यात्रा में तिथि विचार।
यात्रा में तिथियों का फल
प्रतिपदा तिथि यात्रा करने के लिए श्रेष्ठ होती है ।
द्वितीय तिथि मनोरथ को पूर्ण करने वाली होती है।
तृतीय तिथि आरोग्यपद होती है।
चतुर्थी तिथि कलह कारण होती है ।
पंचमी तिथि संपत्ति दाता होती है।
सप्तमी तिथि सुखदाई होती है।
अष्टमी तिथि व्याधि कारी(रोग कारक) होती है ।
नवमी तिथि मृत्यु तुल्य कष्ट कारी होती है।
दशमी तिथि लाभकारी होती है ।
एकादशी तिथि सर्वदा दात्री तथा सुवर्ण दायी होती है। द्वादशी तिथि प्राण हरने वाली होती है ।
त्रयोदशी तिथि समस्त मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है ।
शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों की चतुर्दशी तिथि सर्वधा वर्जित होती है ।
पूर्णिमा ,अमावस्या तिथि भी सर्वधा वर्जित है।
यात्रा मे वर्जित तिथि:-
क्षय तिथि, ग्रहंण मे जो तिथि थी उसे बड़ी यात्रा मे छः महिने तक वर्जित करनी चाहिए।तथा नजदीक कि यात्रा मे अंत कि तीन तिथियों को निषेध करना चाहिए।
षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी ,शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, रिक्ता, पुर्णिमा, अमावस्या तथा पर्व दिन (कृष्णपक्ष की चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पुर्णमा,सुर्यसंक्रांति।)
दग्घ तिथि।
अगर सूर्य धनु राशि और मीन राशि में हो तो द्वितीय तिथि वर्जित होती है।
सूर्य वर्ष तथा कुंभ राशि में हो तो चतुर्थी तिथि वर्जित होती है ।
सूर्य मेष तथा कर्क राशि में हो तो षष्टि तिथि वर्जित होती है।
सूर्य कन्या तथा मिथुन में हो तो अष्टमी तिथि वर्जित होती है।
सूर्य वृश्चिक तथा सिंह राशि में हो तो दशमी तिथि वर्जित होती है ।
सूर्य मकर तथा तुला राशि में हो तो द्वादशी तिथि वर्जित होती है।
यह दग्ध संज्ञक तिथियां कहीं गई है इन तिथियों में सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
विशेष करके यात्रा तो बिल्कुल ही निषेध है।
यात्रा मे विजय दशमी विचार-
अश्विन मास की शुक्ला दशमी सब शुभ कार्यों में सिद्धि देने वाली होती है यदि उस दिन श्रवण नक्षत्र हो तो अधिक सुखदाई होता है उस दिन राजा यात्रा करें तो विजय या संधि लाभ करें उस दिन चंद्रमा आदि का विचार भी नहीं करना चाहिए।
यात्रा के लिए यह विशेष सिद्धिदात्री योग है।