि विचलित करने वाली होती है। जिस भूमि में दक्षिण और पश्चिम क्षेत्र में ज्यादा पेड़ हो वह भूमि भी दुखदाई होती है। जिस भूमि के चारों कौण बराबर नहीं हो मैं भूमि बसने योग्य नहीं होती बसने योग्य भूमि के चारों कोण 90 डिग्री के होनी चाहिए। भुमि के ऊपर या भुमि के अंदर गंदगी का ढेर नही होना चाहिए।
जहां भवन बनाना हो उस भुमि से रेल कि पट्टरीयां कम से कम 500 मीटर कि दुरी पर होनी चाहिए। भवन कि भुमि शमशानघाट के नजदीक नही होनी चाहिए। भुमि के नजदीक गंदे पानी का नाला व तालाब नही होना चाहिये तथा भुमि का स्तर पास के भूखंड से नीचा ना हो। भुमि पर किसी मकान का मलवा तथा मृत पशुओं के अवशेष दबे हुऐ ना हो।अगर आपको पता चल जाएं की भुमि के अंदर या ऊपर गंदगी का ढेर है तो उसकि स्फाई तुरंत करवाये।
भुमि कि ऊपज तथा बांझ अवस्था पर विचारकरना चाहिए।जो भुमि अनाज अथवा अन्य बनस्पतियों को उपजती है वह भुमि उपजाऊ भुमि है। ओर जिस भुमि पर कुछ नही उगता उसे बांझ भुमि कहा गया है।इसके कई कारण हो सकते है।
चार प्रकार की भुमि कही गई है
1. जिस भुमि का रंग श्वेत वर्ण हो वह भुमि ब्राह्मण भुमि कहि गई हैं। रक्त वर्ण भुमि को क्षत्रिय भुमि कहा गया है। कृष्ण वर्ण भुमि को शुद्र भुमि कहा गया है। पित्त वर्ण कि भुमि को वैश्य भुमि कहा गया है।
2. मनमोहक सुगंध वाली भुमि को ब्राह्मण भुमि कहा गया है। रक्त गंध वाली भुमि को क्षत्रिय भुमि कि सज्ञा दी गई हैं। मध कि गंध वाली भुमि को शुद्र भुमि कि सज्ञा दी गई है। शहद कि गंध वाली भुमि को वैश्य भुमि कहा गया है।
3. मिठे रस वाली भुमि को ब्राह्मण भुमि। कषाय स्वाद वाली भुमि को क्षत्रिय भुमि।तिक्त रस (तिखा) वाली भुमि को शुद्र भूमि। अम्ल (खट्टा)रस वाली भुमि को वैश्य भुमि कहा गया हैं।
4. वर्णानुसार भुमि ब्राह्मण भुमि ज्ञान वर्धक भुमि।क्षत्रिय भुमि शारिरीक कोशल मे वृद्धि।शुद्र भुमि निर्माण तथा श्रामिक भुमि ।वैश्य भुमि व्यवसायिक भुमि। ये भुमि से संबंधित जानकारी शास्त्रों मे वर्णित है।
इसके अतिरिक्त सामाजिक उपयोग के लिए ब्राह्मण भुमि को देवालयों, विद्यालयों, चिकित्सालयो तथा शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं के लिए।क्षत्रिय भुमि को रक्षा से जुड़ी संस्थाओं, पुलिस स्टेशन, अन्य प्रशासनिक भवनो के लिए।शुद्र भुमि को कारखाने, न्यायालय परिसर। वैश्य भुमि को बैंक,दुकान, व अन्य व्यवसाय स्थलों के लिए शुभ फल दायी होती हैं। भवन बनाने से पहले भूमि के बारे मे ये सब बातो का बिचार जरूर करना चाहिए।
जीवन में आपके लिए सबसे सुरक्षित स्थान आपका घर होता है इसके लिए अच्छी गुणवत्ता वाली भुमि का चयन करें।
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