मांगलिक दोष का निर्णय हम जन्म कुंडली के आधार पर करते हैं। जब मंगल ग्रह कुंडली के बारहवें, प्रथम, चौथा, सातवें तथा अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक या जातिका को मांगलिक दोष कि संज्ञा दे दी जाती है और भ्रम और भय को बड़ा बना कर जीवन में एक मानसिक विकृति को स्थापित कर दिया जाता है।और इसके दोष को दूर करने के लिए अन्यआवश्यक रूप से पुजा पाठ तथा जप के नाम पर ठगी शुरू कर दी जाती है।
एकं दिन में २४ घंटे और इन २४ घंटों में १२ लग्न होते हैं, और इन बारह लग्नों में पांच भावों में मंगल प्रत्येक दिन दो दो घंटे रहता है। इसके अनुसार तो एक दिन में जन्मे बच्चों में से ४५% बच्चे मांगलिक ही होते हैं। और इसी अधुरी जानकारी के आधार पर वर अथवा कन्या की कुण्डली में मंगलदोष अर्थात् मांगलीक बताकर इतना भ्रम पैदा कर दिया जाता है कि माता पिता तो घबराते ही है अपि तु बच्चे (वर कन्या) भी चिंतित हो जाते है । यह एक अपभ्रंश कुरीति है।
जो लोग मांगलिक दोष के नाम पर लोगों को भ्रमित करते हैं वो पाप के भागीदार बनते हैं तथा लोगों का मार्गदर्शन करने कि बजाए उनको भ्रमित करते हैं इस कारण ज्योतिषी धीरे-धीरे वास्तविक ज्ञान से दूर होते चले जाते हैं और द्ररिद्रता पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
प्राचीन काल के ज्योतिषीय ग्रंथों में मांगलिक दोष तथा कालसर्प दोष का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता। इन दोषों का निर्माण बाद में अज्ञानतावश हुआ है।
मांगलीक योग प्रमाणित करने के लिए शास्त्र में बहुमत प्राप्त होता है वह कन्या शब्द के लिए है ।
- “कन्याभर्तु र्विनाशाय.. ” इति प्रसिद्धः ||
- शास्त्रों में हमारे ऋषिगणों ने कन्या शब्द की संज्ञा के लिए दस वर्ष की आयु निर्धारित की है । वैसे आज के समय में यह अवस्था 12-13 वर्ष कि होती है जब तक मासिक धर्म शुरू नहीं होता तब तक कन्या कि संज्ञा ही दी जाती है। इस विषय में अन्य ऋषि-मुनियों के प्रमाण मिलते है
- श्री नारद, श्री कश्यप, श्रीपतिनिबन्ध, श्री पराशर, श्री व्यास जी द्वारा कथित”
“अष्टवर्षा भवेद्गौरी नववर्षा च रोहिणी । दशवर्षा भवेत्कन्या द्वादशे वृषली स्मृता”।। - पीयूषधारा पृ.३१४ अपि च — “दशवर्षा भवेत्कन्या अत ऊर्ध्वम् रजस्वला” ॥५॥
- निर्णयसिन्धु पृ. ४५०—- प्राचीन आचार्यों के मत से १२ वर्ष से ऊपर कन्या संज्ञा नहीं रहती है। ज्ञातव्य है कि १२ वर्ष से ऊपर रजस्वला होने के कारण कन्या संज्ञा नहीं रहती है तो मंगल दोष कहाँ से होगा । अस्तु । मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि – कन्या की आयु १२ वर्ष और वर की आयु १६ वर्ष (प्राप्ते षोडशे वर्षे..) के बाद किसी भी तरह का कोई मंगलदोष नहीं होता है ।
विशेष :- जातक भ्रमित ना रहे और मांगलिक दोष नहीं अपितु एक योग है।और मंगल अग्नि का कारक ग्रह माना गया है मंगल कि स्थिति से जीवन में कार्य करने कि क्षमता पर विचार किया जाता है।
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