विक्रम संवत 2082 में भारत भूमि पर दिखने वाले दो सूर्य ग्रहण है।
सूर्य ग्रहण की स्थिति क्यों बनती :- जब सौरमंडल में अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच में जब चंद्रमा आता है इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है यह स्थिति प्रत्येक अमावस्या को बनती है और हर अमावस्या को ग्रहण की स्थिति बनती है । इस घटनाक्रम के समय उनकी छाया जहां पड़ती है वहां सूर्य ग्रहण का प्रभाव पड़ता है। परिक्रमा करते समय उनकी स्थिति एक जगह नहीं बनी रहती इसलिए अलग-अलग जगह यह प्रभावित होता ।


हमारे ऋषियों ने इस घटनाक्रम में इससे बनने वाली वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा को पहचान कर इसे निषेध कहा गया है।
यह स्थिति जब बनती है तो अपने नकारात्मक प्रभाव छोड़ती है इसे सीधी आंखों से नहीं देखना चाहिए गर्भवती महिला के लिए इसे निषेध कहा गया है इस दौरान जो सूतक लगता है उसे समय भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। इन नियमों से बच्चों और वृद्धो को बाहर रखा गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक ग्रह होता है। हमारी पृथ्वी के जन्म का कारक तथा हमारी पृथ्वी पर जीवन के कारक सूर्य को सनातन संस्कृति में देवता तथा पिता माना गया है इस पर ग्रहण कि स्थिति इनके प्रभाव में कमी को दर्शाती है।

Solar eclipse table
Solar eclipse table

इस घटनाक्रम के प्रभाव से सूर्य ग्रहण की स्थिति से कुछ घंटे पहले सूतक काल होता है ग्रहण पूर्ण होने के बाद में शुद्धिकरण के समय की जानकारी अनुसार व्यक्ति को स्नान करके करके दान करना चाहिए फिर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

संवत् २०८२ (2082) में भूमण्डल पर कुल दो सूर्यग्रहण दिखाई देंगे ओर दोनों सूर्यग्रहण भारत भूमि पर में दिखाई नहीं देंगें, जहाँ ग्रहण दिखाई नहीं देता वहां उसका प्रभाव भी नहीं पड़ता। वहाँ धार्मिक कृत्य करना आवश्यक नहीं है।

प्रथम सूर्यग्रहण – आश्विन कृष्णा अमावस्या रविवार, संवत् २०८२, . 21 सितंबर 2025

इस सूर्यग्रहण का भारतीय स्टैं. समय के अनुसार भूमि स्पर्श इस प्रकार है –

 स्पर्श -- रात्रि 11 बजकर 5 मिनट से शुरू 
मोक्ष।-  प्रातः 3 बजकर 25 पर मोक्ष 

द्वितीय सूर्य ग्रहण – फाल्गुन कृष्णा ३० मंगलवार संवत् २०८२, ता. 17 फरवरी 2026

इस सूर्यग्रहण का भारतीय स्टैं. समय के अनुसार भूमि स्पर्श इस प्रकार है –

स्पर्श – दोपहर 3 बजकर 24 मिनट पर

सम्मीलन – सायं 5 बजकर 29 मिनट

उन्मीलन – सायं 5 बजकर 57 मिनट

मोक्ष रात्रि 7 बजकर 54 मिनट पर।

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