वक्री- मार्गी अवस्था सारणी – विक्रमी संवत् 2082-
सौरमंडल में सभी ग्रह अपनी अपनी कक्षाओं में अपनी गति से एक ही आवरण में घुम रहे हैं। जब दो या अधिक ग्रह एक ही राशि में भ्रमण करते समय एक ही अंश पर आते हैं तो कुछ समय के लिए ग्रह अपनी गति में परिवर्तन लाते हैं और जब उस स्थिति में ग्रह स्थिर तथा गति मान दिशा से विपरीत दिशा में बढ़ना वक्री अवस्था कहलाता है तथा जब ग्रह इस स्थिति को छोड़कर अपनी निर्धारित दिशा में आगे बढ़ता है तो अब अवस्था को मार्गी अवस्था कहते हैं।
अपनी अवस्था के अनुसार ही प्रभावित करते हैं। वक्री अवस्था में जन्मे जातकों के स्वभाव में विचलित तथा निर्णयों में अस्थिरता होती है। बिना कारण बोलने कि आदत।ग्रह कि मार्गी अवस्था व्यक्ति के स्वभाव में निरंतरता के भाव बना कर रखती है।
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वक्री – मार्गी सारणी-विक्रमी संवत 2082-
बुध वक्री-मार्गी सारणी-विक्रमी संवत 2082-
गुरु वक्री-मार्गी सारणी-विक्रमी संवत 2082-
शुक्र वक्री-मार्गी सारणी-विक्रमी संवत 2082-
शनि वक्री-मार्गी सारणी-विक्रमी संवत 2082-