वास्तु पूजन मुहूर्त का प्रयोजन गृह-प्रवेश से पहले घर पर वास्तु पुरुष कि पुजा का प्रावधान है। जिससे नव निर्माण भवन में ऊर्जा का साकारात्मक प्रभाव हमेशा बना रहे।
इस अनुष्ठान में भवन के अंदर 45 देवताओं व असुरों कि ऊर्जा को संतुलित रखने के लिए वास्तु पुरुष मंडल में इन सभी को स्थापित करके इनका आहवान किया जाता है और इन कि पुजा तथा हवन क्रिया से इन्हें आहुतियां दी जाती है।
आयन:- उत्तरायण।
मास:- ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, बैशाख।
विशेष वर्जित मास:- अध्याय, अधिक मास, क्षयमास।
नक्षत्र:- अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती।
वार:- सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार।
तिथि:- रिक्ता (४,९,१४),अमावस्या वर्जित है।
लग्न:- मेष,कर्क,तुला,मक्कर वर्जित है।
- लग्नेश अस्त नहीं होना चाहिए।
- लग्नशुद्धि परमावश्यक है। बलशाली लग्नेश गृहस्वामी को बल प्रदान करते हैं।
ग्रह स्थिति:- शुरुआत में कोई ग्रह अस्त न हो। गुरु, सूर्य, शुक्र,मंगल ,अस्त नहीं होने चाहिए।
- 1,2,3,4,5,7,9,10,11 वें भाव में शुभ ग्रह शुभ फल दाई होते हैं।
- 3,6,11वे भाव मे पाप ग्रहों का कोई दोष नहीं हैं।
- 4,8 मे कोई भी ग्रह ना हो तब शुभ फल दाई है।
- पूजन के समय गृह स्वामी का जन्म लग्न जन्म राशि से आठवां होना उचित नहीं है।
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