तीर्थ यात्रा मुहूर्त का प्रयोजन अध्यात्म कि इच्छा से कि जाने वाली यात्रा के लिए विशेष समय का चुनाव करना है।
तीर्थ यात्रा मुहूर्त में साधारण यात्रा मुहूर्त के नियमों पर ही विचार किया जाता है।
किसी विशेष कार्य में यात्रा का विशेष महत्त्व होता है । तीर्थ यात्रा मुहूर्त का विचार लंबी-लंबी यात्राओ के लिए किया जाता है।रोज़ाना के कार्य के लिए की गयी यात्रा में मुहूर्त नहीं देखना चाहिए।
यात्रा करते समय जिस स्थान पर पहुंचना हो उस स्थान से अगर अतिरिक्त यात्रा करनी पड़े तो और अन्य यात्रा मुहूर्त नहीं देखना चाहिए।
एक गांव से दूसरे गांव में कि जाने वाली यात्राओं में मुहूर्त देखने की जरूरत होती है । प्राचीन काल में आचार्यों के मतानुसार राजा तथा बड़े अधिकारियों में योग के अनुसार यात्रा करने कि परम्परा थी।
ब्राह्मण तथा अन्य वर्गों में नक्षत्र पद्धति के अनुसार यात्रा करने का प्रचलन था। चोरों तथा ठगों में सुकून व संकेतों के अनुसार यात्रा करने कि परिपाटी थी।
यात्रा से पहले यात्रा के बारे में योजना तथा विचार करने से विषय सरल हो जाता है । और यह प्रणाली हमारे अवचेतन मन को सक्रिय करती है।
गोचर कि बदलीं स्थिति के अनुसार बनने वाली समय कि विशेष अवस्था को मुहूर्त से परिभाषित किया गया है।
मनुष्य कि स्वयं कि ओरा के अनुसार यात्रा के लिए अनूकूल समय कि पहचान करना है।व्यवसाय की यात्राओं में मुहूर्त पर पूर्णत विचार करना चाहिए।
तीर्थ यात्रा में भी दिशाशूल विचार करना है।
चन्द्र विचार ४,६,८,१२ वां नहीं होना चाहिए।
लग्न विचार लग्नेश चौथे, छठे, आठवें, बारहवें स्थान पर ना हो।
मन के उत्साह कि स्थिति को ध्यान में रखते हुए पुरी जानकारी लेकर अपनी योजना बनाएं।
मुहूर्त निकलवाने के लिए नामाकन करे-