चंद्रमा के परिक्रमा की एक अवस्था की अवधि का नाम है तिथि । चंद्रमा की रोजाना आकृति में बदलाव के स्वरूप को तिथि के नाम से जानते हैं।
चंद्रमा की सभी कलाओं की अपनी-अपनी एक आकृति है। बढ़ते क्रम में आने वाली सभी तिथियों को शुक्ल पक्ष की तिथि तथा घटते क्रम आने वाली सभी तिथियों को कृष्ण पक्ष की तिथियां कहा जाता है।।
पूर्णिमा पूरी तरह से सूर्य के प्रकाश का प्रभाव चंद्रमा पर पड़ता है। पूरी छवि प्रकाशमय होती है। इस अवधि में चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देता है। पूर्ण चंद्रमा के दर्शन होते हैं। इस तिथि को पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा से मिलने वाली राशियों का प्रभाव पूर्ण रूप से मिलता है। इस दिन देवताओं का आह्वान किया जाता है।
अमावस्या को सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ता। इन दोनों के बीच में पृथ्वी का गमन रहता है। इस दिन चंद्रमा पर प्रकाश क्षीण रहता है। इस अवधि को अमावस्या कहा जाता है। इस दिन अपने पूर्वजों का आह्वान किया जाता है।
मुहूर्त के विषय में तिथियां प्रकाशित प्रकाशमय होती हैं, वहीं चंद्रमा बलवान होता है। संस्कार मुहूर्त में बढ़ते क्रम की तिथियां नए कार्य की तिथि में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के बाद पूर्ण पूर्णिमा तक होती है। उसके बाद चंद्रमा का प्रभाव क्षीण होना शुरू हो जाता है। परन्तु कृष्ण पक्ष की पंचमी तक चंद्रमा का प्रकाश रहता है। इसके लिए पंचमी तक शुभ कार्य कर सकते हैं।
तिथियों के नाम – वैसे तो कुल मिलाकर चंद्र मास में दोनों पक्षों कि तीस तिथियां होती है 15 कृष्ण पक्ष कि और 15 शुक्ल पक्ष कि। इन तिथियों के नाम क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग लिए जाते हैं
प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) पूर्णिमा (पूरनमासी),और अमावस्या (अमावस)।
गुणों के अनुसार इनको पांच संज्ञानात्मक नाम भी दिए गए हैं।
नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। यह नाम दोनों पक्षों कि तिथियों को गुणों के अनुसार दिये गये है।
नन्दा तिथि :- प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियां नन्दा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम 24 मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना गया है।
भद्रा तिथि :- द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियां भद्रा तिथि कहलाती है। इन तितिथों में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं परंतु कहा जाता है कि इन तिथियों में कोर्ट कचहरी, चुनाव और शल्य चिकित्सा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं। व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे कार्यों के लिए यह तिथियां शुभ मानी जाती हैं।
जया तिथि :- तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियां जया तिथि कहलाती है। यह तिथियां विद्या, कला, गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी गई है।
रिक्ता तिथि :- चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियां रिक्त तिथियां कही जाती है। इन तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृहप्रवेश आदि नहीं करना चाहिए लेकिन मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक मानी गई हैं।
पूर्णा तिथियां :- अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस
पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इनमें अमवस्या को छोड़कर बाकि दिनों में अंतिम 1 घटी या 24 मिनट पूर्व तक सभी प्रकार के लिए मंगलिक कार्यों के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं।
जब किसी कार्य को करना अनिवार्य होता है तो इस स्थिति में दोनों पक्षों की तिथियों को ग्रहण किया जाता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रिक्तता तिथियों का सदैव त्याग करें। मुहूर्त दर्शन के लिए सदैव त्याज्य तिथि इस प्रकार है। चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, श्राद्ध, होलाष्ठ, श्राद्ध पक्ष सदैव त्याग करना चाहिए।
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