सनातन संस्कृति ब्रह्मा के रूप विश्वकर्मा देव जो निर्माण एवं सृजन का देव माना गया है सनातन धर्म में देव विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना गया है। जब मानव सभ्यताओं का रहना गुफाओं तथा जंगलों में था। उसके बाद अपनी चेतना को जागृत करके भवन निर्माण कार्य करना शुरू किया।
सबसे प्रथम भवन तथा भवन निर्माण में कल पुर्जों का आविष्कार तथा विस्तार का श्रेय देव विश्वकर्मा को हैं। वे ब्रह्मांड के पहले वास्तु शिल्पी थे। जिन्होंने पंचतत्वों को भवन में संतुलित किया ओर भवन को बसने के लिए व्यवस्थित किया। शास्त्रों में वर्णित है देव विश्वकर्मा ने इन्द्र देव के स्वर्ग लोक से लेकर रावण की लंका और भगवान श्री कृष्ण की द्वारका नगरी का भी निर्माण किया।
शास्त्रों के अनुसार देव विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना में ब्रह्मा की सहायता से पूरे ब्रह्मांड की रूप रेखा का नक्शा तैयार किया। सनातन संस्कृति और पुराणों में देव विश्वकर्मा को शिल्प शास्त्र व यंत्रों का अधिष्ठाता देव तथा प्रथम आविष्कारक माना जाता है। उन्हें विश्व का प्रथम आर्किटेक्ट का पद प्राप्त है। इसलिए उनकी पूजा करने की परम्परा है।
कल-पुर्जे-मशीनों से जुड़ी संसार में सभी कारखाने, ऑफिस, फैक्ट्री, दुकानें वगैरह जगहों पर विश्वकर्मा पूजन की जाने की परंपरा है। प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर तथा दिपावली के दुसरे दिन इनकी पूजा का विधान है। परंपराओं के अनुसार इनकी पूजा करने से वास्तु पुरूष मंडल में नई उर्जा का संचार होता है। तथा वर्ष भर ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। उनकी पूजा करने से मशीनों में नई जान आ जाती है और व्यापार में समृद्धि मिलती है। कहा जाता है कि आदि काल से ही देव विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण देवताओं की तरह पूजे जाते रहे हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों में इन्द्र पुरी, यमपुरी, वरुण पुरी, कुबेरपुरी, पांडव पुरी, सुदामा पुरी और शिवमण्डलपुरी जैसे कई नाम शामिल हैं। भगवान राम के पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी इनके द्वारा ही निर्मित हुई हैं, ऐसा माना जाता है।
कर्ण के कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का काल दण्ड, इन्द्र का वज्र वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। विश्वकर्मा कला-कौशल के देवता हैं। वास्तु के अनुसार आप अपने कौशल को बेहतर करना चाहते हैं तो संबंधित टूल्स, औजार वगैरह को घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखें। तथा देव विश्वकर्मा जी का चित्र भी इसी दिशा में रखने का प्रावधान है।जो लोग अपनी आजीविका भवन निर्माण कार्य तथा अन्य कारखानों में वस्तुओं के निर्माण से संबंधित है। उनके अधिष्ट देव विश्वकर्मा जी को माना गया हैं।
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